Patni ke Anek Roop
Patni ke Anek Roop

पत्नी के रूप

( Patni ke anek roop )

 

शादी के बाद जब ससुराल आती है
दुल्हन के रूप में पत्नी खूब भाती है।

घड़ी घड़ी सब पूछते हैं उसका हाल
पूरा परिवार रखता है खूब ख्याल।

दो-चार बार जब ससुराल आती है
बहू के रूप में अपना प्रभाव जमाती है ।

बहू की होती है घर में खूब चर्चा
बेटा भी बढ़ा देता है उसपर खर्चा ।

करने लगता है खुलकर उससे प्यार
देता है दुल्हन को बीवी का अधिकार।

कुछ समय तक वह बीवी होती है
देखने में वह रंगीन टीवी होती है।

धीरे धीरे बढ़ता है समाजिक ज्ञान
पत्नी के रूप में होती है पहचान।

पूजा पाठ और व्रत त्यौहार मनाती है
बच्चो की भी जिम्मेदारियां निभाती है।

धीरे-धीरे और बढ़ता है अधिकार
बटने लगता है मोह ममता मे प्यार।

बात-बात पर वह चिढ़ने लगती है
अक्सर पति से भीड़ने लगती है।

झगड़ा लड़ाई और बढ़ती समझदारी है
तब दिखाई पड़े वह समाज की नारी है।

वह नारी है ,जिससे नर हमेशा डरता है
भगवान भी जिसका कुछ नहीं करता है ।

किसी तरह पति समय गुजार लेता है
झगड़ों के बीच बच्चों को प्यार देता है ।

फिर बच्चों की मां के रूप में वह भाती है
जिंदगी के हर मोड़ पर साथ निभाती है।

चाहे जैसी हो, बच्चों की वह माता है
पत्नी का यही रूप सबसे अधिक भाता है।

हंसते रोते सारी जिंदगी कट जाती है
कई जिम्मेदारियों में पत्नी बट जाति है।

 

कवि :  रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

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