फूल और कांटे | Phool aur kaante | Kavita
फूल और कांटे
( Phool aur kaante )
सदा रहो मुस्काते राही नित पथ में बढ़ते जाना
बाधाओं का काम रोकना निरंतर चलते जाना
फूल और कांटे जीवन में सुख दुख आते जाते
संघर्षों में पलने वाले सौरभ भरकर मुस्काते
पुष्प की सुंदरता को हम दूर से निहारा करते
कांटो से सुरक्षा फूलों की महकती धारा बहते
खिलते फूल चमन में देखे महक सदा फैलाते
कांटो में रहकर सबको दिखते हंसते मुस्कुराते
रंग-बिरंगे पुष्प सजीले मनमोहक छटा प्यारी
कंटको में पलकर सुंदरता होती कितनी न्यारी
फूल और कांटे सुख-दुख का मर्म हमें बताते
धूप छांव सी है जिंदगी लोग समझ ना पाते
जीवन की उलझन में भी मुस्काते रहना प्यारे
कंटक मिले सफर में तो हमें मिलते नए नजारे
गमों का दौर भी जब आए तुम हंसते रहो हमेशा
खुशियों से दामन भर जाए काम करो कुछ ऐसा
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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