नियति | Poem niyati
नियति
( Niyati )
नियति ने क्या खेल रचाया हे ईश्वर ये कैसी माया
कहर बन कोरोना आया कांपी दुनिया घर बैठाया
नीति नियम तोड़े न जाते कुदरत का पार न पाते
डोर थामे ऊपर वाला कठपुतली सा नाच नचाते
सुखों का सागर उमड़े कहीं दुखों की गिरती गाज
विधि का विधान मानो बना दे किसको सरताज
समय बड़ा बलवान हम वक्त की कर ले पहचान
नीयति चक्र चलता सदा हो वही जो करे भगवान
चांद सूरज तारे प्यारे चलते सब नियम से सारे
सौरमंडल समझाता हमे कुदरत से जुड़ो प्यारे
नियति रंग निराले देखो मौसम भी रंग बदलता है
भाग्य तारे दमक उठे सौभाग्य चांद निकलता है
हम विवश नीयति के आगे जो होना सो होता है
राजा रंक भू पर होते कोई हंसता कोई रोता है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )