कागा कारवां | Kaga Karvan
हिंदी है हम
हिंदी है हम हिंदी राष्ट्र भाषा हमारी
लिखना पढ़ना हिंदी में राष्ट्र भाषा हमारी
हिंदी आन बान शान जान ज़ुबान आलीशान
रोम रोम में बहती धारा भाषा हमारी
हर शब्द में प्रेम की ख़ुशबू पावन
कल कल करती रस धारा भाषा हमारी
बोल चाल में खिलते दिल के कंवल
आनंद की चलती अमृत धारा भाषा हमारी
जब मिलता कोई किसी कोने में अनजान
हृदय में धड़कती रक्त धारा भाषा हमारी
गंगा यमुना सरस्वती का मिलन होता त्रिवेणी
संगम सुगम बहती जल धारा भाषा हमारी
दो दिल बिछुड़ जाते समय के साथ
होता मिलन बहती अश्रु धारा भाषा हमारी
हिंदी बिंदी ललाट पर शोभा देती लाल
जेसे आकाश चहक बन तारा भाषा हमारी
अज्ञान से ज्ञान तक पूर्ण ताल मेल
अंधेरा दूर करती विचार धारा भाषा हमारी
मातृ भाषा आशा अभिलाषा शिक्षा दीक्षा ‘कागा’
परीक्षा समीक्षा प्रतीक्षा करती दोबारा भाषा हमारी
प्रकृति देगी पछाड़
प्रकृति से नहीं कर छेड़-छाड़
प्रकृति का खेल निराला देगी पछाड़
वातावरण शुद्ध रख अंदर बुद्ध रख
प्रकृति रख पवित्र प्रकृति देगी पछाड़
प्रदूषण फेल रहा चारों ओर आलूदगी
गंदगी मांदगी माह़ोल प्रकृति देगी पछाड़
जल जंगल थल अगन गगन मन
मेला कुचेला कीचड़ प्रकृति देगी पछाड़
जाति धर्म का ज़हर मत उगल
शांति रहा निगल प्रकृति देगी पछाड़
इंसान दुश्मन इंसान का होती हत्याऐं
बेटियों से बलात्कार प्रकृति देगी पछाड़
चोरी लूट खसोट बढ़ रहे अपराध
वनस्पति नहीं उजाड़ प्रकृति देगी पछाड़
पर्यावरण संरक्षण के कर प्रबंध पुख़्ता
प्रदूषण पर पाबंदी प्रकृति देगी पछाड़
स़दियों रहा पराधीन भूल गये ग़ुलामी
तोड़ नहीं समाज प्रकृति देगी पछाड़
गौ वंश की रक्षा कर ‘कागा’
बंद बूचड़ खाना प्रकृति देगी पछाड़
भारत का संविधान
सावधान संविधान से नहीं कर छेड़छाड़
ख़बरदार संविधान से नहीं कर खिलवाड़
संविधान अमनो अमान का पैग़ाम देता
बराबरी भाई-चारा का पैग़ाम देता
जीओ जीने दो का सार निचोड़
धर्म-निरपेक्ष का निष्पक्ष निज निचोड़
संविधान आग का दरिया मत खेल
जल कर ख़ाक होगा मत खेल
संविधान भारत की आत्मा अजर अमर
बुरी नज़र मत रखना अजर अमर
भारत अखंड खंड-खंड नहीं होगा
बांट नहीं खंड-खंड नहीं होगा
‘कागा’ आंच नहीं आने देंगे वादा
संविधान सुरक्षित रहेगा करते हम वादा
बराबरी
कोई ऊंच नीच नहीं आये एक द्वार से
कोई भेद भाव नहीं जाना एक द्वार पे
ईश्वर अल्लाह ने इंसान बनाया हाड मांस का
जिस्म में जान दी हवा झौंका सांस का
चेहरा काला सांवला गोरा रंग लाल रक्त का
काम भूख प्यास नींद समान चोर भक्त का
अंग बदन उज़्वा करते अपना काम समय पर
खान पान सूंघना देखना परखना सुनना समय पर
धर्म सौंप दिया मानवता का नर मादा जाति
वायू जल थल अगन गगन मौत जीवन साथी
‘कागा’ मानव ने कर मन-मानी किया कमाल
ईश्वर मारे ह़राम मानव काटे वो होता ह़लाल
आज कल
आधुनिक युवतियां अकस़र पैसे वाला पति चाहती है
परिवार नहीं अकस़र बंगला वाला पति चाहती है
सास ससुर ननंद देवर से कोई रिश्ता नहीं
मिंयां बीवी दोनों अलग अकेला रहना चाहती है
घूंघट से गुरेज़ सिर नंगा ज़ुल्फ़ खुले लटकते
तंग कपड़े चुस्त चढ़ी में रहना चाहती है
संस्कार सभ्यता का रत्ती भर सम्बंध प्रबंध नहीं
महंगी गाड़ी फटी जीन्स में रहना चाहती है
आई फ़ोन हाथ में पर्स भरा पैसों से
शोपिंग का शोक़ ब्रांडेड आईटम ख़रीदना चाहती है
मां बाप की पसंद का पति पसंद नहीं
ख़ुद की पसंद से शादी करना चाहती है
अल्हड़ जवानी में चिकनी चुपड़ी बातो में बहक
मां बाप का नाक कान कटवाना चाहती है
नाज़ नख़रे उठाते माता पिता सपने चकना चूर
पेहचान से कर मना ओझल होना चाहती है
यदा कदा भाग करती प्रेम विवाह कोर्ट में
बालिग़ का बहाना कर बग़ावत करना चाहती है
नया दौर बड़ा कमजो़र करो नियंतरण सब ‘कागा’
निगरानी करो छूट नहीं गड़बड़ी करना चाहती है
याद
याद ज़रूर आयेगी मेरे मरने के बाद
याद ज़रूर आयेगी मेरे बिछुड़ने के बाद
चंद दिन चर्चा चलेगी रंजो ग़म की
फिर भूल जाओगे मेरे मरने के बाद
मेरी ख़त़ा ख़ामी पर सब ख़ामोश ह़ुज़ूर
अच्छाई याद आयेगी मेरे मरने के बाद
ख़ूशी ग़म के आंसू बहाना अलग अल्ह़दा
नई रोनक़ आयेगी मेरे मरने के बाद
सांसों पर नहीं कर गुमान गु़रूर दोस्त
मेरी याद सतायेगी मेरे मरने के बाद
दुनिया का दस्तुर आना जाना नहीं ठिकाना
थोड़ी मायूसी छायेगी मेरे मरने के बाद
ह़क़ीक़त कुछ ओर अंदाजा़ कुछ ओर होता
पाकीज़ा नज़र आयेगी मेरे मरने के बाद
बेबस है हम क़ुदरत का करिश्मा क़बूल
दुनिया नया चाहेगी मेरे मरने के बाद
दौर रुकता नहीं किसी के बग़ैर ‘कागा’
नई क्रांति आयेगी मेरे मरने के बाद
शाश्वत प्रेम
माता पिता का प्रेम होता शाश्वत जग में
संतान होती संतुष्ट हृष्ट पुष्ट आश्वस्त जग में
माता की ममता पिता की क्षमता बड़ी अनमोल
शेष सारे बुलबुले पाणी पर चाहे मिश्री घोल
मा़ सोती गीले बिस्तर मल मूत्र सने पर
संतान को सुलाती स़ाफ़ सूखे बिछोने बने पर
रोते को लगाती सीने पिलाती दूध निचोड़ स्तन
कलेजे को कष्ट नहीं फहुंचे करती पूर्ण प्रयत्न
मां समेट लेती अपने आंचल में छिपा कर
कमर पर बेठाती बुरी नज़र से बचा कर
‘कागा’ पिता अपनी पीठ पर चढ़ाये बनता घोड़ा
ऊ़चा ऊपर कंधों पर चलते तेज़ गति दोड़ा
दशहरा
दशहरा दस शीश राजा रावण के काटे गये
दशरथ सुत राम द्वारा रावण के काटे गये
रूप धारण कर ऋषि का छल कपट किया
भिक्षा मांग माता जानकी से छल कपट किया
सीता थी सुरक्षित लक्ष्मण रेखा के घेरे में
चिंता नहीं थी रत्ती भर कोई घेरे में
राजा रावण बड़ा शक्ति-शाली स्वर्ण वर्णी लंका
नव ग्रह तैंतीस करोड़ देवता अधीन बजता डंका
राम ढूंढता रहा वन जंगल झाड़ी पहाड़ों में
हनुमान सुग्रीव संग छिपे रहते थे पहाड़ों में
हनुमान ने तलाश कर लंका जलाई पूंछ से
शूर वीर बांकुरों को पछाड़ हराया पूंछ से
रावण के भाई सपूत अहिरावण कुंभकरण विद्रोही विभीषण
मेघनाद जेसा महान योधा मारा गया युद्ध भीषण
विजय दशमी को मारा गया बीस भुजा धारी
दश शीश का दहन हुआ समय की बलिहारी
असोज नवरात्रि के बाद दशमी को मनाते दशहरा
‘कागा’ कलयुग चल रहा परम्परा यथावत मनाते दशहरा
इंसानियत
इंसान के बीच बग़ावत पैदा करे वो जलाद है
इंसान के बीच अ़दावत पैदा करे वो जलाद है
जाति जाल बिछा कर ऊंच नीच की करे नौटंकी
इंसान के बीच नफ़रत पैदा करे वो जलाद है
धर्म की आड़ में छूआ छूत भेद भाव करे
इंसान के बीच शरारत पैदा करे वो जलाद है
जानवरों का दूध पीता इंसान का पानी तक नहीं
इंसान के बीच ख़िलाफ़त पैदा करे वो जलाद है
स्वर्ण अवर्ण की खाई खोदे जाति पाति में बंटवारा
इंसान के बीच तफ़ावत पैदा करे वो जलाद है
ख़ून चढ़ाने पर जाति धर्म नहीं पूछे ऊंच नीच
इंसान के बीच हलाक़त पैदा करे वो जलाद है
फ़ालतू गुमराह कर पंगा मोल लेता दंगा फ़साद कराता
इंसान के बीच ह़रारत पैदा करे वो जलाद है
बिना किसी बिगाड़ ग़ल्त़ फ़हमी का शिकार बने ‘कागा’
इंसान के बीच ज़लालत पैदा करे वो जलाद है
दिल से दिल तक
दिल से दिल तक कोई रास्ता नहीं जाता
दिल से दिल मिलन कोई रास्ता नहीं जाता
पैदल चलना पड़ता ऊबड़ खाबड़ डगर डोल कर
दिल से मिल खिल जाता कमल डोल कर
ढूंढ लेता अपने जेसा हम सफ़र हज़ारों में
मिलता नहीं मन पसंद दिलबर हाट बज़ारों में
जब बहार आती चमन में खिलते रंगीले फूल
जब मिलते नये नवेले नशीले पुराने जाते भूल
दिल देना है दिल के बदले सोदा नहीं
क़द्र कर क़लब से प्यार कोई सोदा नहीं
‘कागा’ आरज़ू है उमंग है बिना मत़लब त़लब
मिलने की ख़्वहिश ख़तम बिना त़लब मत़लब
मा बाप का दर्शन
मां बाप का दर्शन पाया करें हर रोज़
चर्ण स्पर्श कर आशीष पाया करें हर रोज़
घमंड ग़ुरूर रोब रुतब्बा मां बाप की देन
प्रणाम कर प्रेम से जाया करें हर रोज़
स़ुबह सवेरे नाश्ता दोपहर शाम का खाना पीना
साथ बेठ ह़ंसी ख़ुशी खाया करें हर रोज़
मां बाप बुढ़े बुज़ुर्ग बच्चों जेसी फ़ित़रत फ़ालतू
गीत मंगल गुण गान गाया करें हर रोज़
त़बियत का तरो-ताज़ा ह़ाल चाल पूछ कर
दवा दारु का त़रीक़ा बताया करें हर रोज़
अपनी दिनचर्या व्यस्त जीवन सफल होने का रहस्य
नये अनुभव सोच समझ समझाया करें हर रोज़
मां बाप जेसा धणी धोरी नहीं कोई ‘कागा’
मां बाप की शरण आया करें हर रोज़
नियत-नीति
नियत नीति दोनों बदल नियति बदल जायेगी
नज़र नज़रिया दोनों बदल प्रकृति बदल जायेगी
मानसिक बंधुआ बना रखा स़दियों से लगातार
आचार विचार दोनों बदल परिस्थति बदल जायेगी
फूट डालो लूट डालो प्राचीन परम्परा पुरानी
वर्ण वर्ग दोनों बदल हस्ती बदल जायेगी
ऊंच नीच भेद भाव की भावना भरपूर
जाति पाति दोनों बदल बस्ती बदल जायेगी
छूआ छूत का भूत भगा दे दूर
ढोंग पाखंड दोनों बदल मस्ती बदल जायेगी
कहते हो कण-कण पत्ते में भगवान
झूठ झांसा दोनों बदल ज़बरदस्ती बदल जायेगी
दलित में नज़र नहीं आती आत्मा अमर
कथनी करनी दोनों बदल गृहस्थी बदल जायेगी
आरक्षण अपने आप गिर जायेगा ऊंधे मुंह
वर्गीकरण नफ़रत दोनों बदल स्थिति बदल जायेगी
धर्म में कमी नहीं नियत में खोट
आस्था वस्ता दोनों बदल सुस्ती बदल जायेगी
छल कपट लालच का मकड़-जाल ‘कागा’
अपना पराया दोनों बदल सृष्टि बदल जायेगी
सीने में दिल
हर इंसान के सीने में दिल धड़कता है
हर बंदे के सीने में दिल धड़कता है
किसी के आज़ाद किसी के गु़लाम कोमल निर्मल
किसी के कठोर पत्थर जेसा दिल धड़कता है
किसी के कायर कमज़ोर किसी के बहादुर बुलंद
किसी के धीरे चलती धड़कनें दिल धड़कता है
दिल की दास्तान निराली अजीबो ग़रीब ह़ालात होते
दिल का दर्द दिल में दिल धड़कता है
इतफ़ाकन दिल टूट जाता लफ़ज़ के लह़ज़े से
जोड़ नहीं सकते दोबारा तेज़ दिल धड़कता है
दिल बड़ा नादान कर देता ना-फरमानी ‘कागा’
किसी ग़ैर का हो जाता दिल धड़कता है
शिक्षक दिवस
पांच सितम्बर शिक्षक दिवस आस्था का प्रतीक
गुरु परम्परा प्रेम भाव काम पावन प्रतीक
गुरु देता ज्ञान गुरुकुल में भावना से
गुरु होता चेला के आस्था का प्रतीक
माता पिता परिजन देते सुंदर सलोनी सीख
विधा ज्ञान देता गुरु आस्था का प्रतीक
धर्म कर्म नीति अध्यात्मिक में करता प्रवीण
भौतिक सुख सम्पदा गुरु आस्था का प्रतीक
हर फ़न में दक्ष धनुर्विद्या तेरना आदि
घुड़ सवारी कला गुरु आस्था का प्रतीक
गुरु देता ज्ञान विज्ञान का भरपूर ‘कागा’
कराता आकाश यात्रा गुरु आस्था का प्रतीक
बहिन-बेटियों
हर रोज़ होती ह़वस़ का शिकार बहिन बेटियां
हर रोज़ होती मोत का शिकार बहिन बेटियां
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा निकला खोखला
हर रोज़ बली चढ़ती बे-शुमार बहिन बेटियां
घर आंगन गली कूचे गांव में मह़फ़ूज़ नहीं
दरिंदों के चुंगल में जाती मार बहिन बेटियां
नवरत्रि में होती पूजन कन्याएं केसा ढौंग ढकोसला
परिवार की आन बान जान शानदार बहिन बेटियां
स्कूल कॉलेज रह-गुज़र दरम्यान सुरक्षित नहीं अकेली
मन चले करते छेड़ छाड़ हज़ार बहिन बेटियां
जब बनती दुल्हनिया करता मांग दहेज की दुल्हा
मार पीट ज़ुल्म सितम से बेज़ार बहिन बेटियां
बहिन बेटियां माता बहिन होने के बावजूद ‘कागा’
घुट कर जीने को मजबूर अपार बहिन बेटियां
फ़िरश्ता
मां बाप जेसा फ़िरश्ता नहीं दुनिया में
मां बाप जेसा रिश्ता नहीं दुनिया में
दीदार हुआ दुनिया का दोनों की बदोलत
मां बाप जेसा नाता नहीं दुनिया में
परिवर्श कर लायक़ बनाया तालीम तरबियत देकर
मां बाप जेसा देवता नहीं दुनियां में
उंगली पकड़ चलना सिखाया गिरते को थाम
मां बाप जेसा वास्ता नहीं दुनिया में
तोतली ज़ुबान हलकाते पूछ-ताछ करते नादान
मां बाप जेसा दाता नहीं दुनिया में
हर ख़्वहिश मुकमल करते जेसा हो मुत़ालबा
मां बाप जेसा विधाता नहीं दुनिया में
तरक़्क़ी करने की तमना मां बाप करते
मां बाप जेसा वाबस्ता नहीं दुनिया में
भूल भटक जाते बीच सफ़र में अटक
मां बाप जेसा रास्ता नहीं दुनिया में
दुश्मन दुनिया में हर क़दम पर खड़े
मां बाप जेसा ज़ाब्ता नहीं दुनिया में
दुनिया में मत़लब के यार तैयार ‘कागा’
मां बाप जेसा राब्त़ा नहीं दुनिया में
ख़ुदार
ख़ुदारा ख़ुदार बन ग़द्दार नहीं बन क़ौम का
आदम ख़ादम बन ग़द्दार नहीं बन क़ौम का
ख़ुदी के ख़ात़िर अपना ज़मीर नहीं बेच बंदा
बिकाऊ बन नाम बदनाम नहीं कर क़ौम का
चंद चांदी के टुकड़ों की टकसाल की खनखन
सुन सुन्हरी नाक नहीं कटवा देना क़ौम का
ग़ैर की गोद आग़ोश में जाकर बेठ गये
सिर झुकाये शर्मसार नहीं करना किरदार क़ौम का
ग़रीबी में मुब्तिला ग़नीमत है गै़रत सालम सलामत
रूखी सूखी खाकर सिर ऊंचा रखा क़ौम का
काजल की कोठड़ी में रहकर कालिख नहीं लगाई
बदनुमा दाग़ नहीं दामन पर नाम क़ौम का
उथल पुथल होती रहती लटकी रहती तलवार सिर
ख़त़रा मंडराने के बावजूद वजूद बरक़रार क़ौम काम
क़ौम के क़रीब रहना चाहे ग़रीब हबीब ‘कागा’
ख़ून का रिश्ता ख़राब नहीं करना क़ौम काला
मरने के बाद
मरने के बाद अमीर ग़रीब एक जैसा
अंतर जीवन में है लाश एक जैसा
हिलता डोलता बोलता नहीं शरीर सुस्त शांत
दफ़न करो चाहे जलाओ कफ़न एक जैसा
दो गज़ ज़मीन दफ़न कफ़न की दरकार
चित्ता जलाने गाड़ने का त़रीक़ा एक जैसा
मौत सबका एक कोई जाति धर्म नहीं
ख़ून का रंग रूप स्वरूप एक जैसा
स्वर्ग नर्क समान कल्पना का शिगूफ़ा मात्र
ढोंग पाखंड में उलझा रखा एक जैसा
मरने के बाद जिस्म होता राख ख़ाक
ऊंच नीच भेद भाव नहीं एक जैसा
सा़सें हो जाती हवा मेंं हवा ‘कागा’
हवा का झोंका इंसान को एक जैसा
गुमशुद्धा की तलाश
दिल चोरी हो गया गुमशुद्धा की तलाश
बिना दिल अध-मरा जेसे लावारिस लाश
सांसें सिसक चल रही जिस्म हिलता डोलता
दिल कहां दोड़ गया गुमशुद्धा की तलाश
छोड़ चला गया अकेला रोती बिचारी आंखें
आंसू गिरते गालों पर गुमशुद्धा की तलाश
गुमराह कर चला गया अजनबी के साथ
कोई ठोर ठिकाना नहीं गुमशुद्धा की तलाश
कहां ग़ायब हो गया अजब ग़ज़ब कहानी
बहला फुसला अग़वा किया गुमशुद्धा की तलाश
गुलों की बूअ फेल जाती चमन में
नज़र नहीं आता अ़क्स़ गुमशुद्धा की तलाश
पैर पंख नहीं आंखों से ओझल ‘कागा’
बिना इजाज़त चला गया गुमशुद्धा की तलाश
बदगुमान
बदगुमान है बंदा तुम यह दुनिया किसी की नही
आज तेरी कल मेरी बदलती रहती किसी की नहींं
यक़ीन नहीं करना कभी कसी एरे ग़ैरे यार पर
कोई किसी का नहीं यह दुनिया किसी की नहींं
बाप दादा मेरी तेरी करते चले गये सालों पेहले
शाह गद्दा रुख़स़त हुए छोड़ कर किसी की नहींं
राम रावण कौरव पांडव देवता असुर शक्ति चली गई
किसी का नामो-निशान नहीं बाक़ी किसी की नहींं
महल क़िला गढ़ ख़ज़ाना ख़ूब थे हाथी घोड़ा पालकी
कुछ साथ नहीं चला अकेले गये किसी की नहींं
बच्चपन बीता जवानी गई बुढापा बड़ा बेकार कठिन ‘कागा’
सांसों का भरोसा नहींं पल भर किसी की नहींं
इंतज़ार
इंतज़ार की घड़ियां बड़ी लम्बी होती है
जान पेहचान अनजान बड़ी अजनबी होती हैं
दिन गुज़रता नहीं रात कटती नहीं निहार
ग़ुलामी की हथकड़ियां बड़ी लम्बी होती है
जब कोई बिछुड़ जाता अपना कारवां से
जलता दिल फुलझड़ियां बड़ी लम्बी होती है
गिन दिन जुदाई के उगलियों से लगातार
राह देख अंखड़ियां बड़ी लम्बी होती है
चमन में खिलते गुल गुलाब के ग़ज़ब
कलियों की पंखुड़ियां बड़ी लम्बी होती है
ढूंड खोज तलाश करते गांव में ‘कागा’
कूचे गलियां संकड़ियां बड़ी लम्बी होती है
शिक्षा
शिक्षा ग्रहण कर बंदा शिक्षा अकूत सम्पति
शिक्षा जेसी ओर नहीं कोई दोलत सम्पति
शिक्षा भिक्षा नहीं जो मांगने पर मिले
अर्जित की जाती बुद्धि से अकूत सम्पति
शिक्षा सम्पति की नहींं होती चोरी लूट
नहीं कोई बंटवारा बीच ब्रिरादरी अकूत सम्पति
आग नहीं जलाती नहीं पानी से भीगती
हवा नह उड़ा ले जाती अकूत सम्पति
सार मन बुद्धि चित्त में समा जाये
कर दे माला माल ख़ुशह़ाल अकूत सम्पति
सुरक्षा वास्ते कोई तिजोड़ी की ज़रूरत नहीं
सांगो पांग रोम रोम रमती अकूत सम्पति
बिना पैर चलती बिना पंख उड़ती हरदम
चांद तक यात्रा करा देती अकूत सम्पति
देश विदेश साथ चलती बिना स़ूरत मूर्त
ख़ोना ख़ोफ़ नही बिना वज़न अकूत सम्पति
गुरू देता गूढ़ मंत्र ज्ञान कर ध्यान
सिंचित करता मन बुद्धि से अकूत सम्पति
शिक्षक दिवस पर करें समर्पण निज आस्था
अर्पण करें दक्षिणा शिक्षा परीक्षा अकूत सम्पति
शिक्षा बिना घोर अंधेरा जग में जागो
शिक्षा करती उजाला चारों ओर अकूत सम्पति
शिक्षा देती मान सम्मान खुलते बंद द्वार
सैंकड़ों बंद तालों की चाबी अकूत सम्पति
ख़तरा नहीं किसी जाति धर्म का ‘कागा’
राम बाण औषधि अमृत अकस़ीर अकूत सम्पति
शिक्षक
शिक्षक समाज के संरक्षक देश रक्षक
शिक्षक समाज का दीपक देश रक्षक
स्वंय जल करता उजाला चारों ओर
दूर करता अंधेरा दमक चारों ओर
शिक्षक चमकता सितारा पूनम का चांद
रात अंधेरी रोशन करता चमक चांद
बिना तेल बाती जलता दीपक बन
अपने लहु से रोशन दीपक बन
गुरू मंत्र देता गेहरा ज्ञान का
अमृत रूपी वचन रस ज्ञान का
गुरू का महत्व पारस से बड़ा
पारस बनाये कंचन गुरू ज्ञानी बडा
भृंगी कर बंद कीड़ा मिट्टी में
करे गुंजन बनाये भृंगी मिट्टी में
‘कागा करिशमा गुरु का अनंत अपार
करो नमन वंदन गुरू का अपार
आरक्षण कोटा में कोटा
आरक्षण भीख नहीं जो मुफ़्त में मिल जाये
आरक्षण दान नहींं जो मुफ़्त में मिल जाये
आरक्षण उपहार स़दियों से सताये गये लोगों को
जाति गत न्याय संगत सताये गये लोगों को
संविधान प्रदत सहारा सम्बल सम्मान मर्यादा गरिमा वास्ते
अनुसूचित जाति जन जाति को मरियादा गरिमा वास्ते
छूआ छूत भेद भाव उपेक्षा का बोल बाला
वर्गीकरण का सुझाव कोटा में कोटा कर डाला
माल मक्खन मलाई चाट चाशनी चाटते छोड़ते खुरचन
बैगलाक करते नहीं पूरा डकार लेते छोड़ते खुरचन
देते धौंस धमकी संविधान को ख़तम करने की
तलवार रहती लटकी आरक्षण को खतम करने की
दो अप्रेल इक्कीस अगस्त को भारत बंद मिला
दाख के तीन पात स़ाबत नतीजा नहीं मिला
दो पाटों के बीच पिस रहे चक्की में
घर घाट के नहीं पिस रहे चक्की में
मंझधार में फंसे किशती हिचकोले खाती मांझी नहीं
किनारे खड़े पालतू तीतर डूबना त़य्य मांझी नहीं
‘कागा’ अपने हुए पराये बन गये दोगले दलाल
खंजर थामे हाथ तैयार खड़े करने को ह़लाल
जाति जन गणना
चाति है जाती नहीं हर धर्म मज़हब में मोजूद
कुंडली मार बेठी है हर धर्म मज़हब में मोजूद
वर्ण वर्ग ऊंच नीच बनाये गुण अवगुण कर्म कांड
कुल गोत्र खाप नस्ल हर धर्म मज़हब में मोजूद
धर्म मज़हब वर्ण वर्ग में जाति का बोल बाला
छूआ छूत भेद भाव हर धर्म मज़हब में मोजूद
कोई संत महंत महात्मा पीर फ़क़ीर फक्कड़ क़लंदर सिकंदर
ब्रह्मचर्य गृहस्थी वानप्रस्त सन्यासी हर धर्म मज़हब में मोजूद
कोई उत्पन्न मुख भुजा उदर चरणों से ऊंचा नीचा
कोई अमीर ग़रीब किसान हर धर्म मज़हब में मोजूद
कोई बन बेठे पोप पैग़म्बर शंकराचार्य नेता अभिनेता महान
नर मादा दो जाति हर धर्म मज़हब में मोजूद
भगवान ने इंसान बनाया इंसानियत धर्म मज़हब ख़ून एक
मानव की मानसिकता अलग हर धर्म मज़हब में मोजूद
धर्म मज़हब जाति में बांटा इंसान ने समाज को
जन गणना की मांग हर धर्म मज़हब में मोजूद
सत्ता की अंगड़ाई जम्हाई साझेदारी लड़ाई हर वर्ग में
इंसान जाग चुका हैं हर धर्म मज़हब में मोजूद
भाग्य विधाता आम मतदाता लोक तंत्र मे क़द्दावर ‘कागा’
जाति गणना एक उपचार हर धर्म मज़हब में मोजूद
पंखेरू
पंखेरू पंख फड़फड़ा रहा उड़ने वाला है
पैर डगमग लड़खड़ा रहा उड़ने वाला है
दाना पानी खाना पीना बंद मंद मुस्कान
बोल चाल बड़बड़ा रहा उड़ने वाला है
चेहरे की चमक ग़ायब बे-रोनक़ नूरानी
होशो ह़वास हड़बड़ा रहा उड़ने वाला है
आंखों का समुंदर सूखा बूंद नहीं पानी
गंगा जल गड़बड़ा रहा उड़ने वाला है
रोब रुतब्बा शानो शोक्त शैख़ी शेख़ी रुख़स़त
सांसों को उखड़ा रहा उड़ने वाला है
सहारा देने वाला बाज़मीर बंदा कमज़ोर ‘कागा’
अपना हाथ पकड़ा रहा उड़ने वाला है
भिखारी
तुम हम सब भिख-मंगे कोई नहीं दाता
वस्त्रों में हम सब नंगे कोई नहीं दाता
अभीर मांगे चुपके मन्नत मंदिर अंदर बेठ भीख
ग़रीब मांगते खुला ख़ेरात मंदिर बाहर बेठ भीख
अमीर मांगत भगवान से हाथ जोड़ कर विनति
ग़रीब भांगत इंसान से सिर झुका कर विनति
अमीर ले जाता संग प्रसाद पेड़ा मावा मिटाई
ग़रीब थामे हाथ ख़ाली कटोरा मांगता मावा मिठाई
अमीर देते चकमा चढ़ावा का चूरमा खीर का
ग़रीब नहीं करते कभी सोदा ग़ैरत ज़मीर का
अमीर आते तड़क भड़क से पोशाक रेशम मखमल
ग़रीब ओढ़ गंदी गूदड़ी चीत्थड़े तन मुरझाई शक्ल
ग़रीब देता दुआ अमीर को दिलो जान से
अमीर देता दुत्कार डांट झपट अकड़ अपमान से
‘कागा’ जाड़े में हांफता कांपता ठंड से ठिठुर
अमीर ग़रीब दोंनों कपड़ों में होते नंगे निष्ठुर
ऊंचा मुक़ाम
मेह़नत कर बंदा मिलेगा ऊंचा मुक़ाम
मेह़नत से मंज़िल मिलती ऊंचा मुक़ाम
सुस्त नहीं चुस्त दुरस्त बन बंदा
लायक़ होशियार को मिलेगा ऊंचा मुकाम
ख़िदमत कर ख़ल्क़ की नेक इरादा
बेदार किरदार को मिलेगा ऊंचा मुकाम
ज़माना क़द्र नहीं करता कमज़ोर का
बुर्दबार बहादुर को मिलेगा ऊंचा मुकाम
पंख है मगर ह़ोस़ला बुलंद नहीं
दमदार जानदार को मिलेगा ऊंचा मुकाम
इंसान की ओलाद बन इंसान आलीशान
ईमानदार वफ़ादार को मिलेगा ऊंचा मुकाम
राह में रहज़न खड़े रसूखदार ‘कागा’
शानदार ह़क़दार को मिलेगा ऊंचा मुकाम
पीड़ा
अब पीड़ा सहन नहीं होती रोती आत्मा
दया कर दयालू दीन पर प्रभू परमात्मा
कीड़ी को कण हाथी को मण देता
ग़रीब का गुज़ारा नहीं होता रोती आत्मा
दीमक को देता भोजन लकड़ी चाटने पर
हाड़ तोड़ करते मेह़नत भूखे रोती आत्मा
अजगर बड़ा आलसी मिल जाती रोज़ी रिज़्क़
पंछी उड़ते आकाश मिलता चुग्गा रोती आत्मा
लकड़ी में कीड़ा ज़िंदा रहता बिना खाये
ज़मीन अंदर बेशुमार जीव जीवित रोती आत्मा
मेंढक कहां होता ग़ायब गर्मी सर्दी में
बारिश बूंंदें पड़ते टर्र आत्मा रोती है
बंदे ने क्या बिगाड़ा तेरा मालिक ‘कागा’
तडप मरता नहीं न्याय आत्मा रोती हैं
