Pagal Bhojpuri kavita

पागल | Pagal Bhojpuri kavita

” पागल “

( Pagal ) 

 

दरद के आग बा ओके दिल में, रोये ला दिन रात
देख- देख के लोग कहेला, पागल जाता बडबडात

 

रहे उ सिधा साधा, माने सबके बात
लूट लेलक दुनिया ओके, कह के आपन जात

 

आज ना कवनो बेटा-बेटी, नाही कवनो जमात
नाही पाकिट में एगो रोपया, रहे कबो अफरात

 

रहे उ अन्याय के विरोधी, हर दम क‌इलक इंसाफ
नाही कबो केहू से डरें उ, मुंह पे करें बात

 

इ चिज़ ना दुनिया के भाइल, देलक अ्इसन मार
चोट ओके अ्इसन लागल, घुमेला पगलात ।

 

कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु

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उपरोक्त कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे
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