
पिता की स्नेहाशीष पाती
( श्रृद्धांजलि )
एक स्नेहाशीष चिट्ठी को तरसता मेरा मन
आज बरबस दिवंगत पिता को याद करता है
दस बरस पहले अनायास जो चले गए थे तुम
आज भी आप की चिट्ठी की राह तकती हूँ
कईं पत्रों को भेजकर कुशल पूछा करते थे अक्सर
बेटी को नेह देने का तरीका अनोखा था उस वक्त
खुश रहो का आशीष मुझे बहुत भाता था
परिवार को खुश रखने का संबल बन जाता था
एक पत्र से दूसरे का अंतराल मीलो बराबर लगता था
मां बहन सखियों और भ्राता से दूरियों का सफर खलता था
पिता पुत्री का हृदयस्पर्शी पाति से नाता जुड़ा रहा
मेरा पत्र भी मायके में कुशल क्षेम बतलाता रहा
कौन दुनियाँ चले गए, छोड़कर यू मझधार ही
मन बेचैन है दिन और रात भी है स्नेह विहीन
आज सब है खुल गए हैं बातों के नए रास्ते
मन तरसता आज भी एक पाति के वास्ते
जानती हूं पिता के आशीर्वाद की चिट्ठी
आने वाले वक्त में कभी नहीं पा पाऊँगी
आपके आशीष को तरसती
इस दुनिया से मैं भी चली जाऊंगी
डॉ. अलका अरोड़ा
“लेखिका एवं थिएटर आर्टिस्ट”
प्रोफेसर – बी एफ आई टी देहरादून
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