फूल चाहत

फूल चाहत

फूल चाहत

 

 

फूल मैंनें प्यार का भेजा उधर है !

नफ़रत का तेजाब आया वो इधर है

 

हो गया है गुम कहीं ऐसा कहां वो

अब मुझे मिलती नहीं उसकी ख़बर है

 

इसलिए बेजार दिल रहता है मेरा

जीस्त में मेरी ग़मों का ही असर है

 

ढूंढ़ता ही मैं रहा हूँ शहर में दर

पर मिला कोई वफ़ा का ही न दर है

 

मारे है पत्थर बहुत ही नफ़रतों के

अब नहीं जाना उसी के ही नगर है

 

वो उतर आया है मुझसे बेअदबी पे

प्यार जिससें मुझे आज़म मगर है

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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माने से दिल मानता नहीं है!

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