Hindi poem on khaki
Hindi poem on khaki

 खाकी 

( Khaki ) 

 

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा घर-घर पर लहराएंगे,

आन बान शान यही है इस के लिए मिट जाएंगे।

सादा जीवन एवं उच्च-विचार खाकी अपनाएंगे,

जीवन चाहें चार दिन का ऐसी पहचान बनाएंगे।।

 

गांव-शहर, समाज का नाम ऊंचा कर दिखाएंगे,

आफिसर्स भले हम नही पर बच्चों को बनाएंगे।

आये है इसी दुनियां में तो कुछ करके दिखाएंगे,

पीढ़ी नयी ये याद करे निशान ऐसे छोड़ जाएंगे‌।।

 

पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण चाहें जंगल या पहाड़,

चलतें रहते हम चढ़ जाते पर्वत हो या पेड़ ताड़।

हाथी घोड़े बन्दर भालू चाहें चीते शेर की दहाड़,

डरते नही किससे हम कूद जाते कांटों की बाड़।।

 

शोलो पे चलने की आदत खाकी वाला डालता,

शत्रु को वो न छोड़ता घर-में घुसकर उत्तर देता।

अद्भुत अदम्य साहस की ये खाकी है परिभाषा,

जो पहनता है इसको वहीं शक्तिमान बन जाता।।

 

जय हिंद जय हिंदी जय हिंदुस्तान नारा लगाता,

आंधी तुफ़ान से ना घबराता ना वो लड़खड़ाता।

सदा मानवहित में कार्य करके जयहिंद बोलता,

आपदा विपदा एक्सीडेंट में प्रथम यह पहुंचता।।

 

 

रचनाकार :गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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