Poem chehre ka noor
Poem chehre ka noor

चेहरे का नूर वो ही थी

( Chehre ka noor wo hi thi )

 

वो ही प्रेरणा वो ही उमंगे वो मेरा गुरूर थी
भावों की अभिव्यक्ति मेरे चेहरे का नूर थी

 

प्रेम की परिभाषा भी मेरे दिल की धड़कन भी
खुशियों की प्यारी आहट संगीत की सरगम भी

 

मौजों की लहरों का सुख मिल जाता आंँचल से
नैनों से निरंतर झरता मधुरम तराना झर झर के

 

हंसी खुशी आनंद मोती मधुर वचन बड़े प्यारे
ठंडी छांव सुहानी लगती हम थे नैनो के तारे

 

जिनकी चरण वंदना में सारे तीर्थों का फल होता
मां खुशियों का खजाना सुखी सारा जीवन होता

पावन गंगाजल सी धारा हम आशीष में पाते थे
हिम्मत और हौसला मेरा सारे कष्ट मिट जाते थे

 

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कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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