Apman

अपमान

( Apman )

 

भर जाते हैं जख्म गहरे
बदल जाती है वक्त की धारा
हो जाते हैं धूमिल यादों के पन्ने
किंतु अपमान की लकीरें मिट नहीं पातीं

हार जीत, अमीरी गरीबी
सभी जुड़े हैं साथ से जीवन के
दया करुणा साथ सहयोग के भाव
स्वाभिमान की मौत को जिला नहीं पाते

एक दबी सी चिंगारी
सुलगती सी रहती है हृदय में
अनदेखापन अनजानापन
तोड़ देता है भीतर से रिश्तों को

समय के चक्र में स्थिर कुछ नहीं रहता
खेल की पारी मे फिसलना तय है
यह गांठ सालों ही नहीं
पिढियाँ भी निगल जाती हैं

बेहतर है आप भी कुछ खामोश रहें
क्रोध की बेहोशी होश खो देती है
फिर पछतावा भी कभी मरहम नहीं बनता

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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