मेरा अस्तित्व | Kavita Mera Astitva
मेरा अस्तित्व
( Mera Astitva )
क्या मेरे अस्तित्व के
कोई मायने
रहेंगे ?
अगर मैं उतार भी दूं
चेहरे पर से चेहरा
मेरे स्वयं का
अस्तित्व ही पिघल
जायेगा
और—-
मैं अनाम हो जाऊँगी
तेज झंझावतों में उठे
धूलकणों की तरह
हो चुका होगा
जर्जर मेरा अंग-प्रत्यंग
मेरा वर्ण धीमा हो जायेगा
चेहरा, चेहरा नही रहेगा
काश !
मेरी थोड़ी-सी सांस
मेरी इच्छा के
अधीन हो
यह कौन-सी आज्ञा लेकर
तुम आये हो
मैं अकेली-सी पड़ गई हूँ
मन करता है
कि-मैं
अपने जख्म दिखा दूं
अपना आवरण उतार दूं
तब क्या
मेरे अस्तित्व के
कोई मायने रहेंगे
अगर मैं स्वयं ही
आवरण उतार दूं तो
मेरा नाम ही खो जाएगा।।
डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल, मप्र