पिकनिक | वनभोज
पिकनिक
( Picnic )
जाता नहीं कोई रोज,
मनाने को वनभोज,
करते मुझे क्यों हो तंग,
चलो पिकनिक हर रोज,
बच्चों जरा पढ-लिख लो,
खुल गई है स्कूल,
फिर छुट्टी के दिन चलेंगे,
करेंगे छुट्टी वसूल,
बड़े-बूढ़े और बच्चे खुश,
हो जाते हैं पिकनिक से,
सारी चिंताएं वो भूल,
वहीं हो जाते हैं मसगूल,
जाते सभी पिकनिक संग,
लेकर अपनी फौज,
खेलें कूदें नाचे गाएं,
करें वो तो खुब मौज।
आभा गुप्ता
इंदौर (म. प्र.)
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