पिता | Poem on father in Hindi
पिता
( Pita )
संस्कार वटवृक्ष के जैसे
प्रेम बहे नदिया के जैसे
शीतलता में चांद के जैसे
धीर धरे धरती के जैसे
स्थिर शांत समंदर जैसे
अडिग रहे पर्वत के जैसे
छाव दिये अम्बर के जैसे
धन उनपर कुबेर के जैसे
समस्याओं का हल हो जैसे
सारे घर की नींव हो जैसे
रुके नहीं बस चलते रहते
अपना दुख कभी ना कहते
हंसते और मुस्कुराते रहते
आंसू उनके कभी ना बहते
जूते फटे वो पहने रहते
ख्वाहिश पूरी करते रहते
सुना नहीं हमने ना कहते
कभी ना हारे चलते रहते
धर्म आस्था मन में रहते
समय के पाबंद वो रहते
बहुत कुछ आंखों से कहते
सभी सुरक्षित उनके रहते