शिखर
चाहें शिखर चल चढ़ झुक जाओ
घुटनों बल चल चढ़ झुक जाओ
राह ऊबड़-खाबड़ रहबर नहीं कोई
अपने बल चल चढ़ झुक जाओ
अकेला चल छोड़ साथ ग़ैर का
होगी मुश्किल चल चढ़ झुक जाओ
बिखरे कांटे पत्थर कंकर रोड़े अनेक
सावधान सम्भल चल चढ झुक जाओ
रख भरोसा अपने कदमों पर पक्का
ऊंचा उछल चल चढ झुक जाओ
उथल-पुथल देख घबराना नहीं कभी
मर्द मचल चल चढ़ झुक जाओ
पगडंडी नहीं बनाना होगा अपना जुगाड़
इरादा अटल चल चढ़ झुक जाओ
अपने दम पर चल हमदम ‘कागा’
मिलेगी मंज़िल चल चढ़ झुक जाओ
भेद भाव
उगते सूर्य को कर नमस्कार चढ़ाते जल लोटा
अस्त सूर्य को नही नमस्कार चढ़ाते जल लोटा
बंदा सूरज जल लोटा सब सलामत किसका कस़ूर
रात बीती भोर हुई दोबारा चढ़ाते जल लोटा
सूरज की किरणें पड़ती विशाल भू भाग पर
जो करता विश्वास बंदा वो चढ़ाते जल लोटा
अगर बत्ती धूप बत्ती दिया जलाते संध्या को
अंतर्मुखी बन करते ध्यान प्रात: चढ़ाते जल लोटा
मंदिर जाते घंटा बजाते करते आरती दर्शन चिंतन
हवन करते ज्योति जलाते ज्वाला चढ़ाते जल लोटा
चमत्कार को नमस्कार आस्था उमड़ आती रोम रोम
झुक रुक करते प्रणाम पावन चढ़ाते जल लोटा
मन का मेल मिटा नहीं चित्त चंचल चोर
मानव बन दानव जीव मारता चढ़ाते जल लोटा
छल कपट लोभ लालच कल्ह कलेश करता ‘कागा’
जाति बंधन में जकड़ा रहता चढ़ाते जल लोटा
घायल
घाव गेहरे है भरे नहीं
घाव हरे है भरे नहीं
तीखे शब्द बाण लगे है
घाव खरे है भरे नहीं
चोट लगी तन बदन पर
बिखर बनी घाव भरे नही
दिल के घाव फफोले बने
फूट गये मगर भरे नहीं
मरहम नहीं मिलता नमक तैयार
नश्तर पर ज़हर भरे नहीं
जब ज़िक्र होता ज़ुल्म का
दर्द याद आता भरे नहीं
मरे नहीं ज़ि़दा है ‘कागा’
ज़ख्म भी ज़िदा भरे नहीं
अंत होगा
अंत होगा आतंक का एक दिन
आतंक का अंत होगा एक दिन
सच्च का सूरज उदय करेगा उजाला
रात का अंत होगा एक दिन
बारिश होगी हरियाली होगी पृथ्वी पर
तपत का अंत होगा एक दिन
बसंत बहार आयेगी चमन में झूम
पतझड़ का अंत होगा एक दिन
जेल में जन्म होगा कृष्ण का
कंस का अंत होगा एक दिन
सीता सुरक्षित लोट आयेगी अवध नगरी
रावण का अंत होगा एक दिन
भोली भाली जनता भ्रमित नहीं करो
पाखंड का अंत होगा एक दिन
चार दिन की चांदनी फिर रात
झूठ का अंत होगा एक दिन
ऊच नीच भेद भाव छूआ छूत
जाति का अंत होगा एक दिन
दाम नहीं नाम कमाना तुम ‘कागा’
दोलत का अंत होगा एक दिन
कलयुगी ओलाद
नहीं माता पिता हमें हाय पैसा चाहिये
नहीं रिश्ता नाता हमें हाय पैसा चाहिये
भाई बहिन जाये भाड़ मे क्या काम
पैसा भाग्य विधाता हमें हाय पैसा चाहिये
मां बाप ने फ़र्ज़ निभाया एह़सान नहीं
कोई नहीं वास्त़ा हमें हाय पैसा चाहिये
पैसे जेसा कोई दोस्त नहीं दुनिया में
पैसा रिश्ता नाता हमें हाय पैसा चाहिये
पैसा पद पैसा क़द पैसा मद मस्ती
पैसा जीवन दाता हमें हाय पैसा चाहिये
कपूत कहो चाहे सपूत फ़र्क़ नहीं पड़ता
पैसा भाई भ्राता हमें हाय पैसा चाहिये
बिना पैसा सगाई लुगाई किस काम की
पैसा मत दाता हमें हाय पैसा चाहिये
पैसे से कर प्यार बाक़ी सब बकवास
पैसा छत्र छात्ता हमें हाय पैसा चाहिये
बिना धन दोलत अपने होते पराये ‘कागा’
पैसा पिता माता हमें हाय पैसा चाहिये
मोत
दुनिया में एक मोत सच्च है बाक़ी सब झूठ
दुनिया फ़ानी है फ़ोत सच्च है बाकी सब झूठ
दुनिया दो दिन का मेला एक दिन जाना अकेला
घड़ी पल बदले दुनिया हर किसी को जाना अकेला
दुनिया में एक मोत सच्च है बाक़ी सब झूठ
रिश्ते नाते मतलब के नहीं कोई अपना जग में
सब स्वार्थ के साथी परमार्थी नहीं कोई जग में
दुनिया में एक मोत सच्च है बाक़ी सब झूठ
मां बाप धणी लुगाई बहिन भाई कोई अपना नहीं
धन दोलत मह़ल मीनार क़िला ज़िला कोई अपना नहीं
दुनिया में एक मोत सच्च है बाक़ी सब झूठ
ढौंग पाखंड कर माया जोड़ते माया काया छाया समान
संतोष धन सबसे अखंड धन शेष धन धूल समान
दुनियां में एक मोत सच्च है बाक़ी सब झूठ
‘कागा सांसों का क्या भरोसा कब छोड़ चली जायें
मिल जुल करो प्रेम आपसी कब छोड़ चली जायें
मां-बाप
माता जेसी ममता नहीं कोई इस जग में
पिता जेसी क्षमता नही कोई इस जग में
मां अपनी कोख में नो माह पालती हैं
जन्म पर अपना दूध निचोड़ पिला पालती है
मल मूत्र स़ाफ़ कर बनाती सुंदर छवि सलोनी
बद नज़र बचाव से लगाती काली बिंदी सलोनी
देती लोरी सुरीली गेहरी नींद आने वास्ते मुस्काती
पालने में सुला झूलाती झुंनझुना बजा गाती मुस्काती
स्वंय सोती गीले पर हमें सूखे सेज पर
पोतड़े धोती हर पल हरदम सुलभ सहेज कर
जाग जाती क्षण भर में रोना सुनते सावधान
छाती से चिपका दूध देती सरपट सुनते सावधान
दांत आते देख बनाती पतला दलिया खाने को
मक्खन मधु चटाती घुटी पिलाती ह़ल्वा खाने को
धूप सर्दी से करती सुरक्षा आंचल में छुपाये
बुरी नज़र हवा से रखते आंचल में छुपाये
मां करती लाड कोड कमर तक बिठा कर
पिता उठाता अपने मज़बूत कंधों पर बिठा कर
दर्शन कराता दुनिया का उंगली के इशारे पर
हर ख़्वहिश कराता पूरी पल में इशारे पर
‘कागा’ ओलाद मां-बाप की जान होती हैं
केसे क़र्ज़ चुकाये आन बान शान होती हैं
जागा समाज
सोये समाज को जगाया गेहरी नींद से
सोया समाज जाग चुका गेहरी नींद से
ता़ने मिले उल्हाने मिले गंदी भदी गालियां
ऊंची आवाज़ देकर पुकारा गेहरी नींद से
झंझोड़ा झकझोरा गुदगुदी की बेठ बग़ल में
खर्राटे मारते रहे कुम्भकरणी गेहरी नींद से
ढोलक तंदुरे ख़ूब बजाये वीणा वाणी गाई
टस-मस नहीं जागे गेहरी नींद से
शिक्षा का प्याला भर कर पिलाया जबरन
तब जाकर करवट बदली गेहरी नींद से
अंगड़ाई जम्हाई लेकर आंखें खोली ख़ुमार भरी
आलस टूटी जगी उमंग गेहरी नींद से
भीम राव ने अलख जगाई शिक्षा की
फूंक गुरु मंत्र जागे गेहरी नींद से
शिक्षा संगठन संघर्ष का नारा दिया ‘कागा’
जागा समाज करता तरक्की गेहरी नींद से
अ़दल इंस़ाफ़
बहिन बेटियों की पैदाईश क़ुदरत की अमानत है
बहिन बेटियों की अस्मत मेह़फ़ूज़ नहीं लानत है
आसमान से उतर आई ह़ूर परी बहिन बेटियां
घर की रौनक़ रोशनी चमक दमक बहिन बेटियां
चमन में चहकती तितली बन कोमल कली चुलबुली
हर पंखुड़ी में ख़ुशबू फूल बनते मचती खलबली
केसी फ़िज़ा चली हर गली में रहज़न खड़े
इंसान की शकल में भूखे भेड़िये ह़ेवान खड़े
दबोच कर नोच लेते बड़ा बेशर्म बेनस्ल बदमाश
बदह़वास बिलख सिसक कराहती रहती बेह़ुरमती करते बदमाश
चीख़ चिलाना कोई नहीं सुनता अंधेर नगरी में
तड़प तडप कर मर जाती अंधेर नगरी में
फ़रियाद अ़र्ज़ कोई नहीं सुनता मिलता नहीं इंस़ाफ़
ह़ाकम अंधा क़ातल घूमता खुले आ़म ख़रीद इंस़ाफ़
‘कागा’ ज़ालिम सितमगर करते बेड़ा ग़र्क़ ग़रीबों का
ज़ुल्म की त़क़्त पर छीन लेते ह़क़ ग़रीबों का
हिंदी दिवस
चौदह सितम्बर हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
हिंदी मातृ भाषा हिंदी राष्ट्र अभिलाषा हिंदी आशा
जन वाणी हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
हिंदी हमारी लाल बिंदी ललाट लगाई लाली लालिमा
गांव शहर हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
जन्म से बच्चों की किलकारी हिंदी में हूब्हू
घर आंगन हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
हा-हा कर ठहाका लगाता हर बच्चा बुढ़ा
अऊं-सऊं हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
बीन बांसुरी साज़ सारंगी शहनाई की तान हिंदी
सुर स्वर हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
बारह कोस बोली बदले धीमी अकड़ खड़ी धाकड़
सिंधी से हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
सिंधु तट पर रचना हुई चार वेद पुराण
मोअन दड़ो हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
जन गण राष्ट्र गान में सिंध का स्मर्ण
मातृ भाषा हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
ऋषियों मुनियों का विचरण सिंधु घाटी पर अडिग
साक्षात प्रमाण हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
सिंधी हिंदी दोनों एक समान सभ्यता संसकृति ‘कागा’
जुड़वा बहिनें हिंदी दिवस धाम धूम से मनायें
भूख प्यास
भूख हर किसी को लगती चाहे अमीर ग़रीब
प्यास हर किसी को लगती चाहे अमीर ग़रीब
भूख बुरी बला कुत्ता काट खाता मांस बंदा
नींद हर किसी को आती चाहे अमीर ग़रीब
प्यास लगने पर पीता गंदा पानी कीचड़ इंसान
ख़्वाहिश हर किसी की होती चाहे अमीर ग़रीब
पेट पूर्ती वास्ते करता इंसान रोटी की चोरी
आग हर किसी के होती चाहे अमीर ग़रीब
नर मादा दोनों की जोड़ी बनाई प्रकृति ने
ह़वस हर किसी को होती चाहे अमीर ग़रीब
जीना मरना त़य्य शुद्धा बचना मुमकिन नहीं होता
मोत हर किसी की होती चाहे अमीर ग़रीब
हवा के बराबर सारे हवा दवा दुआ ‘कागा’
चाहत हर किसी की होती चाहे अमीर ग़रीब
मातृ भाषा
हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा
हिंदी हिंद की मातृ भाषा
हिंदी आम बोल चाल मधुर
सरल शब्दों में पिरोई सुंदर
हिंदी की वर्ण माला मोहनी
लिखावट सजावट फटाफट सुलभ सोहनी
हिंदी से होता हृदय हर्ष
कटुता नहीं आती बीते वर्ष
हिंदू मुस्लिम सिर जैन इसाई
संदेश देती सब भाई भाई
पूर्व से पश्चिम उतर दक्षिण
दिखाई देते एक ही लक्षण
रंग रूप काला सांवला गोरा
कोई भेद भाव नहीं छिछोरा
वेष भूषा भिन्न भिन्न अनेक
राष्ट्र भाषा पर सब एक
राष्ट्र भाषा जन गण एकता
‘कागा” मातृ भाषा में एकता
बंदगी
बंदगी कर बंदा ज़िंदगी दो दिन की
दरिंदगी छोड़ दरिंदा ज़िंदगी दो दिन की
इंसान की ओलाद है ह़ेवान नहीं बन
संजीदगी कर बंदा ज़िंदगी दो दिन की
अपने घर में जवान बहिन ज़रुर होगी
शर्मदंगी कर बंदा ज़िंदगी दो दिन की
जवान है जोश है होश रख ख़ुदारा
गंदगी छोड़ बंदा ज़िंदगी दो दिन की
ह़वस का शिकार नहीं बना पराई बहिन
पसंदगी छोड़ बंदा ज़िंदगी दो दिन की
पराई बहिन बेटी अपनी समान जान ‘कागा’
नुमाइंदगी छोड़ बंदा ज़िंदगी दो दिन की
आरक्षण अक्षुण
आरक्षण ऊंच नीच भेद भाव छूआ छूत के कारण मिला
करो संरक्षण अछूत वर्ग को ग़ैर-बराबरी के कारण मिला
जातियों को स़दियों से ज़लील किया गया ग़ुलाम बना कर
खान पान ओढना पहनना का अधिकार नहीं ग़ुलाम बना कर
घुटनों से नीचे नंगा बदन ऊपर लिप्टी लीर तार लंगोटी
स्तन खुले लटकते बेबस बिचारी नारी लीर तार-तार लंगोटी
गर्दन में टांगी हा़ंडी टूटी फूटी मिट्टी की थूकते अंदर
कमर में बंधा झाड़ू घास फूस का चलते जेसे बंदर
वन जंगल में बसेरा डेरा खुला झाड़ी की ओट में
सर्दी गर्मी बारिश चिल-चिलाती धूप झाड़ी की ओट में
मुर्दा जानवरों का मांस खाने को मजबूर फल फूल पत्ते
प्यास बुझाते अपनी जलाश्यों में जाकर खाते फल फूल पत्ते
इंसानों से अ़दावत जानवरों से दोस्ती कोई धर्म दीन नहीं
शिक्षा दीक्षा से कोसों दूर रस्मो-रिवाज धर्म दीन नहीं
ज्ञान ध्यान गुरु चेला वेद मंत्र श्लोक की परिभाषा नहीं
जिभ्या काटी जाती मंत्र बोलने पर श्लोक की परिभाषा नहीं
कोई सुन लेता स्वर किसी वेद मंत्र का श्लोक शब्द
कानों में घोला जाता शीशा करते बेहरा सुन लिया शब्द
वाल्मिक एकल्लव्य रविदास कबीर को मिला अध्यात्मिक आत्म बोध महान
हृदय परिवर्तन किया अपनी छुपी प्रतीभा प्रदर्शीत आत्म बोध महान
रामायण लिख डाली बिना लेखनी कागद पूर्व घटित घटना सांची
सीता बनवास जीवन में लव कुश दोनों पुत्रों ने बांची
रविदास ने भक्ति शक्ति से किया राज मह़ल में प्रवेश
संत कबीर ने अपनी अगोचर वाणी से किया पूर्ण प्रवेश
एकल्लवय ने खोया अपना अंगूठा गुरु दक्षिणा में कर अर्पण
अम्बेडकर ने अपने चार रत्नों की दी बलि कर समर्पण
भारत मुल्क के संविधान में किया आरक्षण का पुख़्ता प्रावधान
असहज पीड़ा ज़ुल्म सितम को मिटाने हेतू किया पुख़्ता प्रावधान
‘कागा’ कर रहे हम एसी विषम परिस्थतियों में छेड़ छाड़
आरक्षण का वर्गीकरण क्रिमी लियर समीक्षा परीक्षा परीक्षण चीर फाड़
छू लूं मैं आसमां
ख़्वाहिश है मेरी छू लू मैं आसमां
आरज़ू है मेरी छू लूं मैं आसमां
मां की ममता हूं मैं चेहरा चरित्र
तमना है मेरी छू लूं मैं आसमां
पापा की परी हूं चुलबुली चिड़िया गुड़िया
चाहत है मेरी छू लूं मैं आसमां
निर्मल नर्म नशीली कोमल तोतली मेरी ज़ुबान
इच्छा है मेरी छू लूं मैं आसमां
दिल में धधक रही आग ज्वाला बनूं
मुराद है मेरी छू लूं मैं आसमां
उड़ती ऊंची चील होती नज़रों से ओझल
ह़सरत है मेरी छू लूं मैं आसमां
तितली उड़ती हर कली फूल को चूमने
त़लब है मेरी छू लूं मैं आसमां
बादल से बूंद बरसती रिमझिम कर झमाझम
मर्ज़ी है मेरी छू लूं मैं आसमां
चांद की ओट टिम टिम करते तारे
शोक़ है मेरा छू लूं मैं आसमां
आसमान का छोर नहींं रंग नीला ‘कागा’
अरमान है मेरा छू लूं मैं आसमां
माक्खन-चोर
गली-गली में शोर मचा है
कान्हा लल्ला माक्खन चोर बच्चा है
गोपियों में गपशप चुपचाप चर्चा चलती
नन्हा मुन्हा चोर शोर मचा हैं
नंद घर आनंद हुआ कुशल मंगल
यशोधा चित्त चंचल शोर मचा है
बड़ा नट खट मक्खन चुरा लेता
रंगे हाथ पकड़ते शोर मचा है
सख़ाओं के साथ खेल मिट्टी खाता
मुख ब्रह्मांड समाया शोर मचा है
कंस ने मारने का किया प्रयास
हुआ असफल उदास शोर मचा है
पूतना को ज़हरीला दूध पिलाने भेजा
मार गिराया नीचे शोर मचा है
भोले बाबा बम बम बोले होले
दर्शन करने आये शोर मचा है
गोपियों की गिला शिक्वा यशोधा से
तेरा लल्ला चोर शोर मचा है
माक्खन चोर खाता लुका छुपी मक्खन
दोड़ जाता दूर शोर मचा है
पीत वस्त्र मोर पंख मुक्ट ‘कागा’
पक्का माक्खन चोर शोर मचा है
महारानी वसुन्धरा राजे
जब आयेगी वसुन्धरा राजे मैदान में
तब आयेगी जान बेजान जान में
बीमारू प्रदेश को स्वस्थ्य स्वच्छ बनाया
नर्क से निकाल सुंदर स्वर्ग बनाया
दो बार मुख्य मंत्री बनी राजस्थान
भारत में आलीशान बना उत्तम राजस्थान
विकास की गंगा बहाई कलकल कर
नदियां बहती बहाव कलकल कर
हरियाली छाई चारों ओर चमकती दमकती
जन मानस के हृदय ख़ुशियां छलकती
मरूधरा मालाणी मेवाड़ की एक मांग
दोबारा लोट आये शेखावटी की मांग
बागड़ ढूंढाड़ मारवाड़ मेवात एक नाम
जनता करती याद वसुंधरा एक नाम
‘कागा’ प्रजा परम्परा प्रकृति चाहती राजे
शासन प्रशासन अनुशासन चाहता वसुन्धरा राजे
क्या कस़ूर था उसका
क्या कस़ूर था उसका जलाया गया चित्ता पर
सत्ती के नाम साथ जलाया गया चित्ता पर
पति मरा अपनी मोत पत्नी का क्या कसूर
जोर जबरन जलाया गया अबला का क्या कस़ूर
लक्ष्मण रेखा के बावजूद सीता का किया अपहरण
भरी सभा में किया द्रोपदी का चीर हरण
नारी की कोख से उत्पन होता पुरूष प्रधान
पीता कच्चा दूध मां स्तन से पुरूष प्रधान
करता ज़ुल्म सितम मातम नारी पर अनंत अपार
काम वासना के वशीभूत होकर करता ज़ोरी बलात्कार
छल कपट लोभ लालच बहला फुसला भयभीत कर
करता शील भंग धमकी क़त्ल की भयभीत कर
धर्म जाति का भ्रम फेला कर करता कुकर्म
हरदम होता बहिन बेटियों से सरे-आम दुष्कर्म
रक्षा बंधन जेसा पावन पवित्र पर्व गर्व होता
बहिन भाई की सुरक्षा पर वचन गर्व होता
‘कागा’ कलयुग काल में नहीं किसी की गारंटी
मुखोटा लगा बेठे भूखे भेड़िये नहीं कोई गारंटी
दो दिल
काश दो दिल होते दूसरा आपको देते
एक था सौंप दिया दूसरा आपको देते
जिस्म जनईफ़ कांप कर लड़खड़ा रहा कमज़ोर
मगर दिल जवान जोशीला दूसरा आपको देते
लाठी के सहारे लर्ज़ जाता फिसल कर
दिल में जोश जुनून दूसरा आपको देते
दिल में लगी आग बुझती नहीं बुझाये
गिरता आंखों से आब एक आपको देते
दिल में ज़ख़्म के दाग़ दिखाऊं केसे
हमदर्द नहीं मिलता कोई दूसरा आपको देते
दो दिलों का मिलन हो चूका ‘कागा’
एक म्यान एक ख़ंजर दूसरा आपको देते
ह़िस़्स़ेदारी
जिसकी जितनी आदम-शुमारी उनकी उतनी ह़िस़्सेदारी
जनगणना करो जाति की उनकी उतनी भागीदारी
पिछड़ा अति पिछड़ा अनुसूचित जाति जन जाति
आरक्षण का प्रावधान लागू उनकी उतनी ह़िस़्स़ेदारी
देश के संसाधन सम्पति पर समान अधिकार
समान नागरिक संहिता पर उनकी उतनी ह़िस़्स़ेदारी
मतदान करता मुल्क में हर नर मादा
मत गणना से अधिकार उनकी उतनी ह़िस़्स़ेदारी
जल थल वायु आसमान कल कारख़ाना मिलें
समीक्षा परीक्षा परक्षण करो उनकी उतनी ह़िस़्स़ेदारी
बंटवारा करो बराबरी का बिना लागलपेट ‘कागा’
ह़क़ मिले सबको समान उनकी उतनी ह़िस़्स़ेदारी
भारत बंद
भारत बंद की घोषणा हो चुकी जाग जाओ
सोये पड़े हो गेहरी नींद में जाग जाओ
आरक्षण में क्रीमी-लेयर वर्गी करण का ह़ुकम
कटोती की तलवार ऊपर आ चुकी जाग जाओ
इक्कीस अगस्त को समस्त भारत बंद का एलान
समाज विघटन की विपदा आ चुकी जाग जाओ
खुसर फुसर हो रही थी सालों से लगातार
अब हक़ीक़त साज़िश सामने आ चुकी जाग जाओ
अपने अधिकारों वास्ते आवाज़ उठाना कोई गुनाह नहीं
ह़क़ हड़पने की आफ़्त आ चुकी जाग जाओ
कुम्भकरणी नींद छोड़ो कूद जाओ रण भूमि में
दुश्मन ललकार रहा मुस़ीबत आ चुकी जाग जाओ
जाति धर्म ऊंच नीच में बंट चुके हो
टुकड़े-टुकड़े की नोबत आ चुकी जाग जाओ
इंसान की नफ़रत इंसान से यह केसी दुनिया
भेद भाव की आंच आ चुकी जाग जाओ
शांति प्रिय बंद किसी को नहीं आये खरोंच
सावधान चलना चाल चुनोती आ चुकी जाग जाओ
असामाजिक तत्वों पर पेनी नज़र करे घुसपेठ घमासान
संयम परीक्षा की घड़ी आ चुकी जाग जाओ
दो अप्रेल के घाव अभी तक हरे ‘कागा’
भरे नहीं नई निशानी आ चुकी जाग जाओ
पर्यावरण
पर्यावरण बचायें प्रदूषण फेल चुका चारों ओर
प्रदुषण फेल चुका करें मिल जुल ग़ौर
अंधा धुंध हो रही जंगल की कटाई
माह़ोल मेला मलीन हो चुका चारों ओर
कारखानों की चिमनियां उगलती काला धूंआ
सांस लेना मुश्किल हो चुका चारों ओर
मोटर मशीन धक धक करते बड़ा कोलहाल
कान पक बहरा हो चुका चारों ओर
दम घुट रहा जीवन बना आफ़्त मुस़ीबत
प्रदुषण का पासा पल्ट चुका चारों ओर
अ़दावत बग़ावत नफ़रत का बोल बाला ‘कागा’
वातावरण गंदा ग़लीज़ हो चुका चारों ओर
गृहिणी
घर गृहस्थ गृहिणी से मर्द मोहरा है
सुनी अनसुनी कर देता जैसे बहरा है
चिल चिलाती धूप सर्दी में करता मेह़नत
उफ़ तक नहीं करता मर्द ठहरा है
बारिश की बूंदें बरसती रिमझिम झमाझम
कड़कती बिजली चमक दमक राज़ गेहरा है
चारदीवारी में करती चूल्हा चौका घर नारी
मर्द बेचारा दर्द भरा देता पेहरा हैं
चहक महक करती चंचल घर आंगन में
नारी के नख़रे निराले मर्द चेहरा हैं
नारी बिना घर परिवार आधा अधूरा ‘कागा’
मर्द सिरमोर मन मोर सिर स़ेहरा हैं
रेशम की डोर
राखी मेरी रेशम की डोर
जिसका नहीं कोई अंतिम छोर
सावन की पावन राखड़ी पूनम
मेरे बीर रेशम की डोर
आगे कर अपनी हाथ कलाई
मेरे भाई रेशम की डोर
मेरे सपने अरमान गूंथे सारे
मां जाया रेशम की डोर
नहीं धागा नहीं कोई सूत
मां सपूत रेशम की डोर
मां छोड़ चली तेरे भरोसे
पीहर प्राण रेशम की डोर
आंगन की उम्मीद मन में
बांधने आई रेशम की डोर
जब तक सांस आश रहेगी
भईया मेरे रेशम की डोर
तेरा मेरा कलेजा एक ‘कागा’
तन अलग रेशम की डोर
राखड़ी पूनम पर्व
भाई बहिन का पावन पर्व राखड़ी पूनम
बहिन भाई का गोर्व गर्व राखड़ी पूनम
सावन पूर्ण-मास का अंतिम पखवाड़ा पवित्र
बहिन बांधे राखड़ी भाई कलाई पावन पवित्र
चूनडी़ की चाहत छोड़ मांगना एक वचन
मात पिता की सेवा मांगना एक वचन
बहिना आप करना सास ससुर की सेवा
जीवन होगा सफल सुखी मिले आनंद मेवा
बहिन भाई का प्रेम अमर रहे आजीवन
रक्षा बंधन का पर्व अमर रहे आजीवन
मात पिता सास ससुर की सेवा चाकरी
सुंदर संस्कार सुखी परिवार की सेवा चाकरी
राखी का धागा बांधा कच्चा नहीं पक्का
‘कागा’ तोड़ नहीं सके कोई मज़बूत पक्का
पाषाण
प्यार में असफल के हृदय हो जाते पाषाण
प्यार में सफल के हृदय पिघल जाते पाषाण
पहाड़ों की चोटियों से बहते कल-कल झरने
बीच राह हो जाते पड़े गोल मटोल पाषाण
पत्थर से बनते सुंदर छवि के घर मकान
अंदर करते आराम मिटाते थकान पहाड़ों के पाषाण
पत्थर तलाश तराश बनाते मूर्ति भगवान की शिल्पकार
छेनी हथोड़े की ठोकरें हज़ार झूलते कठोर पाषाण
पत्थरों की खदान से मिलते हीरा मोती सोना
यदा कदा उगलते आग ज्वाला मुखी बन पाषाण
पत्थर बन जाते मार्ग-दर्शक मील का पत्थर
ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर बिखरे पड़े रहते पाषाण
पत्थरों से पुल निर्माण करते कुशल कारीगर ‘कागा’
कठोर दिल नहीं बनाना कभी अपना हृदय पाषाण
आरक्षण
आरक्षण पर आफ़्त संदेशा सच्च निकला
आरक्षण पर मुस़ीबत अंदेशा सच्च निकला
गवाले की गप्प ठठोली भेड़िया आया
चरवाहे का झूठ झांसा सच्च निकला
आरक्षण पर आरी कोटे में कोटा
आरक्षण बंद का हाका सच्च निकला
संविधान की सौग़ात रास नहीं आई
अपने पराये का फ़र्क़ सच्च निकला
आरक्षण की पीड़ा पेट में मरोड़ें
टुकड़ों में बांटना त़रीक़ा सच्च निकला
संविधान ख़त्म आरक्षण बंद मुख्य मुद्दा
साज़िश का भंडा फोड़ सच्च निकला
बहुजन का कौन दोस्त कौन दुश्मन
ह़क़ हड़प की हलचल सच्च निकला
आरक्षण पर ख़ंजर लटका करेगा नुक़स़ान
आरक्षण बंद का अनुमान सच्च निकला
राजनीति की रोटियां सेंकने का समय
गोटियां फ़िट करेंगे ग़द्दार सच्च निकला
जैसा केला पात में पात होता
जात में जात पात सच्च निकला
आरक्षण पर कैंची काट करेगी टुकड़े
सुई की नहीं ओक़ात सच्च निकला
आओ आरक्षण बचाओ देश बचाओ ‘कागा’
जीओ जीने दो नारा सच्च निकला
बग़ावत
बग़ावत के बीज बोये जा रहे है
अ़दावत के बीज बोये जा रहे है
इंसान जानवर बचाव की बात करता पुरजो़र
इंसान का करता क़त्ल सरे आ़म पुरज़ोर
इंसानियत चली गई ह़ेवानियत ह़ावी हो गई
उलफ़त अलविदा कर नफ़रत हावी हो गई
सूरज चांद नहीं बदले इंसान बदलता रहा
रोशनी चांदनी नहीं बदले इंसान बदलता रहा
मिट्टी से बना इंसान सोने से नहीं
मिट्टी में मिल जाना सोने में नहीं
मुद्दतों बाद ग़ुलाम रहा ओछी सोच से
आज़ादी बाद उबरा नहीं ओछी सोच से
‘कागा’ जाति धर्म के झंझट को छोड़ा नहींं
ऊंच नीच भेद का बंधन तोड़ा नहीं
प्राचीन परम्परा
फूट डालो राज करो प्राचीन परम्परा
फूट डालो लूट डालो प्राचीन परम्परा
ईश्वर ने इंसान बनाया प्रकृति प्रारब्ध
इंसान ने धर्म बनाया प्राचीन परम्परा
इंसान ने भगवान बनाये तथा कथित
अन-देखी स़ूरत मूर्त प्राचीन परम्परा
इंसान ने अपने घर बनाये सुंदर
कल्पना को पंख दिये प्राचीन परम्परा
इंसान ने जाति बनाई जात पात
ऊंच नीच भेद भाव प्राचीन परम्परा
ऊंच को आरक्षण आजीवन अमर
निम्मन को नकारा गया प्राचीन परम्परा
वर्ण विच्छेद कर बांटे गये वर्ग
ब्रह्मण क्षत्री वैश्य शूद्र प्राचीन परम्परा
बन गये ग़ुलाम एरों ग़ैरों के
स़दियां बीत गई बर्बाद प्राचीन परम्परा
पराधीन रहे ज़ुल्म सहे दिन रात
सोया स्वाभिमान जाग उठा प्राचीन परम्परा
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हम भाई
का नारा गूंजा बुलंद प्राचीन परम्परा
अनेकता में एकता आई ख़ून खोला
मिल जुल लड़ी लड़ाई प्राचीन परम्परा
जाति धर्म को रख ताक पर
लाम-बंद लोहा लिया प्राचीन परम्परा
आख़िर आज़ादी मिली बर्बादी से ‘कागा’
हम इंसान धर्म इंसानियत प्राचीन परम्परा
हिंदी राष्ट्र भाषा
हिंदी राष्ट्र की अभिलाषा हिंदी राष्ट्र भाषा
हिंदी हम हिंदुस्तान वत़न हिंदी राष्ट्र भाषा
मातृ भूमि पर मर मिटने वाले हम
ख़ून खोलता वत़न वास्ते हिंदी राष्ट्र भाषा
सौंधी मिट्टी महके चेहके चित्त तन मन
सांसों से बढकर प्यारी हिंदी राष्ट्र भाषा
मुल्क हमारा इंद्रधनुषी अनंत रंग रूप स्वरूप
हिंदी कपाल की बिंदी हिंदी राष्ट्र भाषा
हर शब्द में शान जान आन बान
हिंदी पर जान क़ुर्बान हिंदी राष्ट्र भाषा
आओ हम मिल जुल अभियान चलायें ‘कागा’
मिले सम्पूर्ण मान्यता शासकिय हिंदी राष्ट्र भाषा
रक्षा सूत्र
आओ बहिना मेरे घर द्वार आज रक्षा बंधन है
बांध लो राखड़ी मेरी कलाई आज रक्षा बंधन है
साल में आता एक बार राखड़ी का पावन पर्व
बहिन भाई का उमड़े प्यार आज रक्षा बंधन है
दुनिया मे़ं अनोखा रिश्ता बहिन भाई का राखड़ी पूनम
देता दिल को दुलार दमदार आज रक्षा बंधन है
बहिन गूंथ लाती रक्षा सूत्र में अपने सारे अरमान
बांध देती गांठ गरिमा की आज रक्षा बंधन है
वंदन अभिनंदन करती टीका तिलक चंदन कुमकुम का ललाट
बधाई शुभकामनाऐ देती दिल से आज रक्षा बंधन है
बहिन भाई चाहे देश विदेश दूर निकट हो ‘कागा’
प्यार का कोई पैमाना नहीं आज रक्षा बंधन है
राखी
राखी मत बांध बहिना किसी एरे-ग़ैरे को
राखी मत बांध बहिना किसी नथू-ख़ेरे को
ज़माना बड़ा ज़ालिम नक़ाब ओढ़ बेठे नादान लोग
मुखोटा लगा रखा चेहरे पर चेहरा नादान लोग
बहिन भाई के रिश्ता की आड़ नियत खोटी
थाली में छेद कर देते जिसमें खाते रोटी
प्यास बुझी बकरियों की करती मींगनियां तालाब में
जब तक होती प्यासी तड़पती रहती तालाब में
भेड़िये भैष बदल घुसते भेड़ों के झुंड में
खाल ओढ़ खाते रहते भेड़ों के झुंड में
बच्चा तोड़ देता खिलोना मन बहल जाने पर
हड्डी छोड़ देता गीदड़ नोच मांस खाने पर
‘कागा’ कुत्ता करता प्रतीक्षा बासी जूठन मिलने तक
चला जाता अपनी दूसरी गली बाद मिलने तक
रक्षा बंधन (राखड़ी पूनम)
रक्षा बंधन को मेरी बहिनें याद आई
रक्षा बंधन को मेरी सूनी हुई कलाई
रक्षा बंधन दिन ख़ुशी ग़म में बदली
मां जाई बहिन चली सूनी हुई कलाई
एक बहिन सिंध में बसी बिछुड़ गई
हिंद में पूनम को सूनी हुई कलाई
पीड़ा उसको होती जिसको लगती गेहरी चोट
सगी बहिन नहीं कोई सूनी हुई कलाई
प्रकृति का केसा प्रकोप नहीं मां जाई
क़िस्मत फूटी रूठी मेरी सूनी हुई कलाई
दर्द छलक उमड़ बन आंखों में आंसू
गिरता गालों पर टपक सूनी हुई कलाई
बहिनों का इकलोता भाई ज़िंदा जहां में
दुबक कर सुबक रहा सूनी हुई कलाई
दिल फफक रहा राखी कौन बांधे ‘कागा’
ख़ून का रिश्ता ख़त्म सूनी हुई कलाई
आज़ादी मुबारक़
अहले वत़न जशन आज़ादी मुबारक़
पंद्ह अगस्त जशन आज़ादी मुबारक़
मुल्क ग़ुलाम रहा स़दियों से
बेड़ियों में बंधा स़दियों से
एकता को छिन्न भिन्न किया
अभिन्न अंग छिन्न भिन्न किया
वर्ण वर्ग में बंटवारा किया
जाति धर्म में बंटवारा किया
ऊंच नीच भेद भाव अभाव
छूआ छूत सपूत कपूत स्वभाव
पीढ़ी दर पीढ़ी किया बहिष्कार
सीढ़ी दर सीढ़ी किया बहिष्कार
बाहरी लोगों ने किया क़ब्ज़ा
मालिक बन बेठे किया कब्ज़ा
ग़ुलाम गिरी में ग़ैरत गई
जी ह़ुज़ूरी में ग़ैरत गई
बेज़मीर बिक चुके टुकड़ों पर
अमीर झुक चुके टुकड़ों पर
ज़मीर जागा बाज़मीर इंसान का
ख़ून खोला बाज़मीर इंसान का
आज़ादी की लड़ाई बिना जातिवाद
जंग जारी बिना किसी विवाद
‘कागा’ कामयाबी मिली एकता को
सारा श्रेय मिल एकता को
कवि कल्पना
कवि की कल्पना सात आसमान लांघ जाती
कवि का भावना सात समुंदर लांघ जाती
जहां पहुंचा कवि वहां नहीं पहुंचा रवि
कवि की उड़ान सात आसमान लांघ जाती
फ़लक पर फ़िरश्ते घुमते फिरते हवा में
कवि की ज़ुबान सात आसमान लांघ जाती
बिना पंख उड़ती आकाश में तेज़ रफ़्तार
कवि की शान सात आसमान लांघ जाती
सात समुंदर पार जाती सोच बिना किश्ती
कवि की उफ़ान सात समुंदर लांघ जाती
कल्पना तीर कमान जेसी तरकश में बंद
कवि की कमान सात समुंदर लांघ जाती
माना कवि एक इंसान मगर मामूली नहीं
कवि की जान सात आसमान लांघ जाती
कवि गेहरा सागर कोई किनारा नहीं होता
कवि की गान सात आसमान लांघ जाती
कवि की कायनात बेशुमार रंगीन संगीन ग़मगीन
कवि की तान सात आसमान लांघ जाती
जाति धर्म मज़हब का झंझट नहीं ‘कागा’
कवि की अ़ज़ान सात आसमान लांघ जाती
स्वाधीनता
हम स्वाधीन पराधीन नहीं इंसानियत हमारा दीन
हम स्वतंत्र परतंत्र नहीं इंसानियत हमारा दीन
गुमराह कर धर्म के धूणे में झौंकते
वर्ण वर्ग जाति में बांट आग फूंकते
ऊंच नीच दबंग दब्बू अमीर ग़रीब बाहूबली
भड़काऊ भाषण देकर करते पैदा ख़ूब खलबली
नफ़रत की चिंगारी सुलगाने में अगुआ रहते
दंगा पंगा फस़ाद शरारत में अगुआ रहते
निर्लज बेह़य्या बदतमीज़ सोच सलीक़ा सही नहीं
ख़ुलूस़ रोज़मरह का तौ़र त़रीक़ा सही नहीं
आज़ादी किसी की बपोती नहीं बराबर ह़िस़्स़ा
मनगढंत कहानी बना सुनाते झूठा झा़ंसा क़िस़्स़ा
आया पंद्रह अगस्त झूम जोशीला जशन मनायें
वत़न वास्ते दिलो जान से जशन मनायें
‘कागा फ़िरक़ा प्रस्त फ़ितनत करते जानबूझ कर
लड़ाई झगड़ा कराते बिना वजह जानबूझ कर
राजस्थान रोशन
राजस्थान को रोशन किया वसुन्धरा राजे ने
राजस्थान का विकास किया वसुंधरा राजे ने
पिछड़े राज्यों की फ़ेहरिस्त में नाम शुमार
राजस्थान को उजागर किया वसुंधरा राजे ने
अंधेरे में डूबा काल कोठड़ी में क़ैद
राजस्थान को आज़ाद किया वसुंधरा राजे ने
शिक्षा चिकित्सा स्वास्थ्य क्षेत्र में अत्यंत पिछड़ा
राजस्थान को बुलंद किया वसुंधरा राजे ने
किसानों को क़र्ज़ मुक्त ऋण माफ़ी देकर
राजस्थान को सम्मान दिया वसुन्धरा राजे ने
भूखे को भोजन प्यासे को पानी प्रबंध
राजस्थान को राशन दिया वसुन्धरा राजे ने
हर गांव ढाणी को बिजली से चमकाया
राजस्थान को गुलशन किया वसुंधरा राजे ने
रोगी को मुफ़्त उपचार निशुल्क दवाईयां ‘कागा’
राजस्थान को स्वाभिमान दिया वसुन्धरा राजे ने
तिरंगा
आओ हर घर गांव गली में तिरंगा फेहरायें
आओ हर ढाणी कूचे कस्बे में तिरंगा फेहरायें
पंद्रह अगस्त मद मस्त दिन हमें आज़ादी मिली
हर हाथ में पकड़ प्रचम प्यारा तिरंगा फेहरायें
करें याद आज़ादी के दीवाने दिलो जान से
हंसते शहीद हुए जवान मुल्क पर तिरंगा फेहरायें
तिरंगा तले खड़े हम ह़ल्फ़ उठायें मिल कर
झुकने नहीं देंगे कभी झंडा हमारा तिरंगा फेहरायें
जशन मनायें चमन बनायें वत़न हमारा गुलशन गुलस्तां
सींच अपने ख़ून पसीने से हरदम तिरंगा फेहरायें
बिना रंग नस्ल धर्म मज़हब जाति भेद भाव
मुल्क आज़ाद कराया गोरों ग़ैरों से तिरंगा फेहरायें
झमूरियत की बुनियाद रखी अ़वाम के ह़क़ मेह़फ़ूज़
आईन तमाम बेहतरिन हम करें एह़तराम तिरंगा फेहरायें
वंदे मातृम वत़न का तराना तरनम गाना गायें
पंंजाब सिंध बंग सरगम साज़ तान तिरंगा फेहरायें
प्यार का मशाल जलाये मुल्क करें रोशन रंगीला
जोशीला नशीला ह़ुब अल वत़न से तिरंगा फेहरायें
आज़ादी के सब बराबरी के ह़क़दार ह़मायती ‘कागा
मिल जुल हंसी ख़ुशी गर्मजोशी से तिरंगा फेहरायें
दुनिया
दुनिया से दिल उठ गया कहां जायें
दुनिया से दिल भर गया कहां जायें
दुनिया का दस्तूर निराला आना जाना अकेला
अपनों से भरोसा उठ गया कहां जायें
उम्र सारी गुज़र गई प्यार नफ़रत में
सपनों से यक़ीन उठ गया कहां जायें
नंगे आये जहां में पोशाक मिली लंगोटी
रेश्मी से रूह़ उठ गया कहां जायें
दो गज़ कफ़न वास्ते लिबास उतार दिया
दोलत से दिल उठ गया कहां जायें
ज़र ज़मीन ज़ेवर जायदाद मह़ल मीनार ख़ूब
ह़ुसन से प्यार उठ गया कहां जायें
दो गज़ ज़मीन डेरा मेरा बसेरा ‘कागा’
जहान से जी भर गया कहां जायें
कौन रक्षा करे
खेत को जानवर चरे बाड़ रक्षा करे
बाड़ खाये खेत को कौन रक्षा करे
दो त़रह़ के तीतर पालतू ओर फ़ालतू
दोनों शिकारी के संग कौन रक्षा करे
बहेलिये के जाल में बुला कर फंसाये
अपने बन गये पराये कौन रक्षा करे
सत्ता में बेठ चाट चाशनी चाटते मस्त
जी हुज़ूरी करते हरदम कौन रक्षा करे
तलवे चाट करते चापलूसी इर्द-गिर्द घूम
अपना करते जुगाड़ जतन कौन रक्षा करे
ह़ाकम ह़लाल करे अपने हाथों से ‘कागा’
कसाई का नहीं क़ुस़ूर कौन रक्षा करे
मंज़िल नहीं मिलती
हर किसी बंदे को मंज़िल नहीं मिलती
हरदम किसी राही को मंज़िल नहीं मिलती
मंज़िल दूर दराज़ राह कंटीली ऊबड़-खाबड़
रुक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
हम सफ़र नहीं कोई होता चलते अकेले
बिदक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
रहज़न का रोब रुतब्बा देख थर्र कांपते
झुख जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
लम्बा रास्ता जंगल में दंगल जानवरों का
थक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
ज़ोर जुल्म सितम जारी ज़ालिम का मुसलसल
दुबक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
जब कोई रहबर रहज़न बन जाता बदमाश
सुबक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
सोदागर मिल जाते कोई ईमान के ख़रीदार
बिक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
तजुर्बा त़ोर त़रीक़ा सलीक़ा नहीं होते अनाड़ी
झिझक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
प्यास बर्दाश्त का मादा नहीं हरगिज़
बिलख जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
किसी रहगीर से राब्ता नहीं रखते क़रीबी
हिचक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
मिंज़िल मिलती उनको मिज़ाज हर दिल अ़ज़ीज़ ‘कागा’
भभक जाते बीच में मंज़िल नहीं मिलती
रक्षा बंधन पर्व
रक्षा बंधन पर्व बहिन करे भाई का अभिनंदन
रक्षा बंधन गर्व बहिन करे भाई का वंदन
थाली गुड़ जलता द्वीप राखी संग कुमकुम चंदन
कलाई पर बंधे राखी करे भाई का अभिनंदन
साल में आता एक बार सावन पूनम त्यौहार
बहिन का गर्व पर्व करे भाई का अभिनंदन
बहिन की तड़प होती रक्षा सूत्र बांधने की
दिल की धड़कन तेज करे भाई का अभिनंदन
भाई को होती त़लब बहिन आने की उमंग
राह़ निहारे कब आये करे भाई का अभिनंदन
बहिन भाई का प्यार अमर रहे जीवन भर
सुखी रहे सब संसार करे भाई का अभिनंदन
बहिन भाई का रिश्ता मां की कोख का
रक्तकण दोनों के एक करे भाई का अभिनंदन
भाई भाभी से होता मिलना आत्मा का भरपूर
बहिन को देता चूनरी करे भाई का अभिनंदन
भाभी होती भाव विभोर देती उपहार मन भावन
भाई भाभी का प्यार करे भाई का अभिनंदन
बड़े बद-क़स्मत जिसकी बहिन नहीं जहान में
रहती सूनी कलाई कौन करे भाई का अभिनंदन
श्रावण पूनम को आती बरबस याद बहिन ‘कागा’
बहिन की राखी नहीं करे भाई का अभिनंदन
ज़िंदगी
ह़िमायत कर बंदा ज़िंदगी चंद दिनों की
हिदायत कर बंदा ज़िंदगी चंद दिनों की
रोता आया जहान में ख़ामोश चला जायेगा
इबादत कर बंदा ज़िंदगी चंद दिनों की
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सबका मालिक एक
शिनाख्त कर बंदा ज़िंदगी चंद दिनों की
सांसों का भरोसा नहींं कब निकल जाये
शराफ़्त कर बंदा ज़िंदगी चंद दिनों की
फूंक कर क़दम उठा राह ऊबड़-खाबड़
इनायत कर बंदा ज़िंदगी चंद दिनों की
कौन अपना कौन पराया कर जान-पेहचान
मुशाह़ब्त कर बंदा ज़िंदगी चंद दिनों की
शरारत अ़दावत बग़ावत करते लोग अ़मूमन ‘कागा’
तफ़ावत कर बंदा ज़िंदगी चंद दिनों की
पर्यावरण
पर्यावरण को बचायें प्रदूषण मुक्त करें वातावर्ण को
पर्यावरण का संरक्षण प्रदुषण मुक्त करें वातावर्ण को
वन पैड़ पौधे झाड़ पहाड़ झरने हमारी धरोहर
जल जंगल जीव जंतु कोशिका जानवर हमारी धरोहर
आभा मंडल पृथ्वी वायू मंडल प्रकृति का वरदान
प्रदूषण मुक्त कर पर्यावरण बचायें प्रकृति का वरदान
आधुनिक युग आया कल मशीन धूंआ धधकता खराब
सांसें लेना हुई मुश्किल दम घुट रहा ख़राब
जल अशुद्ध खाना ख़ोराक मिलावट भरा हवा प्रदूषित
आचार विचार संस्कार बदल गंदे हो गये प्रदूषित
नेक नियत नीति बदल गई बदमाशों का बसेरा
‘कागा’ अकेला क्या करे जमा डाकुओं का डेरा
आज़ादी अमृत़त्सव
आओ हम मिल जुल आज़ादी अमृत महोत्सव मनायें
आओ हम मिल जुल आज़ादी का जशन मनायें
पंद्रह अगस्त ज़बरदस्त वत़न आज़ाद हुआ ग़ुलामी से
गोरों की गिरफ़्त में आज़ादी का जशन मनायें
स़दियों से क़ैद मुग़लों चुग़लों के चुंगल मे
अब हम आज़ाद आबाद आज़ादी का जशन मनायें
डच हूण चंगेज़ अंग़्रेज़ लूट गये माल असबाब
सोने की चिड़िया था आज़ादी का जशन मनायें
ग़ैरों ने ग़र्क़ किया बेड़ा लूट-खसोट कर
हर घर पर तिरंगा आज़ादी का जशन मनायें
जान की बाज़ी लगा आज़ादी वास्ते हुए क़ुर्बान
शहीदों को करें याद आज़ादी का जशन मनायें
भगतसिंह चंद्रशेखर आज़ाद राजगुरू हंसते चढ़ गये सूली
जलायें दीप उनके नाम आज़ादी का जशन मनायें
जात पात धर्म मज़हब की दीवार को गिरा
भाईचारा प्यार क़ायम कर आज़ादी का जशन मनायें
काशमीर से कन्या कुमारी तक वत़न हमारा ‘कागा’
परचम हमेशा रहे बुलंद आज़ादी का जशन मनायें
मेह़नत का फल
मेह़नत का फल मीठा मेहनत कर
मश्कत का फल मीठा मश्कत कर
बीज दाना बोया जाता ज़मीन में
अंकुर कर उग जाता ज़मीन में
मेहनत कर ,,,,,,,,,
सिंचाई कर समय पर जल की
होगा हरा भरा सिंचाई जल की
मेह़नत कर ,,,,,,,,,
मोह़ब्त स़ोह़ब्त कर सोच सच्च की
सांच आंच नहीं सोच सच्च की
मेह़नत कर ,,,,,,,,
सच्च की नाव डोलती डूबती नहीं
डगमग जाती बीच मंझधार डूबती नहीं
मेह़नत कर, ,,,,,,,,,
इज़्जत आबरू कर हर इंसान की
चाहे अमीर ग़रीब हर इंसान की
मेह़नत कर, ,,,,,,,,,,
हाथी चींटी में सांसें समान चलती
इंसान जानवर में सांसें समान चलती
मेह़नत कर ,,,,,,,,,,,
भिखारी को भीख मिलती मांगने पर
मज़दूरी नहीं मिलती कभी मांगने पर
मेह़नत कर, ,,,,,,,,
‘कागा’ जेसा संग वेसा ढंग होता
आक में आम कभी नहीं होता
मेह़नत कर ””””””””
जवान किसान
जवान किसान जेसा कोई इंसान नहीं जहान में
जवान किसान जेसा कोई महान नहीं जहान में
किसान करता कड़ी मेह़नत तपती धूप दुपहरी में
हाड कांपते जाड़ों में महान नहीं जहान में
आंधी त़ूफ़ान की परवाह नहीं रहता खेतों में
चमके बिजली गर्जे गाज महान नहीं जहान में
अनाज करता उत्पन्न भरता भंडार जान जोखम में
मूल्य नहीं मिलता मुनासब महान नहीं जहान में
रुकता झुकता थकता नहीं रहता हर ह़ाल ख़ुश
मुस्काता चेहरा निहारता आसमान महान नहीं जहान में
भूख मिटाये इंसान की ख़ून पसीना एक कर
सीना चीरता ज़मीन का महान नहीं जहान में
चिंता की लकीरें तब जब बारिश नहीं होती
ईश्वर से करता आराधना महान नहीं जहान में
ख़बर मिलती ख़त़रे की दुश्मन की देश पर
सौंपता लाल सेना को महान नहीं जहान में
सुरक्षा करता सीमा पर सीना तान जवान ‘कागा
सोती जनता आराम से महान नहीं जहान में
प्रकृति
प्रकृति से कर प्यार बंदा
प्रकृति जीवन का आधार बंदा
पैड़ पौधे झाड़ पहाड़ झरने
जल धार कर प्यार बंदा
बहती नदियां समुंदर तालाब पोखर
बसंत बहार कर प्यार बंदा
सावन मन भावन पावन पर्व तीज
बरसे फूहार कर प्यार बंदा
झूला झूलें सखियां खेलें संग
कर श्रृंगार कर प्यार बंदा
गाज गर्जे गगन गूंजे घनघोर
पपिहा पुकार कर प्यार बंदा
प्रकृति के रंग अनोखे इंद्रधनुषी
पायल झंकार कर प्यार बंदा
कोयल सुर सुहाना लगता ‘कागा’
आनंद अपार कर प्यार बंदा
सीमा पार
मेरे अपने रिश्तेदार रहते सीमा पार
मेरे अपने वास्तेदार रहते सीमा पार
मुल्क का बंटवारा किया दो ह़िस़्स़े
मेरे अपने यार रहते सीमा पार
भारत के दो टुकड़े सिर धड़
मेरे अपने दिलदार रहते सीमा पार
मां के दो लाल अलग अल्ह़दा
मेरे अपने चार रहते सीमा पार
किसी का मायका इधर उधर
मेरे अपने धार रहते सीमा पार
रोते गुज़रती रातें बिलख बीतते दिन
मेरे अपने आधार रहते सीमा पार
ज़िंदा है मगर मिल नहीं सकते
मेरे अपने दीदार रहते सीमा पार
बच्चपन बीता जवानी गुज़ारी साथ में
मेरे अपने लाचार रहते सीमा पार
ज़मीन जायदाद खेत खलियान मां बाप
मेरे अपने संसार रहते सीमा पार
इकहतर की लड़ाई ने आग लगाई
मेरे अपने अपार रहते सीमा पार
मरने के बिछुडने से जीवते बुरा
मेरे अपने अंगार रहते सीमा पार
मोर रह गये उड़ आया ‘कागा’
मेरे आपने दरबार रहते सीमा पार
तेरा-मेरा
तेरा मेरा यारना नाता पुराना चेहरा भूल गये
तेरा मेरा दोस्ताना रिश्ता पुराना चेहरा भूल गये
जब से नज़रें हुई दो चार मन मायूस
मुखड़ा उदास मस्ताना रिश्ता पुराना चेहरा भूल गये
एसा लगता है मिलन जुलन हुआ होगा कभी
होश ह़वास दीवाना रिश्ता पुराना चेहरा भूल गये
पैसों से प्यार नहीं मेरा प्यार से प्यार
बढ़ा प्यास पैमाना रिश्ता पुराना चेहरा भूल गये
गुल छर्रे उड़ाते ग़ैरत नहीं रंग रेलियां मनाते
आम ख़ास़ बेगाना रिश्ता पुराना चेहरा भूल गये
सच्चा प्यार चाहिये झूठ झमेला झांसा नहीं ‘कागा ‘
कर तलाश फ़साना रिश्ता पुराना चेहरा भूल गये
ख़ुशी में ख़ुश
आपकी ख़ुशी मेरी ख़ुशी मैं ख़ुशी में ख़ुश
ख़ुश रहो आबाद रहो मैं ख़ुशी में ख़ुश
हर बल्ला से बचाये रब सदा ख़ुश रहो
ख़ुशी से झोली भरे मैं ख़ुशी में ख़ुश
चुस्त दुरस्त बुलंद स़िहत रहे शानदार जानदार उम्दा
चेहरा दिल चमकता रहे मैं ख़ुशी में ख़ुश
ख़ल्क़ ख़ुश हम ख़ुश ज़माना ख़ुश-हाल सारा
सितारों बीच चांद चमके मैं ख़ुशी में ख़ुश
बुरी नज़र वाले का मुंह काला ख़ोफ़ नहीं
ख़ुशी का ख़ज़ाना मिले मैं ख़ुशी में ख़ुश
ख़ुशी से खुशी मिलती हमेशा ख़ुश रहो ‘कागा’
ख़ुश रहो याद रहो मैं ख़ुशी में ख़ुश
आवाज़ बुलंद कर
चुपी तोड़़ अपना आवाज़ बुलंद कर
ह़िजाब छोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
क़लंदर सिकंदर हो कोई परवाह नहीं
नाता जोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
दबंग दबाये रखना चाहता हिम्मत ह़ोस़ला
मची होड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
ज़ालिम का ज़ुल्म जारी है बेशुमार
रुख़ मोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
दामन तेरा स़ाफ़ दाग़ नहीं कोई
पीछा छोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
चुपचाप ज़ुल्मो सितम सहना कब तक
कर गजगोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
मर्द मुजाहिद है कायर कमज़ोर नहीं
मूंछ मरोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
नग़गरों की झंकार में तूती बेकार
बजाना छोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
वजूद ख़त़्म करने की साज़िश है
ताबड़ तोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
आंच आफ़्त आई हवा चली उल्टी
दमदार दोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
अकेला कब तक चलोगे सुनो ‘कागा’
करो गठजोड़ अपना आवाज़ बुलंद कर
नाग-पंचमी
नाग पंचमी का पर्व पूजा होती नागों की
दूध पिलाते कटोरा भर पूजा होती नागों की
नाग पंचमी के अलावा घुस आये घर में
डंडा लेकर दूर भगाते घुस आये घर में
डर लगता डसने का जिसके दांतों में ज़हर
लपक पलक झपक काट लेता दांतों में ज़हर
सरपट आते सांप फन फेलाये फुर्ती से ज़हरीले
दूध का कोई एह़सास नहीं फर्राटे से फुर्तीले
सांप पकड़ लेते सपेरे मुरली की धुन पर
करते बंद टोकरी में आहट को सुन कर
नेता नाग की सोच समान बडा बेरह़म बर्ताव
जीत के बाद जानते नहीं बड़ा बेरह़म बर्ताव
चुनाव समय दूध गटक लेते अमूल्य वोटों का
फिर नहीं कोई जान पहचान मत़लबी वोटों का
‘कागा’ आस्तीन के सांप ख़तरे से ख़ाली नहीं
मौक़ा मिलते देते धोखा ख़तरे से ख़ाली नहीं
पोल खुल गई
पोल खुल गई मुख खोलते
पोल खुल गई बोल बोलते
मीठा कड़वा दोनों ज़ुबान में
पोल खुल गई मधुर बोलते
कोयल की मीठी वाणी अमृत
पोल खुल गई अमृत घोलते
उड़ा देते उल्लु सुन बोल
पोल खुल गई ज़हर घोलते
मोर नाचे जंगल पंख फेला
पोल खुल गई पंख खोलते
कौन कितने पानी में गेहरा
पोल खुल गई डांग टटोलते
मारीच बहु-रूपिया स्वर्ण मृग
पोल खुल गई बाण बोलते
ढोल में पोल खोल देखा
झोल खुल गई डंडा डोलते
तराज़ू के दो पलड़े ‘कागा’
तोल खुल गई ताकड़ी तोलते
राम आसान नहीं
राम बन जाना कोई आसान नहीं
कोशल्या की कोख कोई आसान नहीं
रघुकुल जन्म दशरथ घर में अवतार
अवध नगरी नटखट कोई आसमान नहीं
गुरु विश्वामित्र शिक्षा दीक्षा सुंदर संस्कार
ताड़का का वध कोई आसान नही
धनुर्विधा में प्रवीण गुरकुल में ज्ञानी
अहिल्या का उधार कोई आसान नहीं
राजा जनक का सीता स्वम्बर रचना
शिव बाण तोड़ना कोई आसान नहीं
सीता कर कमलों द्वारा वर माला
पति परमेश्वर मान्यता कोई आसान नही
अयोध्या का राज तिलक बदले बनवास
सहर्ष स्वीकर करना कोई आसान नहीं
बनवासी जीवन बिताया आदिवासियों के संग
मायावी मारीच मारना कोई आसान नहीं
सीता का अपहरण दिल दहल गया
डगर डगर डोलना कोई आसान नहीं
डगमगा कर डांवाडोल नहीं हुए कभी
ढू़ंढ़ते रहे जंगल कोई आसान नहीं
शबरी के चखे झूठे बेर खाये
छूआ छूत नहीं कोई आसान नहीं
हनुमान को सेवक बनाया सुग्रीव संग
बाली मार गिराया कोई आसान नहीं
रावण का संहार किया सीता मुक्त
विभीषण बना राजा कोई आसान नहीं
नाम के आगे पीछे बोलते राम
मरियादा पुरोशोतम बनना कोई आसान नहीं
राम राज्य में सुख शांति ‘कागा’
राम जेसा बनना कोई आसान नहीं
भक्ति में शक्ति
भक्ति में शक्ति भक्ति कर भगवान की
भक्ति में मुक्ति भक्ति कर भगवान की
मानव बनाया भगवान ने धर्म बनाया मानवता
धर्म में शक्ति भक्ति कर भगवान की
सेवा कर तन मन वचन से मानव
सेवा में शक्ति भक्ति कर भगवान की
मानव बनाया मन मंदिर अंदर बेठा आप
आप में शक्ति भक्ति कर भगवान की
आत्मा नाम आपका पिंड नाम ब्रह्मांड सारा
आत्मा में शक्ति भक्ति कर भगवान की
जल थल वायु अग्नि गगन भीतर समान
शरीर में शक्ति भक्ति कर भगवान की
भगवान ने दो जाति बनाई नर नारी
दोनों में शक्ति भक्ति कर भगवान की
मानव ने बनाये मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे
भगवान में शक्ति भक्ति कर भगवान की
भगवान के नाम अनेक अल्लाह ईश्वर गाड
समस्त में शक्ति भक्ति कर भगवान की
मानव ने वर्ण वर्ग ऊंच नीच बनाये
मनमानी कर शक्ति भक्ति कर भगवान की
भगवान ने नहीं रखा भेद भाव कोई
भक्ति में शक्ति भक्ति कर भगवान की
मानव ने बांट दिया मानव को ‘कागा’
एक में शक्ति भक्ति कर भगवान की
आज़ादी
हमें आज़ादी मिली पंद्रह अगस्त को
हम आज़ाद हुए पंद्रह अगस्त को
अंग्रेज़ हाकम थे बड़े तेज़ तर्रार
छोड़ चले ह़ुकूमत पंद्रह अगस्त को
वत़न वास्ते शहीद हुए जवान जोशीले
आओ जशन मनायें पंद्रह अगस्त को
सालों से ग़ुलाम करते रहे सलाम
ग़ुलामी से आज़ाद पंद्रह अगस्त को
दिलो दिमाग़ खोखला कर रखा था
आज़ादी समझ सके पंद्रह अगस्त को
ह़ोस़ला हिम्मत खो चुके थे ‘कागा’
जान में जान आई पंद्रह अगस्त को
वीर
समाज को शूरवीर चाहिए नाम वीर नहीं
क़ौम को कर्मवीर चाहिए नाम वीर नहीं
लोग नाम बड़े सुंदर सलोने रखते नामचीन
समाज को सुधीर चाहिए नाम वीर नहीं
लिख पढ़ विद्वान बन जाते अफ़सर अफ़लात़ून
समाज को गम्भीर चाहिए नाम वीर नहीं
ग़रीब की झुग्गी झौंपड़ी गये नहीं कभी
समाज को दिलगीर चाहिए नाम वीर नहीं
बेज़मीर बन करते ग़ुलामी चुग़ली चापलूसी चाटुकारी
समाज को बाज़मीर चाहिए नाम वीर नहीं
पीड़ित के ह़ाल पूछे नहीं घर जाकर
समाज को सफ़ीर चाहिए नाम वीर नहीं
प्यासे को पानी नहीं पिलाया एक प्याला
समाज को अकसीर चाहिए नाम वीर नहीं
भूखे को भोजन नहीं परोसा बिलखता देख
समाज को शफ़ीर चाहिए नाम वीर नहीं
पैर में चुभा कांटा नहीं निकाला ‘कागा’
समाज को रणवीर चाहिए नाम वीर नहीं
आदिवासी दिवस
आओ मिल जुल मनायें आदिवासी दिवस
आओ मिल बिगुल बजायें आदिवासी दिवस
जल जंगल ज़मीन के अस़ल मालिक
ह़क़ बेशक खुल मनायें आदिवासी दिवस
पहाड़ों की चोटियों पर बसेरा हमारा
जायदाद हमारी जंगल मनायें आदिवासी दिवस
जंगली जानवरों से दोस्ती दुश्मनी हमारी
जंगल में मंगल मनायें आदिवासी दिवस
झमाझम बारिश से बहते झरने हमारे
बहता निर्मल जल मनायें आदिवासी दिवस
घना जंगल घाटियां बंजर ज़मीन हमारी
दंगल में मंगल मनायें आदिवासी दिवस
सोया समाज स़दियों से नींद में
आओ कर हलचल मनायें आदिवासी दिवस
प्रकृति की चीज़ पर ह़क़ हमारा
उछल कूद मचल मनायें आदिवासी दिवस
क़ातलों ने क़ब्ज़ा कर रखा जबरन
मुक्त करायें मिल मनाये आदिवासी दिवस
धरोहर हमारी मालिक बन बेठे बदमाश
कर इरादा अटल मनायें आदिवासी दिवस
अब एकता कर परचम फहराना होगा
अपना दल बल मनायें आदिवासी दिवस
देर से जागे दुरस्त जागे ‘कागा’
अब आई अ़क़्ल मनायें आदिवासी दिवस
हम आज़ाद
हम आज़ाद हो गये ग़ैरों के चुंगल से
हम आज़ाद हो गये गोरों के चुंगल से
ग़ुलाम ज़िंदगी जकड़े हुए ज़ंजीरों में माज़ूर मजबूर
हाथों में हथकड़ी बंधन गै़रों के चुंगल से
ह़क़ हुक़ूक़ से मेह़रूम मास़ूम मायूस मुरझाया चेहरा
पैरों में बेड़ियां बंधन ग़ैरों के चुंगल से
अपनी ज़मीन जायदाद पर कर वस़ूली होती बेशुमार
मालिकाना ह़क़ तक नहीं गै़रों के चुंगल से
फूट डालो राज करो आपसी अ़दावत आम जाम
नफ़रत की आग सुलगती ग़ैरों के चुंगल से
आज़ादी का बिगुल बजा चिंगारी सुलगी गांवों में
आग भभक उठी ज़बरदस्त गै़रों के चुंगल से
पंद्रह अगस्त को आजादी मिली हम आज़ाद ‘कागा’
जशन मनायें ग़ुलाम थे ग़ैरों के चुंगल से
आज़ाद वत़न
पंद्रह अगस्त आज़ाद हुआ वत़न हमारा
दिल हुआ बाग बाग़ वत़न हमारा
आज़ाद मुल्क की महक चहक निराली
खुशी ख़ुशबू ख़ूब मिली वत़न हमारा
फिरंगियों की चाल में फ़ंसे थे
इंक़लाब ज़िंदाबाद आज़ादी मिली वत़न हमारा
जवानों ने कर जी जान क़ुर्बान
ह़ंसते हंसते चढ़े सूली वत़न हमारा
भगत सिंह राजगुरू चंद्रशेखर आजाद महान
आज़ादी के दीवाने परवाने वत़न हमारा
क्रांति उजागर नर नारी में ‘कागा’
मर मिटने को तैयार वत़न हमारा
दिल दे बेठे
देख चेहरा तेरा ह़सीन दिल दे बेठे
देख पेहरा ह़ुसन पर दिल दे बेठे
प्यार क़ुदरत का एक बेश-क़ीमती गोहर
देख हो गये फ़िदा दिल दे बेठे
सुना था तेरे ह़सन का जल्वा जुनून
जज़्ज़बात में मुब्तला होकर दिल दे बेठे
दिल खिलोना नहीं दिया जाये बहलने को
ख़ूब-स़ूरत सलोनी सौग़ात दिल दे बेठे
आंखों का सागर गेहरा देख उछलती लहरें
फ़िज़ा चली मची खलबली दिल दे बेठे
ग़ल्त़ ख़्याल नहीं गुस्ताख़ी कर बेठे हम
आनन फ़ानन में अपना दिल दे बेठे
अंदाज़ अजब था हमराज़ हमदम हमराह़ का
सफ़र में शामिल होकर दिल दे बेठे
ज़ाती ज़िंदगी में दखल करना गुनाह ‘कागा’
परवाह नहीं ग़ैर की दिल दे बेठे
दोस्ती
दूध पानी जेसी दोस्ती दुनियां में नहीं कोई
परस्पर दोनों जान देते दुनियां में नहीं कोई
अपनी पेहचान खो देता पानी दूध से मिल
दूध देता अपनी पेहचान दुनियां में नहीं कोई
आंच आती दूध पर जलता पानी तब तक
उ्फ़ान पर पड़ता पानी दुनियां में नहीं कोई
आंच पर उबल पानी अपनी जान करता क़ुर्बान
मिस़ाल नहीं अब तक दुनियां में नहीं कोई
प्रेम करता पतंगा शम्मा पर जान से
मर कर मिट जाता दुनियां में नहीं कोई
चुलबुली चाहत चकोरी की चांद से यक त़रफ़ा
चांद नहीं चाहता दोस्ती दुनियां में नहीं कोई
उगते सूरज करता सलाम सूरज मुखी फूल ‘कागा’
डूबते तक संग निभाता दुनियां में नहीं कोई
मृत्यू भोज गिद्ध भोज
मृत्यू भोज गिद्ध भोज समान कोई फ़र्क़ नहीं
झुंड कंकाल पर भरते उड़ान कोई फ़र्क़ नहीं
किसी परिवार में होता बुढ़े बुज़ुर्ग का निधन
करते मृत्यू भोज का आयोजन कोई फ़र्क़ नहीं
अड़ोस पड़ोस निक्ट दूर के सगे समंधी मिल
करते मृत्यू भोज पर विचार कोई फ़र्क़ नहीं
तर्क वितर्क करते पंच परमेश्वर खान पान का
बारहवां बीते घृत में केसे कोई फ़र्क़ नहीं
बड़ी मोत ब्याह जेसी सौ दिन पूरा किया
बेटा पोता सब सपूत सम्पन्न कोई फ़र्क़ नहीं
नाम रोशन करो बाप दादा का मुखिया था
करो देशी घी का भोज कोई फ़र्क़ नहीं
डोडा अमल बीड़ी तम्बाकू चाय को चालू करो
स़ुबह़ शाम शीरा लापसी जीमण कोई फ़र्क़ नहीं
जीमण वस्ते टूट पड़ते गिद्धों की भांति ‘कागा’
मृत्यू भोज कर मोज उड़ाओ कोई फ़र्क़ नहीं
मृत्यू भोज एक कुरीति
मृत्यू भोज एक कुरीति रीति रिवाज मिटाओ
रूढ़िवाद ने किया समाज खोखला रिवाज हटा़ओ
अनपढ़ जाह़िल समाज को पिछड़ा रखने वास्ते
चाल चली अंधविश्वास में धकेल रिवाज मिटाओ
मरने के बाद मृत्यू भोज करना अधर्म
जीव को शांति मिलेगी झूठ रिवाज मिटाओ
जीवित जन को खिलाओ मन पसंद खाना
सेवा चाकरी करो प्रेम से रिवाज मिटाओ
मरने बाद नहीं मिलता कभी भोजन पानी
रूढ़ि परम्परा एक ढोंग ढकोसला रिवाज मिटाओ
दोलत को खर्च करो बच्चों की शिक्षा पर
बेवजह फ़ुज़ल ख़र्ची मत करो रिवाज मिटाओ
तीर्थ यात्रा दर्शन कराओ जीते जी ‘कागा’
मरने बाद क्या लाभ होगा रिवाज मिटाओ
टूटा दिल
टूटा दिल टुकड़े-टुकड़े हुआ गिर बिखर कर
कोई अड़ोस पड़ोस नीचे ज़मीन पहाड़ शिखर पर
बिछोड़े का दर्द बड़ा बेदर्द रुलाये उम्र भर
टीस उठती जेसे जलते बलते अंगार ज़िक्र पर
नज़रों से ओझल हुए दिल हुए बड़े बोझल
कलेजे जल काले हुए फफक कर फ़िक्र पर
टूटा दिल दोबारा जुड़ता नहीं जेसे टूटा काच
दिल की धड़कनें तेज हो जाती निखर कर
आंखों के आंसू सूखते नहीं भीगी रहती पलकें
एक कोख से पैदा बच्चपन बड़े फ़ख़र कर
लकड़ी जल कोयला बनी कोयला जल राख ‘कागा’
अपने हो गये पराये भरोसा नहींं लश्कर पर
क्या लाया क्या ले जायेगा
क्या लाया क्या ले जायेगा बंदा
नंगा आया कफ़न ले जायेगा बंदा
मां की कोख से पैदा हुआ
ख़ाली हाथ दफ़न हो जायेगा बंदा
बंद मुठ्ठी आया रोता हुआ तुम
रुला कर अपनों को जायेगा बंदा
चित्ता पर बिठाये जला देंगे अपने
चुपके-चुपके खा़मोश हो जायेगा बंदा
भलाई कर नेकी कर भूल जाना
कीर्ति कमा ले छोड़ जायेगा बंदा
बुरा मत कर बुराई कलंक ‘कागा’
बुराई छोड़ कर भलाई ले जायेगा बंदा
मृत्यू भोज
मृत्यू भोज मत खाना अगर इंसान है
मृत्यू भोज मत खिलाना अगर इंसान है
परिवार में होती मोत परिजन रोते बिलखते
मृत्यू भोज मत कराना अगर इंसान है
मृत्यू भोज कर मोज करते पंच पटेल
मृत्यू भोज मत करना अगर इंसान है
घर वालें रोते छाती पीट-पीट कर
मृत्यू भोज मत बनाना अगर इंसान है
मरने बाद अंतिम संस्कार दाह संस्कार होता
मिठाई ह़ल्वा मत खाना अगर इंसान है
कांधीपा कर देता जेसा कोई शादी जशन
मृत्यू भोज मत परोसना अगर इंसान है
ओसर मोसर कर्म कांड अंध विश्वास बहाने
मृत्यू भोज मत जीमाना अगर इंसान है
पुलाव बरियानी मीठा बनाते पांच पकवान ‘कागा’
मृत्यू भोज मत मांगना अगर इंसान है
मैत्री
तुम मित्र मेरा मैं चेहरा चरित्र तेरा
तुम जीया मेरा मैं पिया पवित्र तेरा
बिना तेरे दिल नहीं लगता दीवाना बेगाना
तुम इत्र मेरा मैं प्यार विचित्र तेरा
आंखें नम तेरी जुदाई का ग़म ग़ुस़्स़ा
तुम चित्र मेरा मैं दिल भीतर तेरा
ढाल बचाव करती धारदार तलवार की चोट
तुम नश्तर मेरा मैं अस्तर शस्तर तेरा
दूध पानी मिल मेत्री निभाते दोनों अपनी
तुम बदन मेरा मैं लिबास वसत्र तेरा
सीने दो दिल धड़कन करती एक ‘कागा’
तुम पालना मेरा मैं बिछोना बिस्तर तेरा
दर्द जाते नहीं दबाने से
दर्द जाते नहीं दबाने से जाते दवा से
मर्द झुकते नहीं झुकाने से झुकते हवा से
दर्द होता दिल में रोती आंखें ज़ा़रो-ज़ार
आह उठती अंदर से दर्द जाते दवा से
नज़रें बड़ी नादान दिल मिल जाते दिल से
बिना छूए होती दीवानी दर्द जाते दवा से
आंख दिल दोनों का गेहरा रिश्ता नाता वास्ता
अश्क से भर जाती दर्द जाते दवा से
दर्द दबाने से नहीं सहलाने से होता शांत
छूने से मिलता आराम दर्द जाते दवा से
इश्क़ की दवा नहीं कोई दुनिया में ‘कागा’
मिलन से मिलती शिफ़ा दर्द जाते दवा से
यदा-कदा
यदा-कदा कुंडली मिल जाती दिल नहीं मिलते
यदा-कदा मंडली मिल जाती दिल नहीं मिलते
चौराहों पर खड़े मजस्मे नज़र आते हूब्हू शक्ल
प्यार का पैमाना छलक जाता दिल नहीं मिलते
खेतों में जानवर डराने वास्त़े बनावटी खड़ा अड़वा
खाते नहीं खाने नहीं देते दिल नहीं मिलते
मंदिरों में होती मूर्तियां देवी देवताओं की सुंदर
चमत्कार को नमस्कर करते वंदन दिल नहीं मिलते
बेजान की बात करना बेमानी ज़िंदा बंदा बेईमान
भरोसा नहींं करते आपस में दिल नहीं मिलते
शादियां करते बड़े धूम धाम धड़ाके से जनाब
नोबत आ जाती त़लाक़ की दिल नहीं मिलते
मौक़ा प्रस्त करते बदतरीन बर्ताव ख़ुद ग़र्ज़ ‘कागा’
काम निकल जाने पर फ़रार दिल नहीं मिलते
करो या मरो
करो या मरो आपकी मर्ज़ी
करो या डरो आपकी मर्ज़ी
दो दिनों की ज़िंदगानी बंदे
जियो या मरो आपकी मर्ज़ी
ज़िंदगी जीना कोई आसान नही
मरो या करो आपकी मर्ज़ी
मोत मिलना बड़ा मुश्किल होता
डरो या करो आपकी मर्ज़ी
करो मरो डरो फ़लसफ़ा फ़साना
कुछ कर मरो आपकी मर्ज़ी
इंसान आता दुनियां में करने
करो मत डरो आपकी मर्ज़ी
दिन को रोशनी रात अंधेरा
बेमौत मत मरो आपकी मर्ज़ी
शहीद हो जाओ वत़न वास्ते
क़ौम करेगी याद आपकी मर्ज़ी
वक़्त लेगा इम्तहान आपका ‘कागा’
करो नही डरो आपकी मर्ज़ी
वसुन्धरा राजे
विकल्प नहीं राजनीति में वसुन्धरा राजे का
विकल्प नहीं कूटनीत में वसुन्धरा राजे का
जय जय राजस्थान का नारा बुलंद किया
काया कल्प की ऊंचा नाम बुलंद किया
राजस्थान की हर गली कूचे में नाम
राजस्थान के हर गांव कस्बे में काम
विकास की गंगा बहाई नहाया हर इंसान
पीढ़ियों का हुआ कल्याण ख़ुश हर इंसान
बच्चा जवान बुढ़ा बुज़ुर्ग विधार्थी नर नारी
शासन प्रशासन सत्ता से प्रसन्न चित्त कर्मचारी
जात पात धर्म का ज़हर नहीं घोला
नर मादा दो जाति खुल कर बोला
अमनो -अमान क़ायम भाईचारा का पाठ पढ़ाया
राजस्थान का भारत में मान सम्मान बढा़या
पद की गरिमा को आंच नहीं आने दी
क़द पर मद की छाया आने नहीं दी
‘कागा’ दो बार मुख्य मंत्री किया बड़ा कमाल
बरक़रार रहा राजस्थान का जोश जुनून जल्वा जमाल
ग़रीब-गाथा
भूखे को रोटी खाने का एक निवाला चाहिए
प्यासे को पानी पीने का एक प्याला चाहिए
पेट चिपक गया पीठ से पसलियां गिनती करो
भूख मिटाने को वादा नहीं एक निवाला चाहिए
ह़ल्क़ सूखे होठों पर हल्की ख़ुशकी लरज़ी ज़ुबान
चूहे दोड़ते पेट में गुड़गुड़ एक निवाला चाहिए
बदन पर पेवंद लगे चीत्थड़े पर चीत्थड़े लीर
कमर नीचे फटी लपेटी लंगोटी एक निवाला चाहिए
नंगे पाऊं में पेजार नहीं खड़ाऊ लकड़ी के
कचरा बीन भूखे बिलखे बच्चे एक निवाला चाहिए
गाल पड़ गये पीले जेसे पतझड़ में पत्ते
चेहरा मुर्झाया आंखें धंस गई एक निवाला चाहिए
हाथ में टूटा फूटा कशकोल दरबदर मांगें भीख
सिर पर छत्त नहीं छपर एक निवाला चाहिए
ग़रीब की ग़मगीन गाथा किस-किसको सुनाऊं ‘कागा’
हमदर्द नहीं दुनिया में कोई एक निवाला चाहिए
हरियाली
हरियाली तीज आई संग सावन मन भावन
रंग रंगीली तीज आई सावन मन भावन
सावन बरसे बदरिया छाई लहर ख़ुशी की
छम छम बजे पग पायल मन भावन
तीज त्यौहार सावन का सखियां खेलें संग
झूला झूलें हिरसे हिंवड़ो उमंग मन भावन
सावन बीत नहीं जाये सखी बिन साजन
तन तरसे जिया बिन पिया मन भावन
तन तपत मन मायूस दिन रात उदास
साजन नहीं आये सखी मेरे मन भावन
सावन बरसे रिमझिम बुझ गये बलते अंगार
बिन साजन सूना सोलह श्रृंगार मन भावन
कोयल करे कूक पपिहा पुकारे पिया ‘कागा’
जिया जले अंतड़ियां बले अनंत मन भावन
सावन बीता जा रहा
सावन बीता जा रहा साजन नहीं आया
योवन बीता जा रहा साजन नहीं आया
सज धज सखी कर सोलह श्रृंगार खड़ी
निहार रही राह़ आंखड़ियां साजन नहीं आया
सावन पेहली तीज संग सहेली मन उदास
साजन आने की आस साजन नहीं आया
झूला झूली अकेली बिना साजन सखी सहेली
हिवंड़ो हींड झोला खाय साजन नहीं आया
सावन मन भावन पावन पवित्र तीज पर्व
बिना पिया जिया जले साजन नहीं आया
बिछोडो मारे अंग में लगी आग अरगत
बुझती नहीं बूंदों से साजन नहीं आया
रिमझिम बरसे मेहुला बहते आंखों में आंसू
काजल बिखरा गालों पर साजन नहीं आया
सावन आवन कह गये सावन बीता जाये
साजन बिना आंगन सूना साजन नहीं आया
बादल गर्जे गगन गाज घनघोर कर ‘कागा”
बिजली चमक दमक करती साजन नहीं आया
मित्रता दिवस
आज मित्रता दिवस है मोज मनायें
आज रिश्ता दिवस है मोज मनायें
परस्पर प्रेम प्रक्ट करें खुल कर
आज वास्ता दिवस है मोज मनायें
प्रेम छिपा सबके सीने में मित्र
आज नाता दिवस है मोज मनायें
प्रेम महंगी धरोहर मानव की मुस्कान
आज दाता दिवस है मोज मनायें
मां जेसा प्रेम किसी में नहीं
आज ममता दिवस है मोज मनायें
दिल दो नेन चार विचार एक
आज समता दिवस है मोज मनायें
प्रेम की आग लगी दिल में
आज क्षमता दिवस है मोज मनायें
द्वेष ईर्ष्या को दूर करें ‘कागा’
आज नम्रता दिवस है मोज मनायें
मद
इंसान में आता पद का मद
जवान में आता योवन का मद.
काम क्रोद्ध लोभ मोह अहंकार माया
काया सुंदर छवि रूप का मद
रंग का मद संग का मद
इंसान को धन दोलत का मद
भंवरा फंस जाता फूल में लिप्ट
रस भरा स्वभाव सुगंध का मद
राजा रानी रंग मह़ल दासी दरबार
रईयत की हु़जू़री सत्ता का मद
मय ख़ाने में खा़मोश साक़ी ‘कागा’
मय पियकड़ को मय का मद
जागो
सोये समाज को जगाने आये लोग अनेक
गहरी नींद से जगाने आये लोग अनेक
जो जागे बढ़े आगे मिल गई मंज़िल
कुछ जागे नहीं जगाने आये लोग अनेक
कोई सुस्त सोये कुम्भ करणी नींद में
सुना नहीं कोलाहल जगाने आये लोग अनेक
कुछ अभागे जाग कर सो गये दोबारा
खर्राटे मारते रहे जगाने आये लोग अनेक
समाज सेवक बन कर आये फ़िरश्ता मसीह़ा
बेपरवाह सोते रहे जगाने आये लोग अनेक
स़ुबह़ सवेरे मुर्गे ने बांग देकर जगाया
काट कर खाया जगाने आये लोग अनेक
इंसान बन आये भूल गये अ़ह़द ‘कागा’
पकड़ कर झंझोड़ा जगाने आये लोग अनेक
नहीं होगा स़ाफ़
ख़ून से ख़ून धोने से नहीं होगा स़ाफ़
कीचड़ से कीचड़ धोने से नहीं होगा स़ाफ़
प्यार से दिल जीता जाता कितना हो कठोर
नफ़रत से नफ़रत करने से नहीं होगा स़ाफ़
ख़ून का बदला ख़ून जो करते क़तले आ़म
अंधेरे से अंधेरा करने से नहीं होगा स़ाफ़
जेसी करनी वेसी भरनी सच्चाई क़ुदरत का क़ानून
बुराई से बुराई करने से नहीं होगा स़ाफ़
नेकी कर दुनिया में नेक नियत धन दोलत
बदी से बदी करने से नहीं होगा स़ाफ़
दामन पर दाग़ कहीं लगे ख़्याल रखना ‘कागा’
पानी से धोने पर नहीं होगा दाग़ सा़फ़
मनुष्य जीवन
मनुष्य जीवन महंगा अनमोल खोना नहीं
मानव जीवन महंगा अनमोल खोना नहीं
चौरासी लाख योनियों में भटक अटक
चुपके-चुपके जीवन जिया पटक मटक
पंख मिले ऊंचा उड़ने बन परिंदे
कभी किसे के शिकार कभी दरिंदे
कभी बने कीड़े मकोड़े रेंगते रहे
सांप कोबरा ज़हरीले जीव रेंगते रहे
सैंकड़ों पैरों वाले दो चार सींग
कभी ऊंट घोड़ा गधा करते हींग
कभी भेड़ भेड़िये कभी राजा जंगल
कभी मगर मच्छ किया मोज मंगल
कागा मनुष्य जीवन मिला अनमोल हीरा
खोना नहीं व्यर्थ मिला अनमोल हीरा
कर भला हो भला
कर भला हो भला प्रकृति का नियम
कर बुरा हो बुरा प्रकृति का नियम
कर भलाई मिलेगा माल मलाई चाट चाशनी
बुराई पानी का बुलबुला प्रकृति का नियम
बीज बोता नेक नीयत से मिलते मेवा
चलता संस्कार का सिलसला प्रकृति का नियम
अपना तो अपना होता है चाहे नाराज़
क़त्तई नहीं करना गिला प्रकृति का नियम
सूरज सोख लेता गर्मी से समुंदर जल
बदले बारिश क़दम अगला प्रकृति का नियम
जेसा संग वेसा ढंग रंग बदले नहीं
चुग़ल रहे हरदम चुलबुला प्रकृति का नियम
अस़ल नस्ल का अदब इज़्ज़त कर ‘कागा’
तंग नज़र होता पगला प्रकृति का नियम
ग़रीब-ग़रीबी
ग़रीबों से पूर्व जन्म का नाता
ग़रीबी से पूर्व जन्म का वास्ता
नंगे जिस्म आये जग में रोते
मिला मां का दूध रोते रोते
कोख में किया गुज़ारा चुपके-चुपके
ऊंधे सिर लटक अटक चुपके-चुपके
लंगोटी मिली तन पर लिप्ट गया
मिला मां का आंचल लिप्ट गया
छाती छूई मां की पिया दूध
जब तक दांत नहीं पिया दूध
बंद मुठ्ठी में अपनी क़िस्मत चमकाई
मां की लोरी ने क़िस्मत चमकाई
दांत दिया दाता ने मेरा क्या
खाया ठोस खाना ख़ोराक मेरा क्या
बिना मेह़नत मुफ़्त में मिला सारा
बोलना चलना सिखाया मां ने सारा
उंगली पकड़ पिता ने कराई सेर
लड़खड़ा जाते मेरे छोटे से पैर
मां बाप का उपकार केसे चुकाऊं
वो छोड़ चले गये केसे चुकाऊं
ग़रीब की सेवा चाकरी फ़र्ज़ मेरा
‘कागा’ क़र्ज़ चुकाऊं केसे अ़र्ज़ मेरा
दिल से दिल तक
दिल से दिल तक दलाल दो आंखें
कर देती प्यार में ह़लाल दो आंखें
क़ैद कर रखा दिल को सीने में
जोश जुनून जल्वा बड़ा जमाल दो आंखें
आंखो में अश्क आते उमड़ कर बेशुमार
दिल में होती धड़कन कमाल दो आंखें
हु़सन की हिरासत में होता कशिश कर
मुलाकात के लिये होती लाल दो आंखें
आंखों को इशारा काफ़ी आंखों का अजब
ग़ज़ब ढाया जाता चुपके मलाल दो आंखें
ग़म ग़ुस़ा उतर आता दर्द ए दिल
ज़ाहिर हो जाता ह़क़ीकी ह़ाल दो आंखें
जेसी नज़र वेसा नज़रिया नज़ारा अंदाज ‘कागा’
तारीकी में जलती जेसे मशाल दो आंखें
रफ़्तार
ह़ालात बदल रहे हरदम रफ़्तार देख
सवालात बदल रहे हरदम रफ़्तार देख
वक़्त बदल रहा तुरंत तेज़ी से
जज़्ज़बात बदल रहे हमदम रफ़्तार देख
इंसान बदल रहे ख़ुद ग़र्जी पर
ख़्यालात बदल रहे स़नम रफ़्तार देख
ह़ाल माज़ी मुस्तकबिल का मालूम नहीं
ह़वालात बदल रहे ह़ुकम रफ़्तार देख
ह़ाकम बदल जाते थे ह़ुकम नहीं
शिनाख्त बदल रहे इस्म रफ़्तार देख
रद्दोबदल का ज़माना आया क़रीब ‘कागा’
कायनात बदल रहे क़स्म रफ़्तार देख
मैं क्या लिखूं
सोच रहा हूं आज मैं क्या लिखूं
अपने दिल का राज़ मैं क्या लिखूं
सलाहकार नहीं कोई मेरा दोस्त हमदर्द ह़िमायती
अपना दिलबर दिलरूबा हमराज़ मैं क्या लिखूं
बड़ी उलझन में ख़ामोश खड़ा तेरे दरवाज़े
अंदर से नहीं आवाज़ मैं क्या लिखूं
दिल चाहता दस्तक दी जाये मुलाक़ात वास्ते
कांपते हाथ होकर उम्रदराज़ मैं क्या लिखूं
ह़ोस़ला बुलंद हिम्मत नहीं हारी आज तक
दिल नहीं दग़ा बाज़ मैं क्या लिखूं
तेरी बज़्म में अकेला नफ़रत का शिकार
फिर भी हूं जांबाज़ मैं क्या लिखूं
पियकड़ हूं प्याला नहीं मिला मय का
कब अदा करूं नमाज़ मैं क्या लिखूं
साक़ी पिला सलीक़े से वुज़ू करना है
चुल्लु भर चाल बाज़ मैं क्या लिख़ूं
सागर देना गवारा नहीं ओक से पिला
मायूस है मेरा मिज़ाज मैं क्या लिखूं
क्या गुज़री दिल पर किसे बताऊं ‘कागा’
ज़माना हो गया नाराज़ मैं क्या लिखूं
मिटाना है
दिलों मे़ छुपी हर बुराई मिटाना है
दिलों पर लगे काले दाग़ मिटाना है
वक़्त के थपेड़ों से इंसान बना ह़ेवान
रिश्ता नाता भूल गया फ़र्क़ मिटाना है
धर्म मज़हब जाति झंझट में फंसा इंसान
ऊंच नीच का भेद-भाव मिटाना है
दरार दीदार से दीदार की दूरी बनी
ग़म ग़ुस़ा का गहरा गढ़ा मिटाना है
फूट डालो राज करो की रीति नीति
प्रभाव स्वभाव रस्मो रिवाज को मिटाना है
परम्परा पुरानी रूढि उलझी हुई गुत्थी ‘कागा’
पड़ गई गूंढ़ गांठ को मिटाना है
वृद्धाश्रम
आज कल का दौर बदल गया दौर
नया ज़माना नया दौर बदल गया दौर
बुढे मां बाप की सेवा चाकरी नहीं
बात नहीं करते बेटे बदल गया दौर
चिढ़ जाते छोटी बात पर ग़ुस़ा करते
डांट फटकार तक करते बदल गया दौर
घमंड ज़ोर जवानी का जोरू के ग़ुलाम
जी ह़ुज़ूरी करते हरदम बदल गया दौर.
