
आ चले लौटकर फिर उसी गांव में
( Aa chale lautkar phir usi gaon mein )
आ चले लौटकर फिर उसी गांव में।
हरेभरे खेत पीपल की ठंडी छांव में।
बुजुर्गों की चौपालें लगती हो जहां।
झुमते गाते मस्ताने नाचे देखो वहां।
लोग कर ले गुजारा एक ही ठांव में।
आ चले लौटकर फिर उसी गांव में।
वो हरियाली खेतों में छाई जहां।
मधुर मुस्कान होंठों पे आई वहां।
बजे ढोलक नगाड़े घुंघरू पांव में।
आ चलें लौटकर फिर उसी गांव में।
वह पगडंडी पाठशाला पढ़ते जहां।
बालपन के नजारे हम लड़ते वहां।
हो चैन की बंसी तरुवर की छांव में।
आ चले लौटकर फिर उसी गांव में।
गांव की बड़ी हवेली हाट सजते जहां।
दिलों के धनी लोग ज्यादा रहते वहां।
शुभ समाचार जहां कौवे की कांव में।
आ चले लौटकर फिर उसी गांव में
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )