Sawan ka Lehenga
Sawan ka Lehenga

सावन का महंगा लहंगा

( Sawan ka mahanga lehenga ) 

 

पिया दिलादो सावन का लहंगा,
सस्ता नही थोड़ा सा वह महंगा।
आ गया सावन प्रेम का महीना,
झमा-झम करता प्यारा महीना।।

शादी के बाद यह पहला सावन,
दिला दो लहंगा हमें मन-भावन।
अब तक पहने घर के ही कपड़े,
लहंगे पे साजन मत कर झगड़े।।

आज चलूंगी तुम्हारे संग दुकान,
वापस आते लेगें प्रचूनी सामान।
ना नहीं कहना अब तुम साजन,
ले चलो साइकिल पे हमें सजन।।

घूमें नहीं हम आपके संग कभी,
चलों दुकान पे तुम आज अभी।
तुम्हें प्रेम करूंगी हर शाम सभी,
मान जाओ अब मेरे बाप अभी।।

तब जाके लाएं हमें दुकान बड़ी,
लहंगे के संग एक चुनर‌ थी फ्री।
एक नहीं दो-दो लहंगे लिऐ मेंने,
पाॅकिट ही खाली करवा दी मेंने।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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