सपूत कपूत कौन बोल चाल बद सलूक़ी
पारा चढ़ जाता एकदम बदल गया दौर
बड़े बेशर्म बेह़य्या छोड़ आते वृद्ध-आश्रम
बुजुर्गों को करते बेक़द्र बदल गया दौर
चल अचल सम्पति करते अपने नाम ‘कागा’
बेदख़ल करते घर से बदल गया दौर
प्यार बेश-क़ीमती
प्यार बड़ा बेश-क़ीमती मिलता नहीं हज़ारों में
प्यार जड़ा हीरा मोती मिलता नहीं बज़ारों में
प्यार कोई चीज़ नहीं जिसके हाट सजे हो
प्यार पर नागिन नाचे जहां सुरीली बीन बजे
प्यार एक सुगंध वाला फूल भंवरा मद मस्त
प्यार के दीवाने पखेरू लोटत होते सूरज अस्त
प्यार पर अपनी जान देते दीपक पर पतंगे
एक झलक वास्ते मर मिट जाते एकदम पतंगे
प्यार की प्यास में पागल चकोरी चांद मस्तानी
उगते गर्दन झुकती जाती चकोरी चांद मस्तानी
सूरज मुखी फूल उगते सूरज खिल जाता महकता
अपना मुखड़ा सूरज सामने कर दर्शन मस्त महकता
मीरा प्रेम की दीवानी विष का प्याला पिया
आत्मा आनंद अमृत बन गई ज़हर प्याला पिया
‘कागा’ कृष्ण काला बंशी वाला राधा रंग गोरी
प्रेम रस पिया रंग भेद नहीं राधा ग़ोरी
प्रेम कर
प्रेम कर पावन पवित्र मन भावन से
प्रेम कर सावन चरित्र मन भावन से
शिव संग पार्वती जटा बहती गंग धारा
हर सोम वार वंदन मन भावन से
नंदी वाहन शिव भोले शक्ति संघ सवारी
गणेश भ्रमण मूषक पर मन भावन से
कार्तिक करे विचारण आचरण बेठ मोर पीठ
जटा धारी नाग गले मन भावन से
शिव शरीर भस्म रमाये चित्ता राख की
सारे प्राणी परस्पर शत्रु मन भावन से
सिंह नंदी का बेर चूहा सांप का
सांप डरे मोर देख मन भावन से
प्रेम का प्रभाव बड़ा सबका स्वाभाव विपरीत
संग साथ भोले नाथ मन भावन से
प्रेम से पिघल जाते पत्थर मौम बनकर
स्वंय जल देते प्रकाश मन भावन से
प्रेम जेसी चीज़ नहीं कोई उत्तम ‘कागा’
प्रेम निपजे महंगे मोती मन भावन से
प्रेम से प्रेम
हम प्रेम के पुजारी हमारा प्रेम से प्रेम
प्रेम से प्रेम करते हमारा प्रेम से प्रेम
प्रेम प्रिय प्रेम प्राण प्रेम पूजा पाठ प्रसाद
तन मन वचन आत्मा हमारा प्रेम से प्रेम
प्रेम मठ मंदिर आरती आराधना प्रार्थना आस्था अनंत
बिना प्रेम शांति नहीं हमारा प्रेम से प्रेम
प्रेम टीका तिलक चंदन कुमकुम ललाट पर लेप
प्रेम की बांधी मोळी हमारा प्रेम से प्रेम
प्रेम प्रभू शिव शम्भू शक्ति भक्ति युक्ति मुक्ति
प्रेम पाताल आकाश पृथ्वी हमारा प्रेम से प्रेम
प्रेम पांच तत्व का पुतला रज वीर्य जल
वायु अग्नि गगन धरा हमारा प्रेम से प्रेम
धन दोलत शहोरत शान शोक्त से प्रेम नहीं
हम रागी वेरागी त्यागी हमारा प्रेम से प्रेम
श्वास मनन चिंतन मंथन से प्रेम करते ‘कागा’
पूजा करते प्रेम की हमारा प्रेम से प्रेम
मेरा परिवार
मेरा परिवार मेरी पूंजी पीढ़ी दर पीढ़ी
मेरा परिवार मेरी बुलंदी सीढ़ी दर सीढ़ी
प्रकृति की देन वंश बेल बढ़ती रहे
हरा भरा सुखी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी
परिवार में पति पत्नी बेटा बेटी बहु
पोता पोती हंसते खेलते पीढ़ी दर पीढ़ी
धन दोलत शहोरत शानदार जानदार रोब रुतब्बा
शानो शोक्त शक्ति प्रदान पीढ़ी दर पीढ़ी
परिवार में प्रेम भाव धर्म नीति प्रभाव
किंचित नहीं रहे अभाव पीढ़ी दर पीढ़ी
बेटी अमानत पराई बसाये घर अपना ‘कागा’
शांत चित्त चंचल स्वभाव पीढ़ी दर पीढ़ी
तोल-मोल
तोल-मोल कर बोल तेरे बोल अनमोल
सोच विचार कर बोल तेरे बोल अनमोल
दो होंठों के पीछे बत्तीस दरबान खड़े
ज़ुबान में मिश्री घोल तेरे बोल अनमोल
ज़ुबान में ज़हर अमृत दोनों भरे भरपूर
विष नहीं अमृत घोल तेरे बोल अनमोल
मीठी वाणी मधुर रस टपके सांगो-पांग
सावचेत बन मुख खोल तेरे बोल अनमोल
मां-बाप के संस्कार पूंजी पीढ़ी की
नहीं चढ़ा ज़हरीला झोल तेरे बोल अनमोल
वैध अवेध का पर्दा हट नहीं जाये
ढोल में होती पोल तेरे बोल अनमोल
चार दिनों की चांदनी फिर अंधेरी रात
डगमग कर नहीं डोल तेरे बोल अनमोल
काली कोयल मीठा बोल बाड़ा बोल ‘कागा’
तोल मोल कर बोल तेरे बोल अनमोल
ज़िंदगी कट जायेगी
ज़िंदगी आहिस्ता आख़िर कट जायेगी
ज़िंदगी वास्ता देकर कट जायेगी
ज़िदंगी बड़ी ज़ालिम गुज़रती नहीं
मत कर छेड़छाड़ कट जायेगी
ज़िंदगी बर्र का छत्ता ख़त़रनाक
कंकर मत मार कट जायेगी
उतार चढ़ाव आता ज़िंदगी में
उछल कूद नहीं कट जायेगी
ज़िंदगी की घोड़ी बिना लग़ाम
सम्भल करना सवारी कट जायेगी
ज़िंदगी से हारा जीता नहीं
ज़रा स़ब्र कर कट जायेगी
गुज़रा ज़माना आता नहीं दोबारा
क़द्र कर दोस्त कट जायेगी
जलती भट्टी से दूर रहना
तपिश अच्छी नहीं कट जायेगी
ज़िंदगी के ज़ख़्म दर्द देते
‘कागा’ कुरेद नहीं कट जायेगी
15 अगस्त
आया पंद्रह अगस्त हम मद-मस्त आज़ादी मिली
देर आयद दुरस्त आयद मद-मस्त आज़ादी मिली
देश को आज़ाद कराने निकले दीवाने परवाने जवान
जान क़ुर्बान कर दी वत़न वास्ते आज़ादी मिली
भगत सिंह चंद्र शेख़र आज़ाद राजगुरू महान सपूत
हंसते मुस्काते सूली चढ़े वत़न वास्ते आज़ादी मिली
अंग्रेज़ो भारत छोड़ो नारा बुलंद ज़ोर शोर से
लातादाद शहीद हुए जवान वत़न वास्ते आ़ज़ादी मिली
माता पिता का कलेजा क़तल सुहागन का सिंदुर
बहिन का प्यार लूटा वत़न वास्ते आज़ादी मिली
जवानों का ख़ून खोला पहन बसंती चोला ‘कागा’
सिर पर कफ़न बांधा वत़न वास्ते आज़ादी मिली
मेरे घर के सामने
मेरे घर के सामने पीपल का पेड़
डाली डाली डोलता बंदर जाता हरदम छेड़
बेअ़क़ल करता नक़ल हर गतिविधि की हमेशा
उड़ा लेता कपड़े चपल चोरी हरदम छेड़
उछल कूद कर बेठ जाता छत्त पर
छलांग से लांघ जाता चुपके हरदम छेड़
लाख कोशिश पर छोड़ता नहीं पीछा मेरा
मन्नत पर मानता नहीं विनति हरदम छेड़
पीपल पर रहते त़ोता मीना कोयल ‘कागा’
किसी से गिला शिक्वा नहीं हरदम छेड़
मेरा दोस्त
मेरा दोस्त दिल का गोश्त टुकड़ा
चमक दमक महक सुंदर सा मुखड़ा
मेरी दिल में बन धड़कन धड़कता
फड़कता फुदक कर सुंदर सा मुखड़ा
अश्क बूंदें बन उमड़ आंखों में
गालों पर गिरता सुंदर सा मुखड़ा
मेरा दोस्त दीवाना बेगाना बंजारा मस्ताना
बहकी करता बात सुंदर सा मुखड़ा
कोमल निर्मल नशीला नर्म दिल लचीला
पिघल कर पानी सुंदर सा मुखड़ा
दग़ा बाज़ दग़ा नहीं करना ‘कागा’
मेरा दोस्त महान सुंदर सा मुखड़ा
राखड़ी
उड़ कर चली आती मिलने होती पंखड़ियां
दीदार करती दिल जान से बांधती रखड़ियां
बहुत दूर मजबूर माज़ूर वत़न ग़ैर मुल्क
आंसू टपक पड़े भीग दूखने लगी अंखडियां
आग लगी दिल अंदर बिछोड़े की मारी
बुझती नहीं हाथों में जकड़ी जंज़ीर हथकड़ियां
मां बाप की याद सताये मेरे भईया
पल पल निहारू नेनन से जले अंतड़ियां
रोती बिलखती करती याद आया रक्षा बंधन
सूख गया बदन मेरा हड़ियां जेसे लकड़ियां
बद ह़वास बेह़ाल गिड़-गिड़ा गिर पड़ती
टूटे हाथ पैर मेरे बांध रखी चखड़ियां
मैं अभागन चेहरा चिपक गया उड़ाऊं ‘कागा’
सपने नज़र आती बीरा तेरी मूंछीं बंकड़ियां
मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद की जयंती सबको मुबारक़
साहित्य सपूत की जयंती सबको मुबारक़
कहावत को चिर्ताथ किया साहित्य में
जेसी सोच वेसा विचार सबको मुबारक़
ग़रीब वंचित किसान का रखा ख़्याल
अपनी क़लम में क़ेद सबको मुबारक़
जेसी दृष्टि वेसा दृष्टिकोण सृष्टि साहित्य
मोती पिरोये माला में सबको मुबारक़
साहित्य जगत के सारथी चमकता आईना
दिल छूता हर ह़र्फ़ सबको मुबारक़
क़लम की त़ाक़्त से क्रांति उजागर
गूंगों को दी ज़ुबान सबको मुबारक़
साहित्य जगत के जादूगर तोड़ नहीं
हलचल हरकत मचा दी सबको मुबारक़
चमत्कार को नमस्कार सिर झुकाये सलाम
शाही स़ख़्स की शान सबको मुबारक़
दुखती नब्ज़ पर हाथ रखा हमेशा
दर्दमंद मददगार यादगार हस्ती सबको मुबारक़
साहित्य सृजन में नेक इरादा ‘कागा’
आधुनिक युग निर्माता जयंती सबको मुबारक़
रिमझिम बूंदें
रिमझिम बूंदें बहार आई जहां देखें वहां छाई
झमाझम झूम कर आई जहां देखें वहां छाई
गर्जे गाज गगन मन मगन मोर नाचे मस्त
चमक दमक बिजली चमके जहां देखें वहां छाई
घनघोर बादल बरसे छम-छम छेर बेलों के
भीगी भूमि मन मोहनी जहां देखें वहां छाई
बूंद बूंद कर बरसात बरसे बोछार संग फूहार
पेड़ डाली हींड बांधी जहां देखें वहां छाई
सखी सावन मन भावन पावन पर्व तीज त्यौहार
बिन साजन जिया जले जहां देखें वहां छाई
चौमासे के चार महिने हृदय करे हिलोर ‘कागा’
उदास मायूस मन मेरा जहां देखें वहां छाई
प्रकृति प्रारब्ध
प्रकृति प्रारब्ध प्रक्रिया नियम पावन बंधन तन मन
बीज बोये सींचे कौन पावन बंधन तन मन
ऋत पर फल प्रप्त सी़ंचत सौ घड़ा जल
नो माह बाद बच्चा उत्पन्न पड़े बूंद जल
चट मंगनी फट विवाह चंद दिनों बाद किलकारी
वैध अवेध संतान करो परख केसे गूंजी किलकारी
बाप बन बेठ़ा थाली बजी बधाई बंटी मिठाई
हींग लगी नहीं फिटकड़ी बजी शहनाई बंटी मिठाई
राजनीति के रंग रुप रीति-रिवाज उस़ूल निराले
वाह-वाही लूट अपनी पीठ थपाये उस़ूल निराले
‘कागा’ कमाल अहमद की टोपी मोहमद के सिर
कड़वा करते थू-थू तोहमत मढ़ते पराये सिर
रक्षा-बंधन
रक्षा बंधन पावन पर्व बहिन भाई का
रक्षा बंधन अभिनंदन वचन बहिन भाई का
श्रावण मास की पूर्णिमा पावन मन भावन
बहिन बांधे राखड़ी पर्व बहिन भाई का
भाई की कलाई भाई की भुजा मज़बूत
ललाट कुमकुम चंदन पर्व बहिन भाई का
साल में आता एक बार प्रेम पर्व
सदा अमर रहे पर्व बहिन भाई का
भाई देता वचन सुरक्षा का बहिन को
बहिन देती दुआ पर्व बहिन भाई का
रक्षा बंधन के बहाने होता मिलन ‘कागा’
प्रेम उमड़ आता पर्व बहिन भाई का
पतिव्रता
पति सम्पति अनमोल पवित्र जेसी नहीं जग में
पहले पति फिर सम्पति दोलत नहीं जग में
पति परमेश्वर ईश्वर कर सेवा पूजा स्मर्ण ध्यान
वर बिना ग़ेर नर कभी नहीं धरे ध्यान
घर गृहस्त की गहरी गांठ बंधा बंधन अमर
पर्ण्य संस्कार सर्वोत्तम सम्पन्न आजीवन बंधा बंधन अमर
परस्पर समर्पण भावना भरपूर बंधन जीवन भर साथ
खंडन नहींं करे वचन निभाये जीवन भर साथ
पति पत्नी की जोड़ी ईश्वर बनाता आसमान में
मिलन होता धरती पर आत्मा रहती आसमान में
रक्त के रिश्ते से होते प्रबल एह़सास के
घुल मिल जाते दूध जल जेसे एह़सास के
पति पत्नी दोनों का धर्म परस्पर रहें ईमानदार
पर नर पराई नार नर्क समान रहें ईमानदार
दाम्पत्य जीवन जेसा कोई रिश्ता नहीं जग में
‘कागा’ सोच विचार कर जीना पवित्र जग में
हम तुम जुदा नहीं
हम सूरज तुम रोशनी जुदा नहीं
हम चांद तुम चांदनी जुदा नहीं
हम आकाश तुम वायू जुदा नहीं
हम धरती तुम वनस्पति जुदा नहीं
हम वायू तुम वेग जुदा नहीं
हम पत्थर तुम आगा जुदा नहीं
हम आग तुम ज्वाला जुदा नहीं
हम दरिया तुम जल जुदा नहीं
हम पानी तुम प्यास जुदा नहीं
हम नींद तुम ख़्वाब जुदा नहीं
हम ख़ोराक तुम स्वाद जुदा नहीं
हम भोजन तुम भोग जुदा नहीं
हम दीपक तुम बाती जुदा नहीं
हम तिल तुम तेल जुदा नहीं
हम दूध तुम घी जुदा नहीं
हम सागर तुम लहर जुदा नहीं
हम ख़्वाब तुम ताबीर जुदा नहीं
हम हाड तुम मांस जुदा नहीं
हम शरीर तुम आत्मा जुदा नहीं
हम फूल तुम सुगंध जुदा नहीं
हम फल तुम रस जुदा नहीं
हम साज़ तुम आवाज़ जुदा नहीं
ब्रह्मांड में हर चीज़ तुमने बनाई
हम प्राणी तुम दाता जुदा नहीं
‘कागा’ तुम हर कण ज़र्रा में
हम दोनों आपस में जुदा नहीं
मत़लबी लोग
ख़ूब देखे है ज़िंदगी में मत़लबी लोग
ख़ूब आज़माये है ज़िंदगी में त़लबी लोग
ख़ूब नींद में ख़्वाब नज़र आते अजीब
ख़ूब तोड़ते दिल के अरमान मत़लबी लोग
ख़ूब आते ख़्याल देख ख़ुशी ग़ैर की
ख़ूब मिलते बेदर्द हमदर्द बन मत़लबी लोग
ख़ूब ख़्वाहिशें है मगर मुकमल नहीं होती
ख़ूब बन जाते रोड़े का़ंंटे मत़लबी लोग
ख़ूब सुना है ज़माने में इंसान एह़सानमंद
ख़ूब होते रहज़न रहबर बन मत़लबी लोग
ख़ूब ख़ानदान ख़ुशह़ाल आबाद है दुनिया में
ख़ूब ख़ुशामद करते ख़ुद ग़र्ज़ मत़लबी लोग
खूब ख़ुश-नस़ीब ख़ूब-स़ूरत ख़ुश-दिल
ख़ूब ख़लल डाल देते बेवजह मत़लबी लोग
ख़ूब ख़ुसर-फुसर करते आपस में ‘कागा’
ख़ूब जलते ख़ून खोला करते मत़लबी लोग
ईमादारी
ईमानदारी इंसान से चली गई
वफ़ादारी इंसान से चली गई
इंसानियत है तो इंसान बंदा
लिप्टी लालच में चली गई
बिना इंसानियत इंसान ह़ेवान जेसा
शान शोक्त शक्ति चली गई
इंसान आ़दत से मजबूर मोह़ताज
मान मर्यादा परम्परा चली गई
आदर्श आचार सहिंता संस्कार नहीं
हस्ती हय्या ह़ेस़ियत चली गई
बाशऊर बावफ़ा बेईमान हो गये
पोल खुल कर कहां चली गई
राख ढूंढ रहा चित्ता की
वो ईमानदारी कहां चली गई
कबर में दफ़न हुई ‘कागा’
जाते देखी नहीं चली गई
हिंदुस्तान हमारा
मेरा देश प्यारा हिंदुस्तान हमारा
मेरा प्राण प्यारा हिंदुस्तान हमारा
आन बान शान जान हिंदुस्तान
चमक दमक वाला हिंदुस्तान हमारा
चमन बाग़ बगिया बगीचे गुलस्तान
चहक महक ख़ुशबू हिंदुस्तान हमारा
नदी तालब झील दरिया समंदर
सुंदर पहाड़ पर्वत हिंदुस्तान हमारा
मातृ भाषा हिंदी मिली जुली
अनेकता में एकता हिंदुस्तान हमारा
ख़ान पान वेष भूषा भिन्न
रस्मो-रिवाज अलग हिंदुस्तान हमारा
कहीं पठार पहाड़ धोरा धरती
रन पसरा रेगस्तान हिंदुस्तान हमारा
धर्म मज़हब जाति वर्ण व्यवस्था
मंदिर मस्जिद चर्च हिंदुस्तान हमारा
जल जंगल बीहड़ वन उपवन
झरणा जल धारा हिंदुस्तान हमारा
लू-ताप के थपेड़े आंधियां
सर्दी गर्मी बारिश हिंदुस्तान हमारा
राजनीति के रंग निराले ‘कागा’
प्रजा तंत्र स्वतंत्र हिंदुस्तान हमारा
जय किसान
जय किसान जय जवान जय विज्ञान
जय बोलो भोले भगवान जय विज्ञान
जन मानस की भूख मिटाये किसान
अन्न का भंडार भरे भरपूर किसान
सीमा की सुरक्षा करे मुस्तेद जवान
दुश्मन के दांत खट्टे करे जवान
नंगे पांव बदन पर पहने चीत्थड़े
पसीने में तर बतर फटे चीत्थड़े
किसान की क़द्र कर महान इंसान
किसान अन्नदाता धरती पुत्र महान इंसान
खेत खलियान पर किसान का क़ब्ज़ा
अनाज धान पर किसान का क़ब़्जा़
उचित दाम मिले किसान को हरदम
फ़रियाद सुनाई हो न्याय मिले हरदम
विज्ञान ने आमूल चूल परिवर्तन किया
देश को नई दिशा परिवर्तन किया
कल काख़ाने मिल किसान का फ़स़ल
विज्ञान लाया क्रांति बढने लगा फ़स़ल
‘कागा बिजली पानी मिले समय पर
किसान हो ख़ुशह़ाल अस़र समय पर
उधारी
उधारी सिर पर भारी बोझ चुकानी पड़ेगी
पूर्व जन्म का भारी बोझ चुकानी पड़ेगी
पग पग करते पाप कीड़ी मकोड़ी मरती
जाने अनजाने का भारी बोझ चुकानी पड़ेगी
जीओ जीने दो महावीर ने सीख दी
सांस दर सांस भारी बोझ चुकानी पड़ेगी
मन वचन तन से करते निरंतर अपराध
आत्मा अमर है भारी बोझ चुकानी पड़ेगी
भक्ति में शक्ति भक्ति में मुक्ति युक्ति
सुक्ष्म कर ध्यान भारी बोझ चुकानी पड़ेगी
उधारी किसकी कर परख पारख पेहचान ‘कागा’
सूद सहित समस्त भारी बोझ चुकानी पड़ेगी
किसान
कृष्क हमारे अन्नदाता किसान हमारी क़िस्मत
कृषक हमारे मतदाता किसान हमारी हिम्मत
कृषक खेत खलियान में ख़ुश रहता
कृषक भाग्य-विधाता किसान हमारी क़ीमत
किसान ख़ून पसीना बहाये करता कमाई
कृषक रक्त दाता किसान हमारी हिस्मत
किसान करता अन्न की उपज अपार
कृषक भंडार भरता किसान हमारी
हरकत तपती धूप गर्मी में थकता नहीं
कृषक मेह़नत करता किसान हमारी बरकत
सर्दी में ठिठुर कांप काम करता
बारिश में भीगता किसान हमारी क़ुदरत
बिना किसान भूख मरते ग़रीब अमीर
कृषक दान दाता किसान हमारी कराम
किसान जेसा दुनिया में नही ‘कागा’
कृषक जीवन दाता किसान हमारी इबादत
इंसान अकेला
दुनिया में आता इंसान अकेला
दुनिया से जाता इंसान अकेला
दो पल जीना बड़ा मुश्किल
बिना जोड़ी जीना बड़ा मुश्किल
मरना जीना जग की रीत
दुनिया में नहीं कोई मीत
दुनिया दग़ा बाज़ मत़लबी मेल
ग़र्ज़ हुई पूरी ख़तम खेल
नर नारी की जोड़ी निराली
दो हाथों से बजती ताली
बिना नारी नर जीना बेकार
बिना नर नारी जीना बेकार
फिसल गये ऋषि मुनी ज्ञानी
काम वासना लिप्त धर्म ध्यानी
काया माया छाया झूठ ‘कागा’
सत्य नाम राम भ्रम भागा
बारिश
बारिश आई रिमझिम गाज गर्जे गगन
पशु पक्षी प्राणी मानव मन मगन
मोर नाचे पुकारे पपिहा पिया पिया
बिना साजन जिया जले अंग अगन
सावन माह शिव का वार सोम
व्रत करते नर नारी लगी लगन
मेघ बरसत हृदय हिरसत कर हिलोर
चूड़ी चमके हाथ खन खन कंगन
सावन आई तीज संग नहीं साजन
याद आवे बिना बालम सूना आंगन
कोयल कूके सखी अभागन उड़ावे ‘कागा’
बिना पिया प्यासी डसे जुदाई नागन
भगवान
भगवान भाव के भूखे भूखे को भोजन खिला
भगवान भाव के प्यासे प्यासे को पानी पिला
भगवान ने हिंदू मुस्लिम नहीं बनाये स़िर्फ़ इंसान
खोजा बीन करो ख़ुद में ख़ुद ख़ुदा मिला
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे इंसान ने बनाये आलीशान
हाड मांस का इंसान बनाया जारी रखा सिलसला
आरती आराधना साधना पूजा पाठ बंदगी अज़ान अंदर
क्यों भटक गये भोले भाले कर शिकायत गिला
कीड़ी के पांव बंधी पायल की झंकार सुनता
आहिस्ता कर याद सुनेगा ज़ोर से नहीं चिल्ला
भगवान ने आपको बनाया आप बनाते नक़ली भगवान
हर जीव जंतु प्राणी टटोल मिलेगा पुरस्कार स़िला
प्रबंध कर रखा है जीवन जीने का ‘कागा’
प्रयोग कर प्रेम से फ़ालतू में नहीं तिलमिला
दो आंखें
दिल की दोस्त दोनों आंखें
दिल की दमदार दोनों आंखें
दिल में दर्द होता जब
तड़प कर रोती दोनों आंखें
दिल मिल जाता किसी से
ख़ुश बाश होती दोनों आंखें
बिछुड़ जाता कोई अपना दिलरुबा
आंसूओं से भीगती दोनों आंखें
जब याद आती दिलबर की
सूज लाल होती दोनों आंखें
दिल आंखो का गहरा रिश्ता
जुदाई में बिलखती दोनों आंखें
दिल का दर्द जानती ‘कागा’
ह़ाल बयान करती दोनों आंखें
ज़माना
आया ज़माना झूम ग़ुलाम गिरी का
आया दौर चूम चमचा गिरी का
अगर आगे बढ़ना है ग़ैरत छोड़ो
आया वक़्त घूम चापलूस गिरी का
बेज़मीर बन वज़ीर बन सकते है
हर पल मास़ूम चाटुकार गिरी का
इंस़ाफ़ अदल नहीं फ़रियाद कौन सुने
मरता बिचारा मज़लूम ग़रीब गिरी का
ख्वाहिश ख़त्म ज़ोर ज़ुल्म सितम मातम
मचा जशन धूम अमीर गिरी का
अस़ल नस्ल का नामो निशान नहीं
आते याद मरह़ूम पनाह गिरी का
ह़ाकम के होते कच्चे कान ‘कागा’
लम्ह़ा होता मालूम चुग़ल गिरी का
इंसान इंसानियत
केसी फ़िज़ा चली फ़ज़ीलत चली गई
केसी हवा चली इंसानियत चली गई
माहोल मेला कुचेला आलूदगी भरा आमाल
केसी चाल चली ख़ास़ियत चली गई
नन्हे मुन्हे नख़रा करते देख मोबाईल
केसी दाल गली मास़ूमियत चली गई
बालिग़ स़ग़ीर मर्द औरत बुढ़ा बुज़ुर्ग
केसी मची खलबली नस़ीह़त चली गई
रोक टोक नहीं शोक शान शोक्त
मानो मिश्री डली ह़ेस़ियत चली गई
बिना वालदीन की इजाज़त होती शादीयां
रसूमात हर गली वस़ियत चली गई
नया दौर शोर शराबा ज़माना ज़लील
केसी आग जली केफ़ियत चली गई
गुरू चेला मुर्शिद मुरीद पीर फ़क़ीर
केसी लगी चुग़ली अ़क़ीदत चली गई
मोह़बत नफ़रत के दरम्यान जंग जारी
केसी नियत बदली अपनायत चली गई
इज़्जत आबरू अदब एह़तराम ग़ायब ‘कागा’
हर चीज़ नक़ली अस़लियत चली गई
पैमाना
जिस इंसान में इंसानियत नहीं वो ढोर है
जिस इंसान में ईमानदारी नहीं वो चोर है
इंसान सब इंसान होते है रंग रूप अनेक
चाल चित्र चेहरा अलग थलग कोई मोर है
चमन में फूल खिले रंग बरंगी ख़ुशबू ख़ूब
कांटों में गुल गुलाब गुलज़ार अस़र ओर है
कुत्ता एक पालतू जानवर फ़ित़रत फ़ालतू नहीं बेकार
वफ़ादार ईमानदार दमदार किरदार अजब ग़ज़ब ग़ोर है
हंस बगुले दोंनो शक्ल स़ूरत में उजले ख़ूबस़रत
हंस चुगता मोती चुन बगुला मछली खो़र है
पोशाक पहन बेश-क़ीमती अमीर बद-नियत नीति
दग़ा करते देर नहीं वो बड़े काम चोर है
बाड़ा बोल मीठा बोल अनमोल रतन कोयल ‘कागा’
जुदा नहीं कोई आदत से बड़ा शोर है
तकलीफ़
जब होते अपने पराये तब तकलीफ़ होती है
जब होते अपने बेगाने तब तकलीफ़ होती है
सामने जाकर बेठ जाते गै़र की गोद में
जब करते अपने अ़दावत तब तकलीफ़ होती है
उजड़े चमन को सींच कर गुलशन बनाया गुलज़ार
जब करते अपने सख़ावत तब तकलीफ़ होती है
अजनबी दाख़िल होकर दहलीज़ में बनते ख़ुद-मुख्तार
जब करते अपने ह़िमायत तब तकलीफ़ होती है
ओलाद को तालिम दिलाई तालीम याफ़्ता बनाया क़ाबिल
जब करते अपने बग़ावत तब तकलीफ़ होती है
मुसीबत वक़्त में मदद कर मददगार बने हम
जब करते अपने ह़िमाक़त तब तकलीफ़ होती है
ठिकाना नहीं था पनाह दी अपने आशियाने में
जब करते अपने शिकायत तब तकलीफ़ होती है
कोई धणी धोरी नहीं था अपने सीने लगाया
जब करते अपने ख़िलाफ़्त तब तकलीफ़ होती है
नालायक़ लायक़ बनाया जान की बाज़ी लगाये ‘कागा’
जब करते अपने शरारत तब तकलीफ़ होती है
सादगी
सादा जीवन उच्च विचार सादगी पसंद हम
खाना पीना संस्कार विचार सादगी पसंद हम
लिबास लंगोटी धोती कुर्ता चोली लहंगा चुनरी
अंग अंगरखी पग पगरखी सादगी पसंद हम
मूंग मोठ बाजरा तिल गवार फस़ल हमारी
काचर मतीरी टिंडसी सब्ज़ी सादगी पसंद हम
घरटी घुमा धान पीसे पनघट भरे पाणी
खाते सोगरा साग सांगरी सादगी पसंद हम
गोबर मिट्टी का घर आंगन झुग्गी झौंपड़ी
ढाणी में ढोर ढींगरा सादगी पसंद हम
दूध दही छाछ घी मक्खन झुगली झारो
चाय से चाव नहीं सादगी पसंद हम
गांव में हेत घनेरा रेत में रमत
चूल्हा चौका ईंधन जले सादगी पसंद हम
टाबर टींगर पक्का मकान चाहते चमकता चोबारा
घर में नल जल सादगी पसंद हम
हम ठहरे अंगूठा छाप अनाड़ी अनपढ़ नांढ़
काळा अक्षर भैंस बराबर सादगी पसंद हम
काले रंग का कपड़ा कोझा लागे ‘कागा’
जीनस लेगी जचती नहीं सादगी पसंद हम
टूटता तारा
टूटता तारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
चमकता सितारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
इंसान ईमान बेच देता मत़लब के ख़ातर
आसमानी नज़ारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
ज़मीर ज़िंदा मेरा मुर्दा नहीं ईमान अरमान
हमेशा हारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
मेरा अपना लश्कर बादशाह वज़ीर दरबान ग़ुलाम
फ़कत इशारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
जब गिरता तब अपनी रोशनी छोड़ देता
करिश्माई पिटारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
अगर ज़मीन पर गिरता धमाका होता ज़ोरदार
आपका प्यारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
चांद की ओट में चमक दमक मेरी
बहती धारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
झूठा झांसा देता इंसान मुझे तोडने का
बुलंद तारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
टूटता तारा हूं अपने आप टूटता ‘कागा’
बेगाना बंजारा हूं ज़मीन पर नहीं गिरता
कारगिल युद्ध
कारगिल का घमासान मचा शहीदों को सलाम
वीर गति प्राप्त शूरवीर शहीदों को सलाम
दिल दहल जाता पहाड़ों की चोटियों पर लड़ाई
वीर जवान जोशीलों ने लडी शहीदों को सलाम
मां बाप की आंखों के तारे नूरानी नूरचश्म
सुहागनों के मा़ंग सिंदुर सूनी शहीदों को सलाम
वीरांगनों के मंगल सूत्र हटे टूटे दिल तमाम
कारगिल पर जान क़ुर्बान जवान शहीदों को सलाम
युद्ध का ख़ून ख़राबा सुन होते रौंगटे खड़े
वो दुर्गम बर्फीली ख़त़रनाक घाटियां शहीदों को सलाम
वत़न पर मर मिटने वाले अमर जवान ‘कागा’
भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करें मिल शहीदों को सलाम
मेरी माँ
मुझे मत मार मेरी मां अपनी कोख में
जीने दे प्यारी मेरी मां अपनी कोख में
कली हूं पल रही पेट में तेरे सिसक
मुझे मत मसल मेरी मां अपनी कोख में
कौंपल हूं पनप रही पेट में नन्ही जान
मुझे मत कुचल मेरी मां अपनी कोख में
तुम भी किसी की बेटी थी मारा नहीं
मत कर क़त्ल मेरी मां अपनी कोख में
ममता मर गई समता बेटा बेटी के बीच
शक्ल हूं तेरी मेरी मां अपनी कोख में
सपना है मेरा दुनिया का दर्शन करने का
मत कर मुश्किल मेरी मां अपनी कोख में
मुझे मार क्या मिलेगा मेरे सगे बहिन भाई
सोच अपनी अ़क़्ल मेरी मां अपनी कोख में
अ़र्श छूना चाहत नाम रोशन करना इरादा मेरा
नहीं कर नक़ल मेरी मां अपनी कोख में
पापा की परी मां तेरी मुस्कान बन रहूंगी
तुम होगी अस़ल मेरी मां अपनी कोख में
नर नारी की जोड़ी ईश्वर की देन ‘कागा’
वृद्धि नहीं नस़्ल मेरी मां अपनी कोख में
कहीं पर निशाना
कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना
कौन भरता आहें कहीं पर निशाना
सियासत शत़रंज का खेल मोहरे मज़बूत
कहां फेली बांहें कहीं पर निशाना
हाथ आई बाज़ी बदले नहीं हरगिज़
राहगीर की राहें कहीं पर निशाना
वक़्त बदल जाता मिज़ाज बदल जाता
रुख़ बदलती हवायें कहीं पर निशाना
ख़्वाहिश के बहाने साज़िश करते शातिर
केसे हम आज़माये कहीं पर निशाना
दो बादशाह आमने सामने जंग जारी
ह़ाकम ह़ुकम फ़रमायें कहीं पर निशाना
हाथी घोड़ा पैदल लशकर वज़ीर ‘कागा’
फ़तह़ पताका फेहरायें कहीं पर निशाना
दिल जवान
बदन हो गया कमज़ोर दिल जवान
जवानी हो गई ग़ायब दिल जवान
दिन रात धडकता फड़कता तड़पता रहता
करता नहीं पल आराम दिल जवान
सीने में बंद बिना आंख नाक
सुनता सब कुछ कान दिल जवान
बिना देखे किसी का होता अपना
रोक टोक नहीं आसान दिल जवान
पर्दे के पीछे खेल देता खेल
अपना ख़्याल ख़ुद का दिल जवान
दो दिलों का मिलन हो जाता
पैग़ाम मिलता कानो-कान दिल जवान
बिचोलिया बेईमान बनती दोनों आंखें ‘कागा’
कर देती काम तमाम दिल जवान
प्यार की भूख
प्यार का भूखा हूं प्यार चाहिये
प्यार का प्यासा हूं प्यार चाहिये
बच्चपन से अपनों का साया नहीं
हर ठोर ठोकरें खाई प्यार चाहिये
पेट की भूख बुझाने भीख मांगी
पानी मांग प्यास मिटाई प्यार चाहिये
धन बटोरने वास्ते करते काले कर्तूत
धन दोलत नहीं मुझे प्यार चाहिये
रोटी कपड़ा मकान मिल जाना आसान
मेह़नत की होती ज़रूरत प्यार चाहिये
दिल तोड़ मुंह मोड़ छोड़ जाते
बेवफ़ा नहीं बावफ़ा हूं प्यार चाहिये
मेरे सीने में दिल धड़कता रहता
दिलासा नहीं हमदर्द हमदम प्यार चाहिये
बिना प्यार दीवाना मस्ताना बेगाना ‘कागा’
प्यार की दरकार है प्यार चाहिये
ग़रीब ग़ुर्बा
ग़रीब की झौंपड़ी में अंधेरा रोशनी नहीं
ग़रीब की झुग्गी में सवेरा रोशनी नहीं
ग़रीबी हटा कर दम लेंगे लगाते नारा
ग़रीब के गांव में अंधेरा रोशनी नहीं
सत्ता का रास्ता गुज़रे जिस गली से
ग़रीब की गली में अंधेरा रोशनी नहीं
झूठे वादे करते सितारा तोड़ लाने का
ग़रीब की चौसर में अंधेरा रोशनी नहीं
ग़रीब को गुमराह करते बहला फुसला कर
ग़रीब के छप्पर में अंधेरा रोशनी नहीं
चिकनी चुपड़ी बातें कर बनावटी बटोरते वोट
ग़रीब की ढाणी में अंधेरा रोशनी नहीं
पीने को पानी नहीं भूखे प्यासे बच्चे
ग़रीब की गुडाळ में अंधेरा रोशनी नहींं
तन पर फटे पेवंद लगे लीर चीर
गरीब की बस्ती में अंधेरा रोशनी नहींं
रेत पर राली गूदड़ी की छाया ‘कागा’
ग़रीब के मौहल्ले में अंधेरा रोशनी नहींं
अड़वा के अरमान
किसान अपने खेत की सुरक्षा वास्ते खड़ा करता मुझे
खेत की मेढ़ पर सुरक्षा वास्ते खड़ा करता मुझे
इंसान का लिबास पहना कर रात को डराना जानवर
खाता हूं नहीं खाने देता फ़स़ल भाग जाते जानवर
यदा कदा इंसान भी डर जाता भूत जान भाग
रखवाली होती खेत की मुफ़्त में जाग किसान जाग
बिना पगार बिना ख़ून पसीना बहाये भूखा प्यासा खड़ा
फटे टूटे मेले कुचेले उतरन चीत्थड़े कपड़े पहन खड़ा
दशहरा दीवाली पर्व गुज़र जाते बिना दीपक फटाके फोड़े
मिठाई का नामो निशान नहीं खड़ा अपना भाग्य फोड़े
बहुरुपिये को मिल जाता मनो-रंजन करने पर उपहार
मैं अभागा सर्दी गर्मी बारिश में बिलखता बिना उपहार
चेहरे पर चेहरे लगा ओढ़ मुखोटा सिर पर डोलते
मैं बेज़ुबान बेजान चापलूस को सम्मान सरासर झूठ बोलते
‘कागा’ क़द्र नहीं ज़माने में अब उड़ जाना बेहतर
बिना इज़्ज़त जीना जहां में बेकार मर जाना बेहतर
तांबे का गिलास
तांबे का गिलास बड़ा मायूस उदास
पीड़ा बोल पडा देता मैं शाबाश
धोते है पानी से हर रोज़
मांंजते चमकाते नहीं मैं मायूस उदास
काला सांवला हो जाता मेरा चेहरा
बुरा लगता मुझे मैं मायूस उदास
मोसरे भाई मिट्टी काच पीतल के
स्टील की चमक मैं मायूस उदास
उपेक्षा उपाहास नहीं करो अपेक्षा करो
बराबरी का हक़ मैं मायूस उदास
होंठों से होंठ मिलाते हर रोज़
पीते भर पानी मैं मायूस उदास
काश होते मेरे हाथ स़ाफ़ होता
शुक्रिया नफ़रत नहीं मैं मायूस उदास
अच्छा हुआ मिट्टी का कुल्हड़ नहीं
चाय पीकर फेंकते मैं मायूस उदास
मालिक मेरे कभी मांज चमकाया करो
क़द्र करो मेरी मैं मायूस उदास
सोना चांदी बन नहीं सकता ‘कागा’
आरक्षण दो मुझे मैं मायूस उदास
जंग की जड़ें
ज़र ज़मीन जोरू अहम जंग की जड़ें
महा भारत रामायण रचना जंग की जड़ें
इतिहास साक्षी है जब हुआ युद्ध घमासान
भूमि सम्पति का वितरण जंग की जड़ें
स्त्री धन चीर हरण अपहरण शील भंग
सिर कटे धड़ लड़े जंग की जड़ें
राम रावण के बीच युद्ध आमने सामने
सीता सती का अपहरण जंग की जड़े़ंं
कौरवों पांडवों का संघर्ष द्रोपदी चीर हरण
भूमि में भेद भाव जंग की जड़ें
अकबर महाराणा प्रताप के मध्य अस्तीत्व प्रभूत्व
धर्म प्रगना पराधीन स्वाधीन जंग की जड़ें
नई पीढ़ी
पुराना दौर बदल चुका नया ज़माना आया
नया जोश जल्वा जुनून नया ज़माना आया
जदीद तरीन त़ौर त़रीक़ा अंदाज़ अजब ग़ज़ब
अख्लाक उस़ूल ख़ुलूस़ सलीक़ा नया ज़माना आया
तंग लिबास चुस्त दुरस्त चेहरा सुर्ख़ रुख़सार
लब्बों पर लाली लाल नया ज़माना आया
ह़िजाब हय्या रफ़ू-चक्कर पर्दा नशीं ग़ायब
नज़र नज़रिया नज़ारा नाज़नीन नया ज़माना आया
नई शानो शोक्त रुतब्बा शहोरत शानदार जानदार
हसरत मसरत का मलाल नया जमाना आया
नया दौर शोर शराबा ख़स़ल्त ख़त्म ‘कागा’
फ़ज़ीलत फ़ना हो गई नया ज़माना आया
हिंदी राष्ट्र भाषा
हम हिंदी राष्ट्र भारत हिंदी राष्ट्र भाषा बने
भारतीय जन भावना मांग हिंदी राष्ट्र भाषा बने
हर कोने गेशे से जन मानस की पुकार
बच्चा जवान बुढ़ा चाहता हिंदी राष्ट्र भाषा बने
सरकारी दफ़्तर नौकरी कोर्ट कचहरी आम भाषा हिंदी
ग़ुलामी की ज़ुबान थोपी हिंदी राष्ट्र भाषा बने
आओ मिल जुल अभियान चलायें हर राज्य से
मातृभाषा को मान्यता मिले हिंदी राष्ट्र भाषा बने
हर धर्म मज़हब जाति की एक मांग हिंदी
हृदय पटल पर गूंजे हिंदी राष्ट्र भाषा बने
आज़ादी के कितने साल बीत चुके मांग अधूरी
अभी नहीं तो कब हिंदी राष्ट्र भाषा बने
भारत की जनता की एक मात्र मांग हिंदी
‘कागा’ मुम्बई चेनई चाहता हिंदी राष्ट्र भाषा बने
बच्चे युवा
बच्चे बिगड़ रहे है बचाओ
युवा बिगड़ रहे है बचाओ
आधुनिक चका चौध चमक दमक
अंधकार में धकेल रही बचाओ
मोबाईल फ़ाईल अस्त व्यस्त मस्त
आनलाईन पढ़ाई की आड़ बचाओ
बुरी संगत पंगत रंगत रूमानी
चढ़ती जवानी जोश जल्वा बचाओ.
फूहड़ दृश्य चित्र मित्र चरित्र
गुमराह करते पल पल बचाओ
मां बाप का फ़र्ज़ बख़ूबी
कर रोक टोक शीघ्र बचाओ
‘कागा’ निगरानी रखें मेहरबानी कर
ग़ल्त़़ राह जाने से बचाओ
अमनो -अमान
हुड़दंग मचाना मक़स़द नहींं अमनो -अमान क़ायम करना है
भगदड़ मचाना मक़स़द नहींं अमनो -अमान क़ायम करना है
वक़्त करवट बदल देता अफ़रा तफ़री मच जाती अमूमन
ह़गामा मचाना मक़स़द नहींं अमनो -अमान क़ायम करना हैं
मुल्क में ख़ुशह़ाली का माह़ोल बर्पा रहे भाई-चारा बह़ाल
धमाका मचाना मक़स़द नहींं अमनो -अमान क़ायम करना है
फ़िरक़ा प्रस्त बदतरीन अनास़र करते अफ़वाहों का बज़ार गर्म
तह़लका मचाना मक़स़द नहींं अमनो -अमान क़ायम करना है
नफ़रत करना जिनकी फ़ित़रत कराते फ़ितनत फ़स़ाद दंगा पंगा
शरारत मचाना मक़स़द नहींं अमनो -अमान क़ायम करना है
तिल का ताड़ राई का पहाड़ बना मचाते बवाल
कोहराम मचाना मक़स़द नहींं अमनो-अमान क़ायम करना है
हम वत़न प्रस्त वत़न वास्ते मर मिटने को तैयार
ख़ुराफ़ात मचाना मक़स़द नहींं अमनो -अमान क़ायम करना है
धर्म जाति की भावना का भड़काऊ देते भाषण ‘कागा’
शोर मचाना मक़स़द नहींं आमनो-अमान क़ायम करना है
कलयुग
आज कल ब्वाय फ्रेंड का प्रचलन हो गया
आज कल गर्ल फ्रेंड का प्रचलन हो गया
कैसा ट्रेंड चला हस्बैंड वाईफ़ की लाईफ़ लच्चर
शक के दायरे में शरारतें जलन हो गया
कैसी फ़िज़ा चली मची खल-बली जवानों में
ज़माना ह़द से ज़्यादा बद-चलन हो गया
मां बाप सास ससुर की इज़्जत आबरू नहींं
रहन सहन खान पान होटल उलझन हो गया
घर का खाना हज़म नहीं चौराहे पर चाट
गर्ल ब्वाय फ्रेंड का पथ संचलन हो गया
भाई बहिन भतीजा भाभी की ज़रा ग़ैरत नहींं
हाथ थामा हाथ मर्यादा का उलंघन हो गया
बच्चे पति छोड़ भाग जाती संग प्रेमी के
हवस की भूख मिटती नहीं प्रचलन हो गया
सहमति से साथ मिल जाती रहने की अनुमति
बालिग़ का मर्ज़ी मुत़ाबिक़ आपसी मिलन हो गया
सत त्रेता द्वापुर समाप्त कल युग आया ‘कागा’
लाज शर्म हय्या रफ़ू-चक्कर मलिन हो गया
मानव जीवन
बड़ी खोज बीन से मानव जीवन पाया
बड़ी छान बीन से मानव जीवन पाया
प्रकृति ने निर्मित की चौरासी लाख योनि
बड़ी मन्नत विनति से मानव जीवन पाया
पशु पक्षी जीव जंतु कोशिका मे़ सांसें
बड़ी साधना आराधना से मानव जीवन पाया
कोई रेंगते किसी की उड़ान आकाश में
बड़ी सोच विचार से मानव जीवन पाया
मीन प्यासी पानी में अजगर भूखी वन
बड़ी भक्ति शक्ति से मानव जीवन पाया
पतंगा देता अपनी जान जलती शमा पर
बड़ी युक्ति मुक्ति से मानव जीवन पाया
क्या खोया क्या पाया कर लेखा जोखा
बड़ी भव्य भावना से मानव जीवन पाया
नो माह की ऊंधे मुंह कठिन तपस्या
बड़ी विनम्र निवेदन से मानव जीवन पाया
वादा किया वचन दिया विनति कर ‘कागा’
बड़ी प्रार्थना आस्था से मानव जीवन पाया
रब की रज़ा
रब की रज़ा से चलता निज़ाम सारा
कायनात में क़ुदरत का होता इंतज़ाम सारा
बंदा महज़ बहाना फ़ालतू हक़ीक़त हलचल देख
पत्ता तक हिलता डुलता होता एहतमाम सारा
इंसान को अ़क़्ल में नहीं आती ह़रारत
कौन करता शरारत साज़िश मिलता आराम सारा
बेवजह फूट जाता बदनामी का ठीकरा सिर
किसी को बिना मेह़नत मिलता एह़तराम सारा
मशक्त करने पर दर-बदर खाते ठोकरें
किसी को मुफ़्त ख़ेरात मिलता इनाम सारा
मुक़दर का मोह़ताज मजबूर माज़ूर बंदा बेबस
किसी को घर बेठे मिलता पेग़ाम सारा
कंगाल कोई नहीं सबके अंदर हीरा लाल
परख लिया बन पारखी मिलता अंजाम सारा
कोयल काली कस्तूरी काली काला रंग ‘कागा’
वाह-वाही होती हरदम मिलता सलाम सारा
बच्चपन
हम कोई कम नहीं हम में दम है
हम है तो फिर क्या ग़म दम है
हमने बच्चपन में रेत के अनेक घरोंदे बनाये
तोड़े बिगाड़े हर रोज़ हम में दम है
हमने गुड्डा गुड्डी की शादियां रचाई शहनाई बजाई
दुल्हा दुल्हन को सजाया हम में दम है
हमने खेलों में अपना दम खम दिखाया ख़ूब
गुली डंडा भी खेला हम में दम है
किसी से क़र्ज़ लिया नहीं उधार फ़र्ज़ निभाया
मांगी नहीं कोई भीख हम में दम है
समाज सेवा के नाम नोटंकी नहीं की कभी
अपना वचन वादा निभाया हम में दम है
हमने आसमान में पतंग उड़ाये लिया ख़ूब आनंद
काग़ज़ की चलाई नावें हम में दम है
हमने राम लीला रास लीला रचाई कला ‘कागा’
हम बच्चे बुज़ुर्ग बने हम में दम हैं
जेब कतरों से सावधान
अपने सामान की ह़िफ़ाज़त ख़ुद कर जेब कतरों से सावधान
साहित्य सृजन के प्रकाशन की आड़ में लूट मचाते सावधान
कवि अपनी प्रतिभा के निखार वास्ते दिन रात करता मेह़नत
मुफ़्त में कर संग्रह बिचोलिये बेच देते सम्मान अरमान सावधान
प्रशंसा पुरस्कार सम्मान पत्र की मांगते मोटी रक़म भारी भरकम
प्रवेश शुल्क प्रकाशन के नाम वुस़ूल लेते बड़े चालाक सावधान
कवि क़ौम का आईना होता दिखाता अस़ली चाल चरित्र चेहरा
मोहरा नहीं बनना नवाब का लोभ लालच के सामने सावधान
क़लम की करामत पर कालिख नहीं लगे ज़रा काली ‘कागा’
बिक गया रुक गया झुक डरा मरा कवि नहीं सावधान
सावन सोम शिव
सावन आया संग प्रथम सोम वार लाया
शिव शक्ति भक्ति युक्ति सोम वार लाया
शिव सुंदर छवि देख मन झूम उठा
सज धज शिवालय देवालय शरीर झूम उठा
आक धतूरा दूध भांग बिल्व पत्र प्रसाद
दीपक जला पूजा सामग्री भरा थाल प्रसाद
सावन मन भावन पावन पवित्र चित्त चरित्र
मन चंचल चमक दमक महक उठा चरित्र
करें आरती मां भारती पार्वती सरस्वती की
रोम रोम में रस वंदना सरस्वती की
नील कंठ की लीला न्यारी सिर गंगा
गले में भुजंग कलकल करती धारा गंगा
हाथ में त्रिशूल बजे डमरू डम डम
जय् बाबा भोले नाथ बोलो बम बम
अंग भस्म रमाई गर्दन मुंड माला ‘कागा’
कर्म भ्रम भेद भाव धर्म संताप भागा
तुम हो ना
हमें क्या चिंता तुम हो ना
ग़म फ़िक्र नहीं तुम हो ना
साईंयां भये कोतवाल डर काहे का
प्यार को लुटाते तुम हो ना
चोरी यारी चापलूसी चुग़ली नहीं करते
नेक नियत नीति तुम हो ना
नाम बदनाम नहीं करेंगे अपना आपका
सिर बुलंद रहे तुम हो ना
लाज मान सम्मान मर्यादा परम्परा पुरानी
सज धज रखेंगे तुम हो ना
दामन पर दाग़ नहीं लगे काला
भरपूर कोशिश होगी तुम हो ना
तेरे बिना नहीं कोई हमारा ‘कागा
ताज तख़्त त़ाक़्त तुम हो ना
जनता जनार्दन
लोक तंत्र में जनता सर्वोपरि जनता का बोल-बाला
अ़र्श पर चढ़ाये फ़र्श पर पटक दे बोल बाला
जनता सब कुछ जानती सच्चा झूठा बुरा नेक इंसान
बिना तराज़ू तोल देती कौन भारी कौन हल्का इंसान
शून्य से शिखर तक पहुंचाने वाली सीढ़ी हर पायदान
पैर नहीं फिसल जाये सावधान चलना पड़ेगा हर पायदान
अमीर ग़रीब फ़क़ीर फक्कड़ शाह गदा का बराबर वोट
जब अपनी करवट बदलना चाहे देती दबंग को चोट
सत्ता के नशे में चूर चापलूसी के चक्कर में
उपेक्षा उपहास करते चाटुकार चुग़ल चमचों के चक्कर में
सबक़ सिखा देती नानी याद दिलाती दूध छट्ठी का
अ़क़्ल आती ठिकाने जनता मां ममता दूध छट्ठी का
राजनीति के रंंग अनेक इंद्रधनुषी अनंत बूंदों की बोछार
मौसम बारिश का रिमझिम झमाझम झड़ी बूंदों की बोछार
जेष्ठ आषाड़ में सावन भादो की हरियाली आती याद
पश्चाताप करते कान पकड़ करते वापिस जनता को याद
‘कागा’ कृतज्ञ बन जनता जनार्दन का जो भाग्य विधाता
प्रजातंत्र में होता सर्व रीति-नीति महान प्रमुख मतदाता
गुरु गोविद
गुरु माता गुरु पिता तीसरा गुरु दाई दाता
गुरु गोविद गुरु ज्ञाता चौथा गुरु ज्ञान दाता
जल थल आकाश अग्नि वायु पांच परम तत्व
रज वीर्य की रचना निरंजन तन मन निर्माता
नाभि कमल से निरंतर रस रूप रंग अंग
बंधन में बंधा मांस रक्त मल मूत्र रच्यता
काम क्रोद्ध मोह माया लोभ लालच भूख प्यास
नींद आलस मन बुद्धि चित्त लिखा अंक विधाता
जेसा अन्न वेसा मन जेसी सोच वेसा विचार
जेसा बीज वेसा प्रभाव स्वभाव गूढ़ ज्ञान गाथा
संस्कार मात पिता की देन प्रकृति प्रारब्ध प्रक्रिया
किलकारी गुंजन गर्भ में सीखा नियति से नाता
माता की ममता पिता की क्षमता अनमोल रतन
मां के स्तन में दूध दिया पालनहार दाता
गोविंद की माया निराली जब तक दांत नहीं
अमृत पान किया आंखें मूंद चिपक सीने समाता
माता का ज्ञान गोद आंचल में लिया लिप्ट
पिता ने सीख दी आसमान उड़ान बन छाता
बोलना चलना खेलना डोलना सिखाया परिजन ने ‘कागा’
गुरु ने ज्ञान भंडार भर दिया भाग्य विधाता
राजा-प्रजा
जेसा राजा वेसी प्रजा परम्परा पुरानी
बदल दी वक़्त ने परम्परा पुरानी
राज शाही रस्मो-रिवाज तहस-नहस
पीढ़ी दर धरा-शाही परम्परा पुरानी
रस्सी जल गई ऐंठन अभी बाक़ी
ठाठ-बाट ठरका रीति परम्परा पुरानी
बिना रोक टोक सांप घुस जाते
घरों में फन फेलाये परम्परा पुरानी
डस देते ज़हरीले कोबरे बिना ख़ोफ़
करते लोग झाड़-फूंक परम्परा पुरानी
जाति धर्म ऊंच नीच भेद-भाव
बीमारी यहामारी बन चुकी परम्परा पुरानी
प्रजा तंत्र में षड़यंत्र अंतर नहीं
बदला नहीं ढर्रा मर्यादा परम्परा पुरानी
बंदर के हाथ उस्तरा ख़त़रा ‘कागा’
जान हथेली पर हांफती परम्परा पुरानी
नेकी
नेकी कर दरिया में डाल
लोट आना दरिया में डाल
बोया बीज फ़स़ल बन मिलेगा
कोंपल कली फूल फल मिलेगी
मीठा बोल मधुर रस निचोड़
खारा खट्टा चट पट्टा निचोड़
पहाड़ को ललकार ज़ोर से
तुमसे होगी तकरार जोर से
छेड़ छाड़ चीर फाड़ नहीं
जेसे को तेसा बिगाड़ नही
दोनों हाथों से ताली बजती
दोनों दिलों से थाली सजती
अपना दीपक ख़ुद बन जाना
भरोसा नहींं ख़ुद बन जाना
हाथी के दांत बड़ा दास्तान
खाने दिखाने का बड़ा दास्तान
चांदनी चांद से होती सोच
सितारों से नहीं होती सोच
चांद सितारे सूरज के ग़ुलाम
रोशनी मिलती करते सब सलाम
‘कागा’ उगता सूरज उगले आग
ढलता ढीला पड़ निगले आग
भटक गये
भटक गये राह़ ऊबड़-खाबड़ रहबर नहीं मिला
अटक गये राह़ ऊबड़-खाबड़ रहबर नहीं मिला
सफ़र आसान था मगर मुश्किल बना दिया मुह़ाल
रहबर के बहाने रहज़न लुटेरे किससे करें गिला
हम चलते रहे दूश्मन जलते रहे देख कामयाबी
रुके नहीं झुके नहीं चलता रहा लगातगर सिलसला
अली बाबा चालीस चोर मचाये शोर मातम सितम
एह़सान के बदले मुफ़्त मिला बदनामी का स़िला
लोट आई बसंत बहार उजड़े बंजर चमन में
बाग़बां बुलबुल का मुरझाया चमक दमक चेहरा खिला
चिड़ियां चहक महक उठी बहक गई हर कली
आसमान काफ़िला कुरंजां कर क़त़ार उड़ी मिला ह़ोस़ला
ठहरा सागर हलचल मची आई आंधी त़ूफ़ान ‘कागा’
मुस़ीबत आफ़त का आया ज़ोरदार ज़मीन पर ज़लज़ला
उठ जाग मुसाफ़िर
उठ जाग मुसाफ़िर चल मंज़िल की ओर
सफ़र मुश्किल मुसाफ़िर चल मंज़िल की ओर
रास्ता आसान नहीं क़दम दर क़दम कांटे
बिखरे पड़े पत्थर चल मंज़िल की ओर
हम सफ़र हम दर्द सहारा नहीं साथी
राह खड़े रहज़न चल मंज़िल की ओर
रख कंधों पर गठरी अपनी समेट कर
रक्षा करना अपनी चल मंज़िल की ओर
घना जंगल पहाड़ पर्वत हलचल जानवरों की
लठ रख हाथ चल मंज़िल की ओर
किसी पर भरोसा नहीं रख ख़ुद पर
अकेला अलबेला आज़ाद चल मंज़िल की ओर
ठग जग में जेब कतरे ख़बरदार ‘कागा’
रख इरादा अटल चल मंज़िल की ओर
बहुत दर्द देता एक तरफ़ प्यार
बहुत दर्द देता एक त़रफ़ प्यार
बहुत सुकून देता दोनों त़रफ़ प्यार
नज़रें मिली दो चार आमने सामने
प्यार हुआ मगर एक त़रफ़ प्यार
यक तरफ़ प्यार नहीं दर्द देता
प्यार होता पाक दोनों त़रफ़ प्यार
नज़रों का मिलना कोई गुनाह नहीं
हर किसी से नहीं होता प्यार
प्यार एक त़ोह़फ़ा ज़िंदगी का बेमिस़ाल
मुक़दर वाले को मिलता मुश्किल प्यार
दिल में संजोए रहते आशिक़ ख़्वाब
मुकमल नहीं मिलता किसी को प्यार
आनन फ़ानन में नहीं होता ‘कागा’
दो दिलों का आपस में प्यार
नेता नेतृत्व नीति नीयत
वसुंधरा राजे सरीखा नेता नहीं राजस्थान में
महारानी राजे सरीखा नेतृव नहीं राजस्थान में
दो मर्तबा मुख्यमंत्री बनी रुतब्बा रसूख़ बुलंद
जय जय का नारा गूंजा राजस्थान में
भारतीय जनता पार्टी का झंडा बुलंद किया
विकास की राह आसान हुई राजस्थान में
जल स्वाल्बी योजना से राजस्थान हरा भरा
धोरों वाली धरा पर हरियाली राजस्थान में
भैरोसिंह शेखावत के सपने साकार राजस्थान में
आंसू पूंछे किसानों के क़र्ज़ माफ़ ‘कागा’
नेक नीयत नीति स़ाफ़ सुंदर राजस्थान में
परमार्थी बनो
जीवन में स्वार्थी नहीं परमार्थी बनो
जीवन में बोझ नहीं सार्थी बनो
दुनिया में लोग दोगले दग़ा बाज़
जीवन में शरणार्थी नहीं महारथी बनो
