अनजान राहें | Poem anjaan raahen
अनजान राहें
( Anjaan raahen )
वीरान सी अनजान राहें दुर्गम पथ बियाबान राहें।
मंजिलों तक ले जाती हर मुश्किल सुनसान राहें।
उबड़ खाबड़ पथरीली गर्म मरुस्थल रेतीली।
पर्वतों की डगर सुहानी हिम खंडों में बर्फीली।
घने वनों से होकर गुजरे लंबी चौड़ी सुगम राही।
गांवों शहरों को जोड़ें कच्ची पक्की दुर्गम राहें।
घुमावदार सी होती राहें सफर में हो हमराह राहें।
जिंदगी जीना सिखलाती हमको ये अनजान राहें।
सदा सफलता दिलाती खुद मार्गदर्शक बन जाती।
हर पड़ाव पर साथ देती दूर्गम से सुगम बन जाती।
बढ़ते रहने का संदेशा जन-जन को देती है राहे।
डगर डगर पे पथिक परीक्षा अक्सर लेती है राहें।
बढ़ चले जब मुसाफिर ना रहती अनजान राहें।
हिम्मत और हौसलों को ना करती परेशान राहें।
विकट मुश्किलों भरी हो कष्टों सी अनजान राहें।
कर्मवीर पथ बढ़ चले हंसी चेहरों पे मुस्कान राहें।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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