पता नहीं क्यों

( Pata nahi kyon ) 

 

घर छोटा कमरे भी कम थे
रिश्ते नाते सब चलते थे
फिर भी प्रेम बाकी था
पता नहीं क्यों
पति-पत्नी में प्यार बड़ा था
एक दूजे को खूब समझा था
आज खड़े हैं कोर्ट के द्वारे
पता नहीं क्यों
बहन भाई के झगड़े होते थे
आपस में तू तू मैं मैं होती थी
पर मनमुटाव हुआ नहीं
पता नहीं क्यों
गुरु कान खींचते थे चांटे भी बरसते थे मुर्गा भी बनाते थे
पर कभी तनाव हुआ नहीं
पता नहीं क्यों
हर खेल खेलते थे
मस्ती उधम करते थे
चश्मा कभी लगा नहीं
पता नहीं क्यों
बात बात पर मम्मी मारे
पापा घर से जब चाहे निकाले
अरे निखट्टू सुन जरा रे
फिर भी थे वह प्राण से प्यारे
पलते रहे हम उनके सहारे
दो दिन भी न छोड़ा उनकाे
पता नहीं क्यों
बन रही आज बड़ी इमारत
कुत्ते बिल्ली साथ में घूमे
मां बाबूजी को छोड़ दिया वृद्ध आश्रम सहारे
देखो यह कल युग आया रे
बुढ़ापा अपना भी आएगा भूल रहे हो तुम क्यों प्यारे
पता नहीं क्यों

 

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

हमारे वृद्ध | Hamare Briddh

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here