Yadi Hota Nabh ka Panchhi main
Yadi Hota Nabh ka Panchhi main

यदि होता नभ का पंछी मैं 

( Yadi hota nabh ka panchhi main ) 

 

यदि होता नभ का पंछी मैं
दूर गगन उड़ जाता,
नन्हें नन्हें उड़-पंखों से
गगन घूम कर आता।
फुदक फुदक कर खुशियों मन से
चीं- चीं चूं- चूं गाता
ऊपर नीचे कभी झुण्ड में
उड़ता ही रह जाता।
कोई आता मुझे पकड़ने
मुझे पकड़ ना पाता
नीले पीले लाल सुनहरे
बादल में छिप जाता।
चिड़ियाघर न कोई सरकस
कैद कौन कर पाता
अपने मन का उड़ता फिरता
नहीं पकड़ मैं आता।
एक बात मैं समझ न पाऊं
समझ समझ रह जाता
छोड़ धरा कैसे रह पाऊं
धक धक दिल घबड़ाता।
कहां? बनाता घर अपना मैं
कैसे ! भूख मिटाता ,
किस आंगन में दाना चुगता
रैना कहां बिताता।
खट्टे मीठे प्यारे प्यारे
कहां वहां फल पाता,
किस तरु के डालों पर अपने
सुंदर नीड़ बनाता।
एक बात आ गया समझ में
बनकर नभ का पंछी
कभी धरा पर कभी गगन में
बजती मन की बंशी।

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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