अपनी भुजाओं पर रखो भरपूर भरोसा
पराधीन नहीं पराक्रमी पहलवान अभ्यार्थी बनो
पराये भरोसे पर जीना महा पाप
सिसकते शरणार्थी नहीं अवल भारतीय बनो
कमान पराये हाथों में सौंपना गुनाह
अपने हाथों बाग डोर महारथी बनो
अपने ह़क़ वास्ते खड़े हो जाओ
आंच नहीं आये अपने ख़ुद अभ्यार्थी बनो
दोगली नीति पराये भरोसे नहीं ‘कागा’
नेक नीयत से पेहले भारतीय बनो
सावन
आया सावन मन भावन पावन पवित्र
सत्यम शिवम सुंदरम नित्य पावन पवित्र
सावन मौसम सुहाना बरसे मेघ मल्हार
हर सोम वार व्रत पावन पवित्र
मंदिर शिवालय में पूजा अर्चना अराधना
नित करें नर नारी पावन पवित्र
बिल्व पत्र आक धतूरा दूध दही
घी मधु जल चढ़ पावन पवित्र
अगर तगर धूप बत्ती दिया जलायें
ज्योति करे जग-मग पावन पवित्र
डमरू बजे डम-डम बम-बम
भोले बाबा की जय पावन पवित्र
ढोल नगारा सारंगी साज़ सुनहरा ढोलक
घंट घनघोर बजे हरदम पावन पवित्र
रिमझिम बूंदें बरसे झमाझम बिजली चमके
गर्जे गगन बदरिया छाई पावन पवित्र
झाड़ों पर झूला झूली अकेली सखी
बिना साजन सूना सावन पावन पवित्र
अखियां आंसू बरसे संग सहेली सखियां
सावन आवन कह गये पावन पवित्र
सावन पेहली तीज ओळू सतावे सखी
पपिहा बोले पिया-पिया पावन पवित्र
मोर नाचे मोरनी संग पंख पसार
चित्त चंचल चकोर का पावन पवित्र
बिना पिया जिया जले आग सुलग
केसे बुझे बिन साजन पावन पवित्र
सावन बरसे मूसला-धार मन मायूस
किया सोलह श्रृंगार सखी पावन पवित्र
सज धज बेठ निहारूं पिया ‘कागा’
बीता जाये सावन मन पावन पवित्र
मां ममता
मां जेसी ममता नहीं किसी में
मां जेसी क्षमता नहीं किसी में
मां गुरु मां जननी मनो-कामना
मां जेसी समता नहीं किसी में
नो माह अपने पेट में पाला
मां जेसी अस्मता नहीं किसी में
बोझ उठाया भरकम भारी चलते फिरते
मां जेसी नम्रता नहीं किसी में
प्रसव पीड़ा सहन कर पैदा किया
मां जेसी विनर्मता नहीं किसी में
मंदिरों में मांगी दुआऐं संतान वास्ते
मां जेसी बुद्धिमता नहीं किसी में
ज्ञान गुण संस्कार की सीख दी
मां जेसी विवधिता नहीं किसी में
मां सरस्वती लक्ष्मी ऋद्धि सिद्धि दाता
मां जेसी मानवता नहीं किसी में
मां ज्ञान का सागर ध्यान धारा
मां जेसी अखंडता नहीं किसी में
मां छाया मां माया काया ‘कागा’
मां जेसी महानता नहीं किसी में
भाग कर शादी
पछ्तावा होगा जाग नहींं कर शादी
घर से भाग नहींं कर शादी
सपनों की शहज़ादी ह़सीन हूर परी
मां की ममता पिता की परी
बड़े अरमान से पाला पोषा तुमको
लाड़ कोड़ से सजाया संवारा तुमको
धूम धाम धड़ाके से करेंगे शादी
वरना होगी जीवन में ग़ल्त़ी बर्बादी
किसी अनजान के प्रेम जाल में
फंस नहींं कर फ़ेस़ला चाल में
जवानी की आग दो दिनों वास्ते
बुझ जायेगी जलती दो दिनों वास्ते
मां बाप पर क्या बीतेगी सोच
जीते मर जाना बेमोत ज़रा सोच
मां के दूध की लाज रख
दुख का बादल फटा लाज रख
भाग कर शादी करने वालों का
अंजाम बुरा होता बेअक्ल वालों का
‘कागा’ नहींं कर परिवार को बदनाम
अड़ोस पड़ोस गांव गवाड़ी को बदनाम
मेरी मां
मेरी तस्वीर मेरी प्यारी मां
मेरी तक़दीर मेरी प्यारी मां
नो माह कोख में रखा
मेरी तदबीर मेरी प्यारी मां
दुनिया का दीदार कराया आपने
मेरी तह़रीर मेरी प्यारी मां
मैं रोया मां मुस्काई मचल
मेरी तक़रीर मेरी प्यारी मां
मैं महज़ खिलोना सलोना मूर्त
मेरी तास़ीर मेरी प्यारी मां
सांसे ख़ून पसीना सब तेरा
मेरी गम्भीर मेरी प्यारी मां
बोलना चलना खेलना सिखाया ‘कागा’
मेरी ज़ंजीर मेरी प्यारी मां
हम आपके
हम आपके हो गये छोड़ मत जाना
हमें भूल कर दिल तोड़ मत जाना
जब से हुआ आंखों का आमना-सामना
बस गये दिल में छोड़ मत जाना
इंसान ख़त़ा का घर हो कोई ग़ल्त़ी
माफ़ कर देना ख़त़ा छोड़ मत जाना
बिना तेरे जीना मुह़ाल हमारा ह़ाल बेह़ाल
मुंह मोड़ नाता तोड़ छोड़ मत जाना
वादा निभाना चाहा दिल से दिल में
बिना तेरे जीना बेकार छोड़ मत जाना
बसे आंखों में आप काजल नहीं लगाया
आंखों में रोशनी तेरी छोड़ मत जाना
तुम मेरी जान आन बान शान शोक्त
बिना तेरे सूना जहान छोड़ मत जाना
बिना तेरे सहारा नहीं कोई मेरा ‘कागा’
बेसहारा अधर झूल में छोड़ मत जाना
मेरा मन
मेरा मन बावरा हर पल छू लेता आसमान
बिना पंख फेलाये बुलंद परवाज़ छू लेता आसमान
सपने बड़े अ़जीबो ग़रीब लाजवाब बेहतरीन शानदार ह़ोस़ले
बिना किसी देर आंख झपके छू लेता आसमान
मन मेरा कहां बसेरा ठाठ बाट नामालूम मुझे
कभी ग़मग़ीन कभी ख़ुश ख़ुदार छू लेता आसमान
हिम्मत ह़सीन ख़्वाब ख़ास़ ख़ूबस़ूरत ह़ोस़ला अफ़ज़ाई करता
पंखों की परवाह नहीं ज़रा छू लेता आसमान
अ़क़्ल का अक़ाबर तेज़ तर्रार तंदुरस्त चुस्त दुरस्त
बुलंद इरादा नेक नियत नीति छू लेता आसमान
बाज़मीर बाशऊर बावफ़ा बाअस़र बुर्दबार बावक़ार बेबाक बादशाह
ग़ुलाम नहीं किसी ग़ैर का छू लेता आसमान
बाज़ के पंख है उड़ होता ओझल ‘कागा’
मोह़ताज मजबूर माज़ूर ताबेदार नहीं छू लेता आसमान
घोटाला
नेता की नियत ख़राब करता ख़ूब घोटाला
नेता की नियत ख़राब करता ख़ूब घोटाला
पीठ से चिपका पेट आगे निकल आया
पीता हर रोज़ शराब करता ख़ूब घोटाला
भर पेट खाना खाता था यदा-कदा
खाता हर शाम कबाब करता ख़ूब घोटाला
वादा करता निभाता नहीं इरादा नेक नहीं
देता नहीं कोई जवाब करता ख़ूब घोटाला
नोकर चाकर चापलूस चुग़ल के भारी झुंड
बीच मे़ बेठा स़ाह़ब करता ख़ूब घोटाला
चारा कोयला भूमि माफिया पत्थर खान खदान
कोई नहीं ह़िस़ाब किताब करता ख़ूब घोटाला
घपला घोटाला मे़ घाघ बना गे़ंग बाज़
सब करते आकर आदाब करता ख़ूब घोटाला
बेशुमार धन दोलत शहोरत शान शोक्त रुतब्बा
शोक़ीन शरारत रंगीन शबाब करता ख़ूब घोटाला
बेपरवाह बना बेताज बादशाह ग़ुलाम अ़वाम ‘कागा’
लटका खटका मटका लाजवाब करता ख़ूब घोटाला
पाप का घड़ा
पाप का घड़ा भर चुका फूटने वाला है
स़ब्र का बांध भर चुका फूटने वाला है
घमंड में चूर धन दोलत सत्ता का नशा
सामंत का अंत हो चुका फूटने वाला है
गागर में सागर समाया रंगी ने रंग जमाया
मग़रूर का सिर कुचल चुका फूटने वाला है
चमन में रंग रूप कली फूल पंखुडियां फली
मेवा फल पीला पड़ चुका फूटने वाला है
बसंत बहार बुलबुल बाग़बां बुलंद इरादा झूम उठे
पतझड़ का मौसम बदल चुका फूटने वाला है
शून्य से शिखर पहुंचे पग रख पायदान पर
वक़्त बेशक करवट बदल चुका फूटने वाला है
क़स्म खाई रस्म निभाई दिल से दोस्ती ‘कागा’
हवा का रुख़ बदल चुका फूटने वाला है
जान
तेरे बिना जान जीना मुह़ाल
तेरे बिना बेजान जीना मुह़ाल
दिलो दिमाग़ में तेरा अक्स़़
तेरे बिना जान जीना रक़स़
बिना जान जला देते लोग
तेरे बिना दफ़ना देते लोग
जान है तो जहान है
वरना कौन कोई महान है
बिना जान जिस्म जनाज़ा निकला
बेजान जान जीना जनाज़ा निकला
‘कागा’ जान देख होते मेहरबान
जान पर होते हर क़ुर्बान
प्रेरणा
प्रेरण मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
दुआ मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
माता पिता का साया रहे सिर पर
प्रेम मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
सांसें मिली उधार की वापिस लोटानी तुम्हीं
स्नेह मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
पांच तत्व का पुतला बना आत्मा अमर
सहारा मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
मन बुद्धि चित्त चंचल भटक रहा हरदम
संकेत मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
हर चीज़ सौंप दी सारी प्रक्रिया पराधीन
सृजन मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
रोता आया रुला कर जाऊंगा देख लेना
आश मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
बंद मुठ्ठी आये खुले हाथ जाना बंदे
मोज मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
आया जग में सांसें साथ में ‘कागा’
साथ मिले प्रभू हर पल हर घड़ी
माता पिता
मेरा अस्तित्व मेरे माता पिता
मेरा व्यक्तित्तव मेरे माता पिता
मेरो रोब रुतब्बा राज़ रसूख़
मेरी शहोरत मेरे माता पिता
मेरे दाता मेरे भाग्य विधाता
मेरी क़िस्मत मेरे माता पिता
मेरी धन दोलत मेरी जान
मेरी इज़्जत मेरे माता पिता
मेरा आन बान शान शोक्त
मेरी हिम्मत मेरे माता पिता
मेरा स्वास्थ्य मन तन बदन
मेरा रक्त मेरे माता पिता
मेरा वजूद ताक़्त मेरी जिंदगी
‘कागा’ क़ीमत मेरे माता पिता
मालिक मेहरबान
मालिक मेहरबान गधा पेहलवान दबंग का दस्तूर
चेहरों का चयन होता दबंग का दस्तूर
सांईया बने कोतवाल डर किस बात का
चमचों को चाटा जाता दबंग का दस्तूर
दब्बे कूचले दबाये जाते क़दमों के तले
ताक़्त को ताज तख़्त दबंग का दस्तूर
वक़्त ने करवट बदली लागू झमूरी निज़ाम
आईन की अंगड़ाई से झमूरियत का दस्तूर
आ़म अ़वाम को ता़क़्त मिली वोट की
संविधान में सुरक्षा जारी झमूरियत का दस्तूर
ख़ोफ़ का साया बरक़रार सांपों का हरदम
यदाक़दा गड़बड़ होती ख़ामोश झमूरियत का दस्तूर
झमूरियत में बंदे गिनते क़ाबिल नहीं ‘कागा’
जीता वो सिकंदर शाह झमूरियत का दस्तूर
मेरे अल्फ़ाज़
मेरे हमराज़ मेरे अल्फ़ाज़ याद रखना
ज़िंदगी है मह़दूद अंदाज़ याद रखना
ज़िंदगी ताश का खेल बावन पत्ते
ज़िंदगी में जोकर राज़ याद रखना
इक्के से दहले तक तकरार होता
बेगम बादशाह ग़ुलाम नाज़ याद रखना
ह़ुक्म की दुक्की कर देती कमाल
रंग काला लाल मिज़ाज याद रखना
ज़िंदगी की हर बाज़ी जीतना मुश्किल
कौन ख़ुश कौन नाराज़ याद रखना
फूल चौकड़ी को भूलना नहीं ‘कागा’
ज़िंदगी में ज़रा जांबाज़ याद रखना
जीना सीख
ज़िंदगी पर भरोसा नहींं जीना सीख
घड़ी भर भरोसा नहींं जीना सीख
सांसें चलती अंदर बाहर आना जाना
सांसों पर भरोसा नहींं जीना सीख
शरीर जीवित तब तक अमानत धरोहर
तन पर भरोसा नहींं जीना सीख
मन बुद्धि चित्त अहंकार मोह माया
काया का भरोसा नहींं जीना सीख
रिश्ता नाता सब मत़लब का झूठ
किसी का भरोसा नहींं जीना सीख
मीठा बोल अनमोल बेश-क़ीमती वचन
आत्मा पर भरोसा नहींं जीना सीख
पांच कर्म पांच ज्ञान इंद्रियां शिस्थल
छाया पर भरोसा नहींं जीना सीख
जीवन जंजाल जान मौत सत्य ‘कागा’
भविष्य पर भरोसा नहींं जीना सीख
अस़ल नस्ल पेहचान
अस़ली कौन नक़ली कौन कर पेहचान
कौन सच्चा कौन झूठा कौन कर पेहचान
मत़लबी लोग मुंह लग जाते चापलूस
कौन चुग़ल चंगा कौन कर पेहचान
अगर परखा जाता आग में जलाओ
धूंआ उठता सुगंध भरा कर पेहचान
मुश्क घिस पत्थर पर पता चलता
होता माह़ोल खुशबू वाला कर पेहचान
मुश्किल घड़ी में साथ छोड़ते पराये
कौन गैर कौन अपना कर पेहचान
कंचन घिस कसोटी पर परख लेते
अस़़ल नक़ल की होती निजी पेहचान
हीरे की चमक दमक अंधेरा ‘कागा’
कांच चमके सूरज रोशनी परख पेहचान
सास बहु
सास भी कभी बहु थी
सास बनी अब बहु थी
जोश जल्वा जुनून जवान थी
होश ह़वास हूबहू बहु थी
चुलबुली खलबली मचा देती तब
नक़ाब ओढ़ सुंदर बहु थी
कली खिली पंखुड़ियां महकी बहकी
फूल बनी अब बहु थी
शर्मीली नाज़ नख़रा करती कमाल
लाज मर्यादा लाडली बहु थी
सास बनी घर में ख़ास़
रोब रुतब्बा रुसूख़ बहु थी
सज धज दुल्हन बनी जब
बनी सास कभी बहु थी
सास का सितम सहा होगा
याद होगा सास बहु थी
बहु बेटी हो सास बनोगी
सास आज उदास बहु थी
बहु नहीं बड़बड़ा बेटी ‘कागा’
सास तेरी कभी बहु थी
सम्मान से जीना
सम्मान से जीना आसान नहीं जग में
अरमान से जीना आसान नहीं जग में
बेज़मीर बन जीना बांयें हाथ का खेल
ईमान से जीना आसान नहीं जग में
अपमान का घूंट पिओ भर कर प्याला
स्वाभिमान से जीना आसान नहीं जग में
चुग़ल बन चापलूस बन चमचागिरी चाटूकारी कर
ह़ुकमरान से जीना आसान नहीं जग में
मातहत बन आहत बन राहत चाहत नहीं
क़द्रदान से जीना आसान नहीं जग में
ग़ुलाम बन सलाम कर झुक कर रहना
मर्दान से जीना आसान नहीं जग में
ज़िंदा लाश बन कर जीना हरदम गवारा
जान से जीना आसान नहीं जग में
क़दम दर क़दम कांटे बिखरे बहुत ‘कागा’
सीना तान जीना आसान नहीं जग में
ख़ुद पर भरोसा
पराया कोई भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
माया का भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
छांव घटती बढ़ती सूरज की छट्टा पर छाई
छाया का भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
ख़ानदान ख़ुशह़ाल पीढ़ियों से माला-माल ख़ुद कंगाल
माया का भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
तन बदन तंदुरस्त चुस्त दुरस्त चेहराचंगा चमकीला
काया का भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
मत़लब की दुनियां रंगीन संगीन ग़मगीन ह़सीन ख़्वाब
संजोया पर भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
बेटा बीवी का बंधुआ बेटी दामाद की अमानत
जाया पर भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
मां की कोख से पैदा पुत्र पुत्रियां संतान
भाया पर भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
ज़लज़ला आता ज़मीन पर उड़ जाते पंछी सारे
ठहराया पर भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
आग लगी जंगल में अफ़रा-तफ़री मची ‘कागा’
बुझाया पर भरोसा नहींं ख़ुद पर भरोसा रख
गुरु महिमा
गुरु माता पिता गुरु गोविद ज्ञाता
गुरु बिना जग अंधियारा गुरु दाता
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु महेश
गुरु ज्ञान की खान भाग्य विधाता
गुरु गंगा जल निर्मल करती धारा
होता पावन पवित्र मन भावन नहाता
गुरु गायत्री गुरु गीता अठारह अध्याय
जो करता पठन प्रवीण बन जाता
गुरु बिना मुक्ति भक्ति युक्ति नहीं गुरु
गुरु बिना दीक्षा शिक्षा नहीं सुजाता
गुरु जल थल आग आकाश वायु
गुरु प्राण प्रतिष्ठा गुरु आत्म अनंता
गुरु की महिमा गाये कीर्तन ‘कागा’
तीन ताप हरता हरदम दीन दाता
उम्रदराज
बुढ़े हो गये बल नहीं चल नहीं सकते
बिना लाठी सहारे चार क़दम चल नहीं सकते
बच्चपन बीता पच्चपन गुज़रा गया जोश जल्वा जवानी
कमज़ोर काया कमर झुकी हरदम चल नहीं सकते
याद आती जवानी चुस्त दुरस्त था तन मन
सांसें फूल जाती हांफते हम चल नहीं सकते
आंखों की रोशनी धुंधली दिखाई नहीं देता दूर
घुटनें करते कड़कड़ बेबस बेदम चल नहीं सकते
कानों से सुनाई नहीं देता आवाज़ कोई ‘कागा’
मोह़ताज मजबूर माज़ूर हुए हम चल नहीं सकते
मन की बात
कोई नहीं सुनता मेरे मन की बात
दबी रह जाती मेरे मन की बात
कोशिश करता हर किसी को सुनाने की
सुनते नहीं रुक मेरे मन की बात
बात में बेहद दर्द पीड़ा से लबरेज़
कांपते मेरे होंठ कहते मन की बात
ग़रीब हूं मगर बेग़ैरत नहीं ह़ैरत केसी
लड़खड़ा कर लरज़ते लब मन की बात
अंदर की आग भभक जाती जवाल बन
धूंआ बन मन धड़के मन की बात
रातें कटती नहीं दिन गुज़रता नहीं नादान
हमदर्द नहीं कोई मेरा मन की बात
दिल चाहता फ़रियाद करें आहें भर कर
किसको सुनायें रोते-रोते मन की बात
ह़ाकम बेहरा ग़ूंगा नाबीन सुनता नहीं ज़रा
संगी साथी सब ख़ामोश मन की बात
बिचोलिये बड़े बेरहम देते झूठे झांसे ‘कागा’
कौन बने फ़िरश्ता सुनाऊं मन की बात
आम ख़ास़
आम के आम गुटलियों के दाम
आम हुए ख़ास़ गुटलियों के दाम
आम चूस फेंक देते छिलके गुटलियां
अब आम खाओ जमा करो गुटलियां
वक़्त बदला बख़्त बदला सख़्त ज़माना
रद्दी कोई नहीं सब क़ीमती ज़माना
साइंस ने खोज निकाला देख नतीजा
बीज में फल होता नूरानी नतीजा
जीवित रक्त दान करो मानव को
मरने पर अंग दान मानव को
‘कागा’ किसी को कम मत जानो
करो कद्र सबकी कम मत जानो
ख़ुद ग़र्ज़
अपने हो तो सामने आओ वरना ख़ुद ग़र्ज़
अपने हो तो थामने आओ वरना ख़ुद ग़र्ज़
मत़लबी मौक़ा प्रस्त लोग मिलते सफ़र के दरमियान
अपने हो तो मानने आओ वरना ख़ुद ग़र्ज़
गिड़गिड़ाते ग़र्ज़ में घुटनें के बल चल चापलूस
अपने हो तो जानने आओ वरना ख़ुद ग़र्ज़
चहल क़दमी करते हर क़दम चोखट चूम चाटूकार
अपने हो तो नापने आओ वरना ख़ुद ग़र्ज़
इर्द गिर्द चारों ओर लगाते चक्कर चुग़ल ख़ोर
अपने हो तो संवारने आओ वरना ख़ुद ग़र्ज़
मुश्किल घड़ी आफ़्त पड़ी परेशान कठिन महसूस ‘कागा’
अपने हो तो सम्भालने आओ वरना ख़ुद ग़र्ज़
अंधविशास
अंधविश्वास पर विश्वास नहीं करना आस्था पर चोट
आत्मविश्वास पर विश्वास करना नहीं आस्था पर चोट
मंदिर मस्जिद श्रद्धा के केंद्र करते पाठ पूजा बंदगी
चर्च गुरुद्वारे में सिर झुकाये करते पूजा बंदगी
ढौंगी पाखंडी काली कम्बली वाला क़लंदर फ़क़ीर फक्कड़
करते करामात चमत्कार हर गली नुक्कड़ पर घुमक्कड़
फु़टपाथ पर बेठ बेचते पत्थर देखते हस्त रेखाऐं
भाग्य बदलने का भरोसा देकर देखते हस्त रेखाऐं
कोई ज्योत्षी निज़ोमी अघोरी बन रमल रंग जमाते
ख़ुद फिरते कंवारे बांझ ओरों को पुत्र थमाते
मृत्यू भोज कर मोज मनाते सगा मरने पर
जीवित जीमण नहीं भूख मरता देते मरने पर
‘कागा’ जीवित खाये मृत ख़ुश नहीं होता यक़ीन
उल्टी सीधी मनगढ़ंत बकवास पर नहीं होता यक़ीन
बादल
बादल छाये गगन पर बरखा आई रिमझिम
गाज गर्जन गगन गूंजे बूंदें बरसे रिमझिम
काली घटा घनघोर वर्षा ऋतु आई झूम
सावन पेहली तीज संग वर्षा बरसे रिमझिम
झूला झूली अकेली साजन नहीं संग सखी
मन बड़ा बावरा उछले कूदे बारिश रिमझिम
किया सोलह श्रृंगार हरियाली छाई धरती पर
बिजली चमके मन मोहनी बरखा बूंदे़ रिमझिम
सावन बीता गुज़र गये सारे तीज त्यौहार
भादो को भूल मत भरतार बारिश रिमझिम
अटरिया पर बेठा कलोल करता बोले ‘कागा’
उड़ाऊ दिन में दस बार बरखा रिमझिम
हर क़दम
हर क़दम प्रयास निशान बने तमना मेरी
हर मुहिम इतिहास अरमान बने तमना मेरी
त़ोत़ा तेज़ तर्रार बोलता बंद पिंजरे में
हर क़दम साहस निशान बने तमना मेरी
बाज़ उड़ता ऊंचा आसमान में आज़ाद पंछी
हर क़दम आश निशान बने तमना मेरी
गधा मालिक का ग़ुलाम बेग़ैरत ज़िंदगी भर
हर क़दम क़्यास निशान बने तमना मेरी
शेर जंगल का राजा अपनी ताक़त पर
हर क़दम अभ्यास निशान बने तमना मेरी
मछलियां अनेक मगरमच्छ एक समुंदर में बसते
हर क़दम आभास निशान बने तमना मेरी
सांप को इजाज़त घर में घुसने की
हर क़दम अरदास निशान बने तमना मेरी
जीवन मिला जग में दो दिन ‘कागा’
हर क़दम ख़ास़ ख़ास़ निशान बने तमना मेरी
मददगार
मददगार बन आ़म अ़वाम का
ख़िदमतगार बन ग़रीब अ़वाम का
मदद कर दिलो जान से
यादगार बन आ़म अ़वाम का
मज़लूम माज़ूर मिस्कीन मोह़ताज मजबूर
एतबार बन आ़म अ़वाम का
झुग्गी झौंपड़ पट्टी को देख
हक़दार बन आ़म अ़वाम का
कटोरा थाम हाथों में बच्चे
सरदार बन आ़म अ़वाम का
घड़ियाली आंसू बहाना फ़ालतू बेकार
पेहरेदार बन आ़म अ़वाम का
ह़ाल पूछ आंसू पूंछ ‘कागा’
दारोमदार बन आ़म अ़वाम का
हिंदी है हम
हिंदी है हम हिंदी भाषा हमारी
हिंदी हृदय बसे हिंदी भाषा हमारी
हिंद मुल्क हमार हम हिंद वासी
जन्म हिंद में हिंदी भाषा हमारी
दुनिया में प्यारा सबसे न्यारा हिंदुस्तान
जान से प्यारी हिंदी भाषा हमारी
हिंद मिट्टी हर रोज़ चमते हम
झूमते हम हरदम हिंदी भाषा हमारी
हिंदी मातृ भाषा हिंद जन्म भूमि
हिंदी हमारे बोल हिंदी भाषा हमारी
गायें गीत संगीत वत़न का तराना
हिंदी ज़ुबान मे़ हिंदी भाषा हमारी
हिंदी हर्ष उपजे कलेजा कलोल ‘कागा’
हिंदी हिलोर अपार हिंदी भाषा हमारी
प्रेम
प्रेम जीवन प्रेम पूजा पाठ प्रसाद
बिना प्रेम जीवन सूना जीना बर्बाद
नारी तू नारायणी नर की जननी
विना प्रेम नर नीरस तू संगनी
प्रेम में पागल होते नर नारी
बिन प्रेम प्रभू नहीं प्रसन्न पूजारी
राधा दीवानी कृष्ण की गाथा ग़ज़ब
मीरा मस्तानी गाती गीत अजब ग़ज़ब
ईश्वर ने बनाई नारी नर निराला
चुम्बक खींचे परस्पर नर निराला
‘कागा’ नर नारी की जुगल जोड़ी
प्रेम कर मिल जुल जुगल जोड़ी
ख़बरदार
ख़बरदार दीवारों के कान होते हैं
सुन लेती सुगबुगाहट कान होते है
खुसर-फुसर करो कितनी आहिस्ता धीमे
सुन लेती ह़ालात कान होते है
साज़िश रचने वाले करते मुख़्फ़ी गुफ़त्गू
होते राज़ फ़ाश कान होते है
ह़ुकम की तामील करते ताबेदार तुरंत
हा़कम रहो होशियार कान होते हैं
कानो कान बात पहुंचती दूर तलक
तेज़ होती रफ़्तार कान होते है
इश्क़ पर पेहरा चाहे चेहरा ढांप
झलक की झंकार कान होते है
नज़रें छिपा नाज़नीन घूंघट की ओट
करती अपना शिकार कान होते है
काना-फूसी करता ज़माने बेवजह ‘कागा’
इश्क़ का इज़्हार कान होते है
हिंदी राष्ट्र भाषा
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी अनमोल
हिंदी हमारी मायड़ भाषा हिंदी अनमोल
हम भारत वासी अनेकता में एकता
उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम हिंदी अनमोल
क्षेत्रीय भाषाओं का अपना महत्व महान
लिबास खान पान अलग हिंदी अनमोल
रंग गोरा काला सांवला मोटा तगड़ा
टूटी फूटी आधी अधूरी हिंदी अनमोल
ह़ुकूमत ने मान्यता प्रदान की यकराय
हिंदी हम हिंदी भाषा हिंदी अनमोल
पत्र व्यवहार बोल चाल ख़तो किताब
हिंदी मे होगा काम हिंदी अनमोल
आओ मिल जुल करें प्रचार ‘कागा’
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी अनमोल
नक़ली दौर
गया दौर अ़क़ल का आया दौर नक़ल का
अ़क़ल मंद की पूछ नहीं दौर नक़ल का
हर चीज़ में मिलावट खाना पीना रहन सहन
लिबास आस पास आम ख़ास़ दौर नक़ल का
परीक्षा में पकड़े जाते नक़ली होते पैपर लीक
रद्द होते इम्तहान धड़ले से दौर नक़ल का
रिश्ते रिश्वत के भेंट चढ़ गये बिकती दुल्हन
दुल्हा मांगे दहेज नशेड़ी नादान दौर नक़ल का
पंच परमेश्वर होते थे साक्षात दर्शन भगवान के
