Poem on Beti in Hindi
Poem on Beti in Hindi

तेरी कमी

( Teri kami )

 

खलती है

आज भी

तेरी कमी,

तू आज भी है

मेरे लिए

बेटी नन्हीं।

 

कैसे मैं समझूं?

मानूं मैं बातें

पराई पराई

कहते हर कोई

यही सोंच कर

आंखों में

छा जाती नमी

खलती है

आज भी

तेरी कमी।

 

आता कहीं से

तुझे देखता था

कभी भी न

सोंचा

न पाया

कि तू दूर होगी

मुझे छोड़कर यूं,

खलती है

आज भी

तेरी कमी।

 

चली तो गयी,

हमें छोड़कर तुम,

दूर फिर भी

नही हूं,

तुमसे मैं

आज भी,

मिलने की

चाहत में

सांसें

रह जाती है

थमी थमी,

खलती है

आज भी

तेरी कमी।

 

वही घर की

आंगन

रसोई

नन्हें नन्हें

हाथों की

नन्हीं नन्हीं

रोटियां,

अब कहां?

मिलते हैं

यही सब

सोंच कर

याद आते हैं

तेरी जमीं,

खलती है

आज भी

तेरी कमी।

 

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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