पराजय

( Parajay ) 

 

खड़े हो उम्र की आधी दहलीज पर ही
अभी ही कर लिया समझौता भी वक्त से
यह तो है ,पराजय ही स्वीकार कर लेना
लेने होते हैं कुछ निर्णय भी सख्त से

अभी ही न मानो हार तुम,उठा आगे बढ़ो
ऊंचा नही है शिखर कोई,नियमित चढ़ो
दुहराओ न गलतियां ,फिर वही जो गुजरी
हर दिन जीवन मे कुछ नवीनता को गढ़ो

कमियां छिपाकर,उसे संतुष्टि का नाम न दो
श्रेष्ठ होकर भी तुम,हार का अंजाम न दो
है ऋण शून्य से पहले ,तो आगे धन भी है
हार मे हालात ही नही ,तुम्हारा मन भी है

सूर्यास्त का अर्थ अंधेरा ही तो नही होता
वह तो आते हुए प्रभात की पहचान भी है
अपनी मानसिकता के बदल लेने मे ही
उज्वल नव जीवन का उदीयमान भी है

वक्त ठहरता नही कभी किसी का भी हो
उसे भी किसी की हार कभी स्वीकार नहीं
रहता है मंजिल को भी इंतजार राहगीर का
सफलता का सदा खुला रहता है द्वार

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

यह भी पढ़ें :-

तड़प उसकी | Tadap uski

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here