पिशाच बन खुला पाप करते दौर नक़ल का
पानी पीना छान गिनायत करना जान दौर नहीं
दारू से दूरी नहीं मजबूरी दौर नक़ल का
शराब कबाब शबाब का शोक़ शरारत करते ख़ूब
टूटते रिश्ते नाते पल में दौर नक़ल का
ख़ानदान अस़ल नस्ल गये भाड़ में सब नापसंद
बेबुनियाद ने घेरा हस्ती को दौर नक़ल का
खान-पान होटलों में गीत संगीत बज़ारू बनावटी
सजावटी सारा साज़ो सामान सुंदर दौर नक़ल का
चेहरा चमकाते ब्यूटी पार्लर में चमक दमक चौगुनी
रंग रूप स्वरूप फीका नक़ली दौर नक़ल का
अनजान आती सज धज दुल्हन बन लुटेरी ‘कागा’
समेट सारा धन रफू़-चक्कर दौर नक़ल का
दो गज़
दो गज़ ज़मीन वास्ते ज़िंदगी सफ़र जारी रखा
दो गज़ कफ़न वास्ते ज़िंदगी सफ़र जारी रखा
पैदा होते जहान में हम रोये ज़माना ख़ुश
सफ़र ख़तम कर चले ज़माना रोया हम ख़ुश
बंद मुठ्ठी आये नंगे जिस्म खुले हाथ चले
दो गज़ ज़मीन कफ़न वास्ते उम्र भर जले
क्या खोया क्या पाया नहीं कर सके फ़ेसला
ज़िंदगी भर रहा अस़ल मालिक से बड़ा फ़ास़ला
कमाय ख़ूब गंवाया अनगिनत कोई लेखा जोखा नहीं
अरमान अधूरे रहे मूकमल नहीं दग़ा धोखा नहीं
ज़िंदगी में ग़ल्त़ी ग़फ़लत जाने अनजाने हुई ख़ूब
माफ़ करना मेरे अज़ीज़ अपना जान मेरे महबूब
‘कागा’ कोशिश किसी दिल को ठेस नहींं लगे
अगर मिली चोट भूल जाना दर्द नहीं जगे
काश
काश मेरा दिल ग़ज़ल होता गाते लोग
काश मेरा दिल मंज़िल होता जाते लोग
दिल सबके सीने में होता हैं मौजूद
काश मेरा दिल मेवा होता खाते लोग
दिल खिलोना नहीं तोड़ दें बहलने पर
काश मेरा दिल खिलोना होता तोड़ते लोग
ख़ुद ग़र्ज़ बड़ी बीमारी चाट लेते चपल
काश मेरा दिल चपल होता चाटते लोग
दुनिया में दो मुंह के लोग देखे
काश मेरा दिल घास होता काटते लोग
तेरे मुंह पर तेरे मेरे सामने मेरे
काश मेरा दिल प्रसाद होता बांटते लोग
दिल धड़कता सीने में उछल कूद कर
काश मेरा दिल कबाब होता खाते लोग
प्यास बुझती नहीं भूख मिटती नहीं ‘कागा’
काश मेरा दिल शराब होता पीते लोग
बिक जाते
बेवफ़ा बिक जाते यक़ीन नहीं करना
बेशऊर बिक जाते यक़ीन नहीं करना
बेईमान बदमाश बदलाव मिज़ाज के होते
बेजान बिक जाते यक़ीन नहीं करना
दग़ा करते हरदम सगा नहीं होते
बेवक़ूफ़ बिक जाते यक़ीन नहीं करना
नोटंकी करते नाता निभाने की नादान
बेनक़ाब बिक जाते यक़ीन नहीं करना
दिल के सोदागर बन करते व्यापार
बेबुनियाद बिक जाते यक़ीन नहीं करना
आंसू बड़े अनमोल कोई मोल नहीं
बेहूदे बिक जाते यक़ीन नहीं करना
चंद दिन चापलूस करते चाटुकारी ‘कागा’
बेवक़ार बिक जाते यक़ीन नहीं करना
नास्तिक
जीवन में नास्तिक आस्तिक नही वास्तविक बन
कृष्ण काला राधा गौरी नहीं वास्तविक बन
हर पल घड़ी बीत जाता जन मानस
माह़ोल बदल जाता वादा नहीं वास्तविक बन
मन बड़ा बावरा उछल कूद करता रहता
उड़ जाता ऊंचा इरादा नहीं वास्तविक बन
राम सीता की जोड़ी निराली मतवाली बनी
अग्नि परीक्षा की बाधा नहीं वास्तविक बन
सीता का हरण हुआ लक्ष्मण रेखा लांघ
रावण लंका की श्रद्धा नहीं वास्तविक बन
हनुमान संग सुग्रीव सहायक विभिषण विशेष ‘कागा’
राम नाम रट आधा नहीं वास्तविक बन
मर्यादा
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम दशरथ सुत दाता
रघुकुल में जन्म लिया कोख कोशल्या माता
दशरथ की तीन रानियां केकेई सुमित्रा कोशल्या
चार पुत्र राम लखन शत्रुघन भरत भ्राता
राम बलशाली गुरू विश्वामित्र के परम शिष्य
धनुर्विधा में धुरंद्र प्रवीण गुण ज्ञान ज्ञाता
जनक ने स्वंम्बर रचा सीता ब्याहने का
शिव बाण तोड़ा सभा में छाया सन्नाटा
राम को वर माला पेहाई गले में
जानकी बनी दशरथ की बहुरानी विधिवत ब्याहता
बारात संग आई सीता गीत मंगल चार
अयोध्या में आनंद भया फूलों नहीं समाता
मंथरा की मंद बुद्धि केकेई की कुमति
राम को राज तिलक बदले बनवास जाता
सीता संग लिछमण चले काफ़िला बन ‘कागा’
विधि का विधान नहीं टला लिखा विधाता
नींद नहीं आती
सताये तेरी याद रात भर नींद नहीं आती
रोये गुज़री रात प्रभात तक नींद नहीं आती
सावन मन भावन सूना गया सावन पेहली तीज
संग सहेलियां मन मायूस रात नींद नहीं आती
झूला झूली अकेली बिना तेरे बना जीना जंजाल
बीत गया सारा साल रात नींद नहीं आती
मेहंदी तेरे बिना नहीं रंग रचती हाथों में
फीकी पड़ गई चाल रात नींद नहीं आती
सावन बरसें रिमझिम बूंदें बरसी आंखें आंसू अपार
साजन नहीं आया सखी रात नींद नहीं आती
करवटें बदल सलवटें पड़ गई सेज में ‘कागा’
पल पल पिया निहार रात नींद नहीं आती
बरखा बहार आई
बरखा बहार आई गायें गीत मेघ मल्हार
ख़ूब ख़ुशी छाई गायें गीत मेघ मल्हार
बादल बरसते झमाझम रिमझिम बूंदें मन भावन
पावन बदरिया छाई गायें गीत मेघ मल्हार
काले बादल घनघोर घने गर्जे गगन गाज
प्रसन्न बहिन भाई गायें गीत मेघ मल्हार
मेंढक करें टर्र टर्र मोर मोरनी मस्त
शुभ वेला आई गायें गीत मेघ मल्हार
भीगी भूमि झूम उठा किसान ग़रीब कामगार
धरती हरियाली छाई गायें गीत मेघ मल्हार
सावन आवन कह गया आया नहीं पिया
जिया याद आई गायें गीत मेघ मल्हार
पशु पक्षी करते कलोल अनमोल दिन रात
बिजली धूम मचाई गायें गीत मेघ मल्हार
गौपाल बजायें बांसुरियां तान धुन सुन सुरीली
गायें दोड़ आई गायें गीत मेघ मल्हार
हळ जोता हाळियों ने अपने खेतों में
भूल गये महंगाई गायें गीत मेघ मल्हार
फस़ल बोया मूंग मोठ गवार तिल बाजरा
भतारण भत्ता लाई गायें गीत मेघ मल्हार
उग आया अनाज कच्ची कौंपल बन कागा’
बज उठी शहनाई गायें गीत मेघ मल्हार
प्रेम जीवन
प्रेम जीवन है बिना प्रेम जीवन जंजाल
प्रेम पूंजी है बिना प्रेम जीवन कंगाल
सब के अंदर मणि कोई सूना नहीं
प्रेम अनमोल धन बिना प्रेम जीवन मुह़ाल
प्रेम पूजा पाठ प्रेम प्रार्थना कामना आराधना
प्रेम मनोर्थ पूर्ण बिना प्रेम जीवन मकड़जाल
प्रेम कर पशु पक्षी जीव जंतु करते
प्रेम अनुपम उपहार बिना प्रेम जीवन कंकाल
प्रेम प्रकृति की देन प्रति प्राणी को
प्रेम पावन पवित्र बिना प्रेम जीवन पंपाल
प्रेम की वाणी मन मोहनी सोहनी ‘कागा’
प्रेम जीवन आधार बिना प्रेम जीवन कुचाल
दिल की आवाज़
दिल की आवाज़ सुन दिलबर साज़ सुनहरा
दिल की आवाज सुन दिलबर राज़ गेहरा
आंखों दिल का नाता बड़ा नफ़ीस़ नुमायां
दिल की आवाज़ सुन दिलबर प्यार पेहरा
समुंदर की तलहटी में हीरे मोती बिखरे
दिल की आवा़ज़ सुन दिलबर अजनबी ठहरा
प्यार आग का दरिया कूदा जल गया
दिल की आवाज़ सुन दिलबर आशिक़ बेहरा
गोत़ा-ख़ोर ने ग़ोता लगाया गेहरे पानी
दिल की आवाज़ सुन दिलबर बेनक़ाब चेहरा
किश्ती फंसी मंझधार में मांझी बड़ा मायूस
दिल की आवाज़ सुन दिलबर झंडा लेहरा
ह़ोस़ला रख बुलंद बरक़रार किरदार कामिल ‘कागा’
दिल की आवाज़ सुन दिलबर सिर स़ेह़रा
बारिश का मौसम
बारिश का मौसम बड़ा मनोहर दिल बाग़ बाग़
मन मस्त रोम रोम में रचा राग राग
मोर नाचे पुकारे पपिहा पिया पिया जले जिया
मोरनी मन उदास अंग अंग में जले आग
कोयल की कूहक दिल के साज़ सुर जगाये
फुफार भरे हुंकार सोई पड़ी निंदिया नागिन नाग
भीगी भूमि लबालब भरे ताल तलाई पोखर तालाब
हाळी मन हृषित उठाया हळ जोता मन जाग
जीव जंतु नर नारी ख़ुश नदी नाले बहते
झलक देखो छिलका कचरा कीचड़ झील किनारे झाग
गोरी तान घूंघट पनघट पर भरे पालर पणिहारी
मूंछ मरोड़ मोटियार मुस्काये बांध माथे पीळी पाग
मेंढक करे टर्र टर्र फुर्र उड़ती चिड़ियां ‘कागा’
सखी साजन मिल गाये गुनगुनाते मेघ मल्हार राग
ओ मन मोहन
अब त़ो लोट आओ मन मोहन
मोहन मुरली वाला आओ मन मोहन
गायें गोपियां तेरे बिना बिलखे बेगानी
रुपाली राधा रानी आओ मन मोहन
ब्रिज वासी बंसी वाला करते याद
राधा रुकमणी महारानी आओ मन मोहन
तेरे बिना सूनी गलियां चोपाल चोबारा
बंसी बजाओ धुन आओ मन मोहन
सुदामा तेरे दर दीवाना होकर खड़ा
खाओ चावल चन्ना आओ मन मोहन
मीरा अपने मन में छवि को
छूती हर बार आओ मन मोहन
अर्जुन गीता ज्ञान की आश में
ध्यान में मगन आओ मन मोहन
पशु पक्षी प्राणी जीव जंतु ‘कागा’
तेरी है तलाश आओ मन मोहन
कोई नहीं बोलता
सबको सांप सौंघ गया कोई नहीं बोलता
लगा मुंह पर ताला कोई नहीं बोलता
लालच की लार टपकी लपकी ज़ुबान पर
गूंगा गुड़ स्वाद जेसे कोई नहीं बोलता
सबके तालू पर चिपक गई चिकनी चाशनी
मिलता मीठा मधुर ज़ायक़ा कोई नहीं बोलता
क़त़ल हो रहा क़ौम का आंखों सामने
लगी लालच की लत कोई नहीं बोलता
समाज के दुश्मन तीतर स़दीयों से तंवारे
संवारे अपना ख़ुद जीवन कोई नहीं बोलता
जब आती आंच अपनों पर आफ़त ‘कागा’
ख़ामोश होकर देखे तमाशा कोई नहीं बोलता
रात गुज़री
रो-रो कर रात गुज़री वो नहीं आये
पिया-पिया कर रात गुज़री वो नहीं आये
आंखों में औंघ नहीं आंसू भरे लबालब लबरेज़
राह देख रोये रात गुज़री वो नहीं आये
आकाश पर छाये तारे देखे टिम टिम करते
चांद देख चमकता रात गुज़री वो नहीं आये
सावन तीज को कह गये लोट आने को
सावन बीत रहा रात गुज़री वो नहीं आये
हवा की आहट पर होता कोई अचानिक आवाज़
उठ खड़ी होती रात गुज़री वो नहीं आये
पिया पिया कर जिया तड़पे पिया पुकारे पपिहा
ग़म ग़ुस़ा कर रात गुज़री वो नहीं आये
कबूतर संग काग़ज़ लिख भेजी प्रेम भरी पत्रिका
देख पढ़ दास्तां रात गुज़री वो नहीं आये
सारा दिन सुबक दुबक उड़ाये कई काले ‘कागा’
सारी रात रोते सोते गुज़री वो नहीं आये
चित्त चिंता चिंतन
चित्त चेहरा चित्र चरित्र की चिंता चिंतन मंथन ज़रूरी
आयू बढ़ रही नित्त नये मोड़ पर मंथन ज़रूरी
तन मन वचन बुद्धि शुद्धि आत्म विश्वास मंथन मनन
सच्चाई स़फ़ाई अच्छाई बुराई नेकी बदी निरंतर मंथन ज़रूरी
जीवन में आंच नहीं आने दी पीड़ित पक्ष को
दाग़ नहीं लगा दामन पर उजला रहा मंथन ज़रूरी
काजल की कोठड़ी में रहे कालिख नहीं लगने दी
दुश्मन रहा ज़माना हमारा चौकन्ना हरदम हमेशा मंथन ज़रूरी
राजनीति रंग मंच पर बदनाम करने की कोशिश हुई
बाल बांका नहीं कर सका शातिर चेहरा मंथन ज़रूरी
चाल चेहरे चरित्र को चोटिल करते रहे लगातार ‘कागा’
बाल-बाल बचे बार-बार बेशक बेबाक मंथन ज़रूरी
सांप दूध
सांप को नहीं पिला दूध डस लेगा
सांप को नहीं पाल पागल डस लेगा
सांप को देख कांप जाते बच्चे बुज़ुर्ग
सांप को नहीं लगा हाथ डस लेगा
नाग पंचममी को अंधविश्वास पर विश्वास कर
घर में घुसे नहीं सांप डस लेगा
सांप किसी का सगा नहीं दग़ा करता
सांप को नहीं पकड़ अनजान डस लेगा
सांप ज़हरीला जानवर फ़ित़रत काटने की
विष से भरा रेंगता रहता डस लेगा
होता विष उफान पर लिप्ट जाता ‘कागा’
चंदन पर उगलता सारा ज़हर डस लेगा
दिल के अल्फ़ाज़
दिल के बिखरे अल्फ़ाज़ आंखों की दहलीज़ पे
दिल के टूटे साज़ आ़खों की दहलीज़ पे
दिल में छिपे अल्फ़ाज़ ज़ाहिर होते ज़ुबान से
बने है ख़ुफ़िया राज़ आंखों की दहलीज़ पे
हमें नाज़नीन पर नाज़ आम ख़ास़ क्या जानें
ख़ुशी का आब अंदाज़ आंखों की दहलीज़ पे
विस़ाल में दिल दिलरुबा ग़ैर क्या जाने उदासी
हाये हमदर्द हमदम हमराज़ आंखों की दहलीज़ पे
दिल मे़ उमड़ आते सेलाब सैंकड़ों सवाल जवाब
ज़िंदा दिल बुलंद जांबाज़ आंखों की दहलीज़ पे
कशमकश होती क़ुर्ब की क़ल्ब में केसी ‘कागा’
प्यार में परिंदे परवाज़ आंखों की दहलीज़ पे
ढोंगी बाबा
ढोंगी बाबा लोगों को बरग़ला कर लूट मचाते
पाखंडी बाबा लोगों को गुमराह कर लूट मचाते
भोली भाली जनता की भावना से करते खिलवाड़
दुकान खोल रखी दग़ा की जम लूट मचाते
छल कपट झूठ झांसे का मकड़जाल बिछा कर
सतसंग कथा वाचन की आड़ में लूट मचाते
जीवन कल्याण की चिकने चुपड़े करते खोखले प्रवचन
दान दक्षिणा के बदले एंठते धन लूट मचाते
पापी पेट मुख में राम बग़ल में छुरी
नियत नीति बड़ी भृष्ट बगुले भगत लूट मचाते
भीड़ भाड़ में भ्रमित करते भयभीत कर ‘कागा’
ढोंगी पाखंडी बाबा से बच रहना लूट मचाते
मार डाला
बाशऊर इंसान थे जुदाई ने मार डाला
बाज़मीर इंसान थे जुदाई ने मार डाला
जुदाई के ज़ख़्म भरते बड़े गहरे गम्भीर
मरहम बेरह़म बना जुदाई ने मार डाला
कभी सोचा नहीं था एसे लम्ह़े आयेंगे
ज़िंदगी ज़लील होगी जुदाई ने मार डाला
शर्मिंदा है हम ज़िंदा है मौत मुश्किल
बेशर्म आंखें झुकी जुदाई ने मार डाला
सरहदें दीवार बनी दो मुल्कों के दरम्यान
मुलाक़ातें बनी मुह़ाल जुदाई ने मार डाला
आंखें नम रहती जुदाई के ग़म में
सिसके दिल सदा जुदाई ने मार डाला
ख़ून के रिश्ते ख़त्म जड़ें गहरी थी
ख़ून खोल रहा जुदाई ने मार डाला
हिंद पाक का बंटवारा अ़ज़ाब बना ‘कागा’
पड़ोसी बने पराये जुदाई ने मार डाला
बरखा बहार
आई बरखा बहार झूम कर झमाझम
आया मेघ मल्हार झूम कर झमाझम
आकाश पर बादल छाये काले मतवाले
चमक रही बिजली झीनी-झीनी झमाझम
बूंदें बरसी सावन आया छाया आनंद
भादो की भीनी -भीनी महक झमाझम
मोर नाचे पुकारे मोरनी चकोर चांद
कोयल की कूहक झलक सुंदर झमाझम
पपिहा बोले प्रेम से पिया पिया
जिया जले बिन पीया झुर्झुर झमाझम
सावन पेहली तीज मन झक़झोर करे
संग सहेलियां मिल झूला झूलें झमाझम
ओळू सतावे सखी आया नहीं पिया
महेंदी हाथ रचाई रंग राता झमाझम
जुगुनू की जुदाई काली रात ‘कागा’
टिम टिम करती झपट झलक झमाझम
जुदाई के ज़ख़्म ताज़ा
जुदाई के ज़ख़्म दोबारा ताज़ा हो गये
सालों बाद मिटे निशान ताज़ा हो गये
निशान बाक़ी बड़े गेहरे भर चुके थे
याद दर्द भरी दास्तान ताज़ा हो गये
लग जाती जब चोट उन घावों पर
निकल आता ख़ून बहकर ताज़ा हो गये
निशान छिपा रखे नज़र नहीं लग जाये
दर्द उठता कभी कुरेदा ताज़ा हो गये
आंसू आंखों से टपक पड़े झुकी पलकें
भीगे गाल नम नेन ताज़ा हो गये
अपनों के ज़ख़्म गै़रों से नहीं गिला
मिला स़िला जुदाई का ताज़ा हो गये
काश दिल भरता हमारा मिलन पर ‘कागा’
रूह़ में होती ठंडक ताज़ा हो गये
भीम आओ दोबारा
भीम आओ भारत भुमि पर दोबारा
चपा चपा पुकारे चोखट चौपाल घौबारा
नर नारी किसान ग़रीब मज़दूर मायूस
बहुजन बिलखे लोट आओ भीम दोबारा
भारत का संविधान चीख कर चिलाये
राजनीति की रोटियां सेंकते आओ दोबारा
मुद्दा संविधान बना राजनीति का अकेला
छेड़ छाड़ रक्षा बाबा आओ दोबारा
तेरा हर अनुछेद वरदान स़ाबित हुआ
करते गुणगान दिल से आओ दोबारा
अपनी आंखों से आकर देखो नज़ारा
ह़ोस़ला अफ़ज़ाई वासते अम्बेडकर आओ दोबारा
तेरे बच्चे करते याद दिन रात
एक बार दर्शन देने आओ दोबारा
तेरा कारवां गतिमान बढ़ता आगे ‘कागा’
समीक्षा करने भारत भूमि आओ दोबारा
तेरे बिना
तेरे बिना मेरा घर आंगन सूना
तुम मेरी परछाई घर आंगन सूना
तेरे बिना मेरा जिस्म बेजान जनाज़ा
तुम मेरी जान चर आंगन सूना
बिना ख़ुशबू फूल फेंक कूड़ेदान में
तुम मेरी पेहचान घर आंगन सूना
बिना रस स्वाद भोजन केसा बेगुन
तुम मेरी मुस्कान घर आंगन सूना
आन बान शानो शोकत रुतब्बा रसूख़
तुम मेरी अरमान घर आंगन सूना
आंसू होते अनमोल कोई क़ीमत नहीं
तुम मेरी तान घर आंगन सूना
तन बदन दो बेशक एक जान
तुम मेरी ईमान घर आंगन सूना
जीवन भर का साथ रहे ‘कागा’
तुम मेरी महान घर आंगन सूना
राम घट भीतर
राम घट भीतर बाहर क्यों ढूंढे बावरा
राम पट भीतर बाहर क्यों खोजे बावरा
पांच तत्व का पुतला तेरा हाड मांस
बहती रक्त धारा बाहर क्यों खोजे बावरा
मठ मढ़ी मंदिर मस्जिद चर्च बनाये आपने
उत्तम गुरू द्वारा बाहर क्यों खोजे बावरा
जल थल आग आकाश हवा का मह़ल
गूढ ज्ञान गारा बाहर क्यों खोजे बावरा
मन बुद्धि चित्त अहंकार का आसन वासा
मिटाता अघोर अंधियारा बाहर क्यों खोजे बावरा
काम क्रोद्ध लोभ मोह जाल में फंस
बढाता पाप पारा बाहर क्यों खोजे बावरा
रूप रस गंध शब्द स्पर्श सब भीतर
बहती गंग धारा बाहर क्यों खोजे बावरा
बिन स़ूरत बिन मूर्त आकार सुक्ष्म बिराजे
भीतर बजे नगारा बाहर क्यों खोजे बावरा
जल जंगल पहाड़ पर्वत क्यों भटके ‘कागा’
भीतर राम हमारा बाहर क्यों खोजे बावरा
फंस गए
फंस गये फंदे जाल में परिंदे
चुग्गे की चाह जाल में परींदे
कर दिया क़ेद पिंजरे में क़ाबू
काट कर खाते ख़ुश होकर बाबू
परिंदे बेपरवाह होते शिकार शरारत के
जान करते क़ुर्बान शोक़ीन शरारत के
इंसान की अ़क़ल पर लगे ताले
स्वर्ग नर्क के चक्कर में ताले
मरने के बाद क्या कौन जाने
लोट आया नहीं कोई कौन जाने
ढोंगी पाखंडी के चुंगल में फंस
अंध-विश्वास की आड़ में फंस
काल्पनिक कथा गाथा पर करते भरोसा
मकड़ जाल में उलझ करते भरोसा
एंठ लेते भोले भालों से धन
कराते टोने टोटके वस़ूल करते धन
स्वर्ग की परियां सुख आनंद सपने
झूठ झांसे देते अनेक आनंद सपने
धर्म कर्म कांड का देकर वास्ता
जन्नत जहनुम सुन्हरा का देकर वास्ता
राजनीति में भी घुस गया घपला
वादा कर करते खूब घोटाला घपला
तुम डाल डाल हम पात पात
त़र्ज़ पर लूटते कर जात पात
‘कागा’ इंसान चालाक चतुर सुजान
आता गिरफ़ित में आसानी से नादान
बरकत
हरकत हलचल में बेबहा बरकत है
ह़िजरत हलचल में बेबहा बरकत है
दाना दब जाता ज़मीं दोज़ होकर
ह़िकमत हलचल में बेबहा बरकत है
नदी चलती रहती कल कल कर
हिश्मत हलचल में बेबहा बरकत है
बादलों की आवा होती आसमान पर
बरसात हलचल में बेबहा बरकत है
फूट जाता अंडा चूज़ा बन आता
अज़मत हलचल में बेबहा बरकत है
झरना चलता नीचे की ओर झमाझम
पर्वत हलचल में बेबहा बरकत है
चलता हरदम राह पर मिलती मंज़िल
कस़रत हलचल में बेबहा बरकत है
ख़ुद पर रख भरोसा भरपूर ‘कागा’
मश्कत हलचल में बरकत है
अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक मुक्त दिवस
आज अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक मुक्त दिवस है
मिल जुल मुक्त करें दिवस है
मुल्क में गंदगी का आलम अपार
ढेर लगे गली कूचे दिवस है
प्लास्टिक से परेशानी जन मानस को
पशु खाते मरते हरदम दिवस है
कंकाल से बदबू आती बदलाव ज़रूरी
सफ़ाई होती नहीं सुचारू दिवस है
माह़ोल आलूदगी का पर्यावरण प्रदूषण फेला
बीमारियां होती बेशुमार रोकें दिवस है
इंसान पशु पक्षी सब पीड़ित ‘कागा’
आओ मिल मुक्ति दिलायें दिवस है
इंसान बना भगवान
भगवान ने बनाया आदम को इंसान
इंसान बन बेठा जग में भगवान
चमत्कार करने लगा हर त़रह़ के
ईश्वर का अवतार बना साक्षात भगवान
गीता का ज्ञान देने लगा मनमाना
मठ मंदिर का मालिक अस़ल भगवान
इंसिनियत को दरकिनार कर ढोंग पाखंड
आडम्बर का होने लगा बहुरूपी भगवान
भगवान ने बनाई जाति नर नारी
इंसान ने अनेक बना भोला भगवान
आस्तिक नास्तिक का जनक वास्तविक नहीं
मनगढ़ंत अंधविश्वास से भ्रम फेलाये भगवान
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म बनाया
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे अपना भगवान
हवा जल आग आसमान धरती ‘कागा’
का मज़हब नहीं इंसान बना भगवान
गीत
गीत गुनगुनाता अपनों का पराये गुनगान नहीं
अपनों के आगे नतमस्तक पराये बखान नहीं
अपनों के लिये जी जिगर जान ह़ाज़िर
पराये से परहेज़ गुरेज ज्यादा शान नहीं
हम जीवन जीते अपना अपनों के वास्ते
खड़े मेदान में सीना तान हे़रान नहीं
अमीर ग़रीब सब हमारे दुश्मन पेहचान गये
दग़ा करे वो सगा नहीं मेहरबान नहीं
नश्तरों पर ज़हर लगा घूम रहे घुमकड़
वो नहीं हमदर्द हमारे कोई एह़सान नहीं
अपने मत़लब के ख़ात़िर ढोंग पाखंड करते
रूबरू आह वाह दिल में परेशान नहीं
जान गये ग़ल्त़ इरादे क़रीब रह ‘कागा’
गले नहीं लगाना कभी जो आलीशान नहीं
जुदाई जंजाल
जुदाई मार गई जीवन बना जंजाल
मौत आती नहीं जीवन बना जंजाल
जीवन जी रहे बन ज़िंदा लाश
होश ह़वास नहीं जीवन बना जंजाल
मजबूर माज़ूर मन हमारा मज़बूत बने
हिम्मत ह़ोस़ला बुलंद जीवन बना जंजाल
अंदर दिल खोखला बोखला कर बहक
मगयूस उदास मन जीवन बना जंजाल
देखा देखी चेहरा रखते हंस मुख
मुरझाया हुआ मन जीवन बना जंजाल
बिछुड़े जब से अपनों से जुदा
जानता है ख़ुदा जीवन बना जंजाल
दर्द भरे दिन दूश्मन नहीं देखे
हम पर बीती जीवन बना जंजाल
मां की कोख से हुए पैदा
अलग हुए अल्हदा जीवन बना जंजाल
ज़िंदा है मगर बीच खड़ी दीवार
दीदार नहीं होता जीवन बना जंजाल
दिल के ज़ख़्म किसको दिखायें ‘कागा’
बेदर्द बने हमदर्द जीवन बना जंजाल
तस्वीर
तस्वीर तेरी मेरी मां तक़दीर बनी
आखों में अमर मां तदबीर बनी
तेरी तस्वीर मेरा जीवन का सहारा
मैं बेबस बेहारा मां तक़दीर बनी
जब आफ़त आती सिर पर अचानिक
तेरी सलोनी तस़्वीर मां तक़दीर बनी
पल पल आती याद मेरी मां
आंखों में हरदम तस्वीर तक़दीर बनी
दुनिया में तेरे बिना कौन मेरा
जीजल मेरी मां मेरी तक़दीर बनी
तेरी कोख गोद आंचल तेरा प्यार
तेरी छवि छाया तास़ीर तक़दीर बनी
तेरी तस्वीर मेरे दिल बसती ‘कागा’
केसे भूल जाऊं दुलार तक़दीर बनी
बरसात
बरसात का मौसम आया झूम बरसे झमाझम
बरसात बहार छाये बादल झूम बरसे झमाझम
काले बदल घनघोर देख शोर मचाता मोर
नाचे पुकारे मोरनी झुर्र झुर्र बरसे झमाझम
पशु पक्षी जीव जंतु नर नारी ख़ुश
नदी नाले उफ़ान पर झरने बरसे झमाझम
हाळी सळ जोतने चले कर खेत संवार
बिजली चमकी गाज गर्जना बादल बरसे झमाझम
प्यासी धरती भीगी महका तन मन मोहक
उमड़ घुमड़ बदरिया बरखा बहार बरसे झमाझम
बरसात रात घनी अंधेरी घटा निराली ‘कागा’
हवा चली ठंडी सुहानी बूंदें बरसे झमाझम
सफ़र
ज़िंदगी सफ़र है जारी रख बंदा
ज़िंदगी दो दिन जारी रख बंदा
मंज़िल दूर है रास्ता ऊबड़-खाबड़
बिखरे बहुत कांटे जारी रख बंदा
चोर चक्के लोफ़र लुटेरे लफ़ंगे ख़ूब
डय रुकना नहीं जारी रख बंदा
बेदर्द बहुत है हमदर्द हमसफ़र नहीं
फ़िक्र नहीं करना जारी रख बंदा
सोकर वक़्त खोना नहीं रोