पानी पानी हर तरफ़
पानी पानी हर तरफ़
दिख रहा है आज हमको पानी पानी हर तरफ़
कर रहा है ख़ूब बादल मेहरबानी हर तरफ़
बेतकल्लुफ़ होके दोनों मिल न पाये इसलिए
बज़्म में बैठे थे मेरे खानदानी हर तरफ़
तोड़कर वो बंदिशें वादा निभाने आ गया
कर रहे थे लोग जब के पासबानी हर तरफ
तेरे जैसा दूसरा पाया नहीं हमने कहीं
ढूँढ कर देखा है हमने तेरा सानी हर तरफ़
इक ग़लतफहमी को उसने तूल इतना दे दिया
फैलती ही जा रही है यह कहानी हर तरफ़
जिस तरफ़ भी मन किया हम उस तरफ़ ही चल पड़े
जेब में पैसे हैं तो है दाना पानी हर तरफ़
बस यही इक बात अपने दुश्मनों को चुभ रही
कर रहे कैसे तरक्क़ी हिंदुस्तानी हर तरफ़
तोड़ डाला सूर्य ने जब बादलों का चक्रव्यूह
छा गई हर रुख पे साग़र शादमानी हर तरफ़

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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