अनकही | Poem anakahee
अनकही
( Anakahee )
चलिये ना
कुछ बात करें
मैं अपने दिल की बात कहूँ
कुछ छुपे हुए से राज कहूँ
तुम अपने मन की परते खोलो
सहज जरा सा तुम भी हो लो
मैं अपनी कहानी कह दूंगी
जो बंधी है मन के भीतर
गिरहें सभी मैं खोलूंगी
तुम भी अपने घाव दिखाना
थोडा सा मरहम लगवाना
थोंडी नरमी थोड़ी गरमी
शीतल छाँव सा बह जाना
आओ ये सफर भी पार करें
अल्फाजो में बात करें
लफ्जो से मुलाकात करें
चलिये ना
कुछ बात करे
जब साथ तुम्ही को होना था
तब खाली मन का कोना था
तरस रहे थे कहने को
लय ताल तुम्हारी सुनने को
कदम बहुत ही नाजुक थे
प्रश्न बहुत ही वाजिब थे
लब कहना तब भी चाहते थे
पर कहीं तुम्हें ना पाते थे
अब वक्त मिला तो तुमसे कहें
करें खत्म वो सिलसिले
जिनमे गागर रीती थी
चादर आसूँ से भीगी थी
एक वो भी हकीकत याद हमें
छोडा तुमने मझधार हमें
प्यासे दरिया से प्यार करें
गहरा सागर पार करें
चलिए ना
कुछ बात करें
डॉ. अलका अरोड़ा
“लेखिका एवं थिएटर आर्टिस्ट”
प्रोफेसर – बी एफ आई टी देहरादून