विरह | Poem in Hindi on Virah
विरह
( Virah )
नयन सुख ले लेने दो प्रियतम तुम जाने से पहले।
अधर रस पान करा दो सूरज उग जाने से पहले।
सुबह से वही दोपहरी रात कटवावन लागेगी
जिया की प्यास बुझा दो मेरी, तुम जाने से पहले।
विरह की बात बताऊं, सूना सूना जग लागे है।
बहे जब जब पुरवाई, मन मे जैसे टीस जगे है।
छोड कर परदेशी क्यो भटक रहे हो अब ना जाओ,
नही तो मर जाऊँगी सच मै, तेरे जाने से पहले।
ननदिया ताना मारे सासू बात सही ना जाए।
तेरे बिन साजन मेरे, जिया कही भी नाही लागे।
तुम्हारी याद उभर कर, सावन मे तब आग लगाए।
जेठानी जेठ के संग झूले पे जब जब पेग लगाए।
सुनो ना साजन मेरे, अब की ऐसा जतन लगाओ।
चलू संग मै भी तेरे, ऐसा ही कुछ बात बताओ।
नही तो हूंक मेरा हुंकार तेरे संग जाएगी।
मै तडपूगी साजन तुमको भी नींद न आएगी
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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