इसलिए फूल भेजा नहीं प्यार का | Ghazal
इसलिए फूल भेजा नहीं प्यार का
( Isaliye phool bheja nahin pyar ka )
इसलिए फ़ूल भेजा नहीं प्यार का!
था फ़रेबी से भरा दिल बहुत यार का
इसलिए ख़त लिख पाया नहीं हूँ उसे
बेवफ़ा दिल है उस यार दिलदार का
रिश्ता रखना है तो रख वरना तोड़ दें
यूं नहीं करना है अच्छा तक़रार का
चाहता हूँ कभी हो नहीं पाता है
वक़्त ढ़लता नहीं मेरे लाचार का
नफ़रतों की करे वार बू जो नहीं
सैर कर आया हूँ मैं वो गुलज़ार का
देख लेता उसे आँख भरके मैं भी
राह में पहरा है देखो दीवार का