Poem itna bhi mat shor machao
Poem itna bhi mat shor machao

इतना भी मत शोर मचाओ

( Itna bhi mat shor machao )

 

इतना भी मत शोर मचाओ, शहरों में।
सच दब कर रह जाये न यूँ, कहरों में।।

 

ये बातें ईमान धरम की होती हैं,
वरना चोरी हो जाती है, पहरों में।।

 

गर आवाज न सुन पाओगे तुम दिल की,
समझो तुम भी शामिल हो कुछ, बहरों में।।

 

कुछ बातें इतनी जहरीली होती हैं,
विष भी बौना पड़ जाता है, अधरों में।।

 

पल में रंग बदल लेते हैं कुछ अपने,
हरदम अंतर होता है इन, चेहरों में।।

 

कौन मिलेगा जाकर पार किनारों से,
“चंचल” होड़ लगी है कब से, लहरों में।।

 

🌸

कवि भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई,  छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )

 

यह भी पढ़ें : –

बचपन आंगन में खेला | Kavita bachpan aangan mein khela

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here