परिवार | Parivar par kavita
परिवार
( Parivar )
चाहे कोई कितना भी हो पास,
चाहे तुम हो किसी के कितने भी खास।
छोटी-बड़ी बातों को पल में जो भुला दे,
वो परिवार ही होता है।
टूटने लगे जब हर आस,
छूटने लगे जब तन से साँस,
फिर भी हर आवाज़ में तुम्हें पुकारे,
उस पिता के साये में महकता हुआ
वो परिवार ही होता है।।
बोलने से लेकर समझने तक जो आये बात,
मिलने से लेकर बिछड़ने तक जो निभाए साथ,
उस माँ के आँचल में छिपा हुआ
वो परिवार ही होता है।।
तुम्हारे महंगे कपड़ों की ख्वाहिशों का आगाज़,
तुम्हारे नवाबी तौर-तरीकों की परवाज़,
हर हालात में जीवन जीने की कला सिखाता हुआ,
वो परिवार ही होता है।।
दोस्ती यारी की शौक मौज के बाद भी,
इज़्ज़त और बेपरवाहियों की सारी हदें लाँघने के बाद भी,
थक हार कर घर आये सदस्य को फिर से गले लगाता हुआ,
वो परिवार ही होता है।।