पिता | Pita ke Upar Kavita
पिता
( Pita )
( 4 )
पिता एक उम्मीद है एक आस है ,
परिवार की हिम्मत और विश्वास है ।
बाहर से सख्त अंदर से नर्म है,
उनके दिल में दफन कई मर्म है।
पिता संघर्ष के आंधियों में हौसलों की दीवार है,
परेशानियों से लड़ने को दो धारी तलवार है।
बचपन में खुश करने वाला खिलौना है,
नींद लगे तो पेट पर सुलाने वाला बिछौना है।
पिता जिम्मेदारियों से लदी गाड़ी का सारथी है,
सबको बराबर का हक दिलाता यही एक महारथी है।
सपनों को पूरा करने में लगने वाली जान है,
पिता से ही तो मां और बच्चों की पहचान है।
पिता हमारा जमीर है पिता ही जागीर है,
जिसके पास पिता है वह सबसे अमीर है।
घर की एक एक ईट में शामिल उनका खून पसीना है,
सारे घर की रौनक पिता सारे घर की शान है पिता।
शायद ईश्वर ने भी अच्छे कर्मों का फल है दिया,
उस ईश्वर का आशीष उसका वरदान है पिता।
सारे घर के दिल की धड़कन सारे घर की जान पिता,
मुझे हिम्मत देने वाला मेरा अभिमान है पिता।
लता सेन
इंदौर ( मध्य प्रदेश )
( 3 )
जो खुद के अरमानों को भूल, बच्चों के अरमान पूरा करता,
एक पिता ही है जो सदैव,
अपने से आगे बढ़ता देखता है।
जीवन रूपी वृक्ष की ,
जड़ होता है पिता ,
पिता है तो जीवन है ,
पिता नहीं तो जीवन सूना है ।
मेरा स्वयं का जीवन,
पिता की लिखावट है ,
पिता के बारे में लिखना,
ना इंसाफी कहलाएगी।
परिवार का संपूर्ण भार,
जीवन भर ढोता है पिता,
फिर भी कभी एहसास नहीं जताता ,
ऐसी अद्भुत मिसाल है पिता।
बच्चों की उड़ान को,
पंख बनकर जो उड़ाता है ,
वह ही अद्भुत शख्स,
पिता कहलाता है।
सूर्य के समान होता है पिता,
सूर्य डूबने पर जैसे,
अंधेरा छा जाता है,
वैसे ही पिता के न रहने पर, जीवन में अंधेरा छा जाता है।
अक्सर अपनी औलाद के खातिर,
वहां भी झुक जाता है,
जहां ज़मीर उसका अक्सर, झुकने की इजाजत नहीं देता।
पिता है छत की भांति,
जो हर समय ढाल बनकर,
उसकी रक्षा को,
तत्पर रहता है।
मां चंदा जैसी है तो,
पिता सूरज जैसा है।
सूरज गर्मी जरूर देता है,
लेकिन उसके बिना,
अंधेरा ही छाया रहता है।
पिता है तो मां की बिंदी है,
सुहाग है, सिंदूर है,
पिता नहीं है तो,
मां का जीवन सूना सूना सा है।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )
( 2 )
सफेद धुंधलके में रंगे बाल
करते हुए वह कदम ताल
रिश्तो की डोरी को कसके बांधे
घर के बोझ को लिये अपने , काँधे
जेब मे न हो फूटी कोड़ी
फीस मे देरी हुई न थोड़ी
हर समस्या की चादर सदा
उन्होंने मुस्कुरा कर ओढ़ी
बेटे पर गुस्सा तो बेटी पर सारा लाड जताते
बहन है तेरी प्यार से बात किया कर समझाते
बड़े से बड़ा गम भी कैसे
वो हंसकर पी जाते
असफलता पर थप थापा पीठ हौसला बढ़ाते
गुजारिश है सबसे व्यस्त रहो चाहे कितने
जीवन में दोबारा ना मिलेंगे यह पल इतने
दो पल बैठ गुजार लो जरा हंस के
फिर ये मंजर रह जाएगा बस यादें बन के
खिला दो निवाला अपने इन हाथों से
फूल सी दुआएं झरेगी उनकी बातों से
मिल गया जो आशीष तरक्की रुकेगी नहीं
बुजुर्गों का किया सम्मान तो झोली खाली रहेगी नहीं
नहीं चाह रखना उनके धन दौलत की
हर जगह चर्चा होगी तेरी शोहरत की
तुझे उंगली पकड़ चलना सिखाया है
रात दिन तुझ पर अपना गंवाया है
दो पल तू भी थाम ले अपनी बाहों में
चमक जाएगी उनकी आंखें रातों में
फर्ज अपना कर्म समझ जो निभा जायेगा
ईश्वर के चरणों में खुद को हमेशा पाएगा
डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )
( 1 )
पिता तो आख़िर में पिता होता,
जिसको कोई नही समझ पाया।
बच्चों के लिए सब कुछ किया,
और उनके लिए ही वो मर गया।।
पिता ही होता एक ऐसी हस्ती,
जिसको बच्चों की चिंता रहती।
चुका ना सकता उसका हिसाब,
ईश्वर का ही रुप है वह साक्षात।।
कभी पढ़ना स्वयं पिता को तुम,
अपनें लिए कभी कुछ ना लेगा।
लेकिन अपनों को वह सब देगा,
चाहें रात दिन मेहनत कर लेगा।।
आज पिता और सूरज की गर्मी,
सभी बर्दाश्त करना ये सीख लो।
अगर उसमे अन्धेरा छा गया तो,
परिवार का पेट फिर स्वयं भरो।।
अगर अच्छा तुम्हे बनना हो तो,
पिताश्री की नज़र में अच्छे रहो।
लोगो का क्या तरक्की में जलेंगे,
और नाकामयाबी में यही हॅंसेगे।।