प्रेस नोट

“देहरी का दीप भावनाओं के परिपाक का सुमधुर प्रतिफल”
देहरी का दीप में प्रेम और विरह की मार्मिक अभिव्यक्ति

“पाठक मंच थाटीपुर इकाई के मासिक पाठक मंच का आयोजन संपन्न”

ग्वालियर/ साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद भोपाल से सम्बद्ध पाठक मंच थाटीपुर इकाई के मासिक पाठक मंच का आयोजन ऑनलाइन रूप से किया गया ।

पाठक मंच में संस्कृति परिषद भोपाल से प्राप्त तीन पुस्तकों की समीक्षात्मक चर्चा की गयी।

1- देहरी का दीप ( लेखिका- शिक्षाविद कवयित्री- डॉ. दीप्ति गौड़ दीप )
2. मन पवन की नौका ( लेखक- कुबेरनाथ राय )
3. दीर्घतमा ( लेख़क- सूर्यकान्त बाली )

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश तोमर ने की । मुख्य अतिथि हरिओम गौतम , विशिष्ट अतिथि डॉ. राजरानी शर्मा व सारस्वत अतिथि के रूप में डॉ. ज्योति उपाध्याय उपस्थित रहीं । कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ दीप्ति गौड़ द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ ।

समीक्षक के रूप में डॉ. विदुषी शर्मा अकादमिक कॉउंसलर इग्नू नई दिल्ली ने कहा देहरी का दीप पुस्तक आने वाले और वर्तमान समाज के लिए भी प्रासंगिक है क्योंकि इसमें जिन विषयों पर रचनाएं प्रस्तुत की गई है वह हमारे समाज में घटित होने वाली घटनाओं का प्रतिनिधित्व करती है ।

डॉ. लोकेश तिवारी ने कहा कि कवयित्री ने अपने भाव एवं विचारों की अनूठी छटा अपनी रचना देहरी का दीप में प्रस्तुत की है । कवि ने अपनी रचना में प्रेम की बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति की है ।

डॉ ज्योति उपाध्याय ने कहा दीप्ति ने अपनी लेखनी से शोषण, दमन का खुलकर प्रतिकार किया है । डॉ. राजरानी शर्मा ने कहा देहरी का दीप नाम से प्रकाशित उनका ये काव्य संकलन भावनाओं के परिपाक का सुमधुर प्रतिफल है |

लालता प्रसाद दोहरे ने कहा दीर्घतमा उपन्यास में नारी विमर्श का सुंदर चित्रण किया गया है। नारी के रूप मां की ममता,,बहन का प्यार, पत्नी का प्यार , प्रेमिका की कुर्बानी, नारी के प्रत्येक रुप का वर्णन समाज को नई दिशा देता है।

डॉ. करूणा सक्सेना ने कहा मन पवन की नौका ललित निबन्धकार कुबेरनाथ राय की पुस्तक में दक्षिण पूर्व एशिया के हृदय में भारत व विश्व में भारत की सांस्कृतिक भूमिका के महत्व को परिलक्षित किया है।

समुद्र यात्राओं के माध्यम से प्रचीन आर्यों ने भारतीय संस्कृति का वृहद विस्तार किया यही कारण है कि आज भी दक्षिण पूर्वी एशिया के विभिन्न देशों व द्वीपों में भारतीय संस्कृति के प्रचीन प्रमाण व अवशेष दिखाई देते हैं।

मुख्य अतिथि श्री हरिओम गौतम ने अपने उद्बोधन में कहा साहित्य के बिना समाज और समाज, के बिना साहित्य निरर्थक और अधूरा हैं। साहित्य समाज का दर्पण होता है। किसी‌ देश की संस्कृति, सभ्यता उसके साहित्य से समझी जा सकती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जगदीश तोमर जी ने कहा मानव समाज का अभिन्न अंग होता है, उसका तन और मन उसके समाज की ही देन होते हैं उसकी लेखनी से उद्भूत हर रचना पर समाज की छाया पड़ना स्वाभाविक है।

कार्यक्रम का कुशल संचालन एवं पाठक मंच के उद्देश्य और उपयोगिता पर वरिष्ठ साहित्यकार रामचरण रुचिर ने प्रकाश डाला एवं आभार प्रदर्शन पाठक मंच संयोजक डॉ मंजूलता आर्य ने किया ।

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार रवि कामिल , जयपुर से ज्योतिर्विद डॉ रवि शर्मा, भिलाई से साहित्यकार डॉ एम एल वर्मा, छिंदवाड़ा से पाठक मंच संयोजक विशाल शुक्ल, लखनऊ से सौरभ बाजपेयी डॉ वन्दना कुशवाह, डाॅ0 मंदाकिनी शर्मा, डॉ. नेहा आर्य, डाॅ0 सुनीता तोमर, डाॅ0 कनकलता बघेल, डाॅ0 परवीन वर्मा, डाॅ0 रामगोपाल, अंकिता, रचित, साधना वर्मा, माधवी वर्मा, संगीता खिसानिया, व ऊषा आर्य सहित अनेक साहित्यानुरागी उपस्थित थे ।

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