Pata hai

पता है | Pata hai

पता है

( Pata hai )

 

जब विश्वास टूटता है, उस वेदना का कोई परिसीमन नहीं होता,
क्यों कि हर टूटने वाली चीज़ भी दोबारा जोड़ी जा सकती है,
लेकिन जब मन टूटता है,
तब चाहे सारे हालात पहले की तरह हो जायें,
हम खुद को नकार कर भरोसा दोबारा भी बनाने की कोशिश कर लें अपने मन मे,
लेकिन कोई हमारे हृदय से धोखा नहीं निकाल पाता है।

कई लोग जीवन मे ऐसे भी होते हैं, जिन्हें देख कर हमेशा यही लगता है कि ये हमारा साथ कभी-कभी-कभी नहीं छोड़ेंगे,
लेकिन
जब वही हमारी आँखों मे धूल झोंकते हैं, तब आँखों से बहते नीर और माथे की सिलवटें एक ही बात दोहरातीं है,
कि ये क्या हुआ हमारे साथ?

विश्वास ही एक ऐसी साधना है, जिसमे लेष मात्र भी खंडन पाया जाये,
तो उसका पृष्ठ भाग चाहे कितना भी पवित्र होना चाहे,
लेकिन श्रेष्ठ भाग के बराबर कभी नहीं हो सकता।

एक बार टूट जाने के बाद, फिर चाहे जितने प्राण डालें हम रिश्तों में, उनका उद्भव जीवन मे चाहे भौतिक स्तर पर सम्भव हो पाये, लेकिन वास्तविक तौर पर असम्भव हो जाता है।

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रेखा घनश्याम गौड़
जयपुर-राजस्थान

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