
सुनो
तुम्हें हर बार #सोचना
और-
सोचते रहना
#बदन में एक
#सिहरन सी उठती है
तुम्हें याद करके
एक तो #शीत
और-
दूसरा तुम्हें #महसूस करना
अक्सर #दर्द जगा जाता है….
#तन्हाइयां भी असमय
घेर लेती है आकर
उठते दर्द को
ओर बढ़ा जाती है
टूटता #बदन
#बेहिसाब
#बेसबब
#अहसास करा जाता है
बस…..
एक तुम्हारी #कमी को……….!!
?
कवि : सन्दीप चौबारा
( फतेहाबाद)
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