Poem mehndi ki mahak
Poem mehndi ki mahak

मेहंदी की महक

( Mehndi ki mahak )

 

नारी का श्रृंगार मेहंदी चार चांद चमका देती
हिना में गुण आकर्षण पिया मन लुभा लेती

 

रचकर रंग दिखाती है सौंदर्य में निखार लाती है
दुल्हन के हाथों का सौंदर्य मनभावन सजाती है

 

मेहंदी की मोहक महक मदमस्त हो मधुमास
प्यार के मोती बरसते उमंगे छू लेती आकाश

 

मन को शीतलता देती खुशियों का लगे अंबार
सद्भाव प्रेम आनंद का जन मन करती संसार

 

महावर रचा हाथों में गौरी कर सोलह श्रंगार
कामिनी हिना संग हर्ष भरे उर उमड़ता प्यार

 

हर्षकारक रक्तगर्भा रक्तरंगा मेहंदी मनभावन
मनोरंजक रंजक हृदय प्रीत भरा लगता सावन

 

त्यौहार उत्सव उमंग खुशियों की हर बेला प्यारी
शादी विवाह धूमधाम से हिना से खुशियां हमारी

 

मेहंदी की महक बरसती स्नेह की लेकर बरसात
बाग की कलियां खिले लबों पे हो सुहानी बात

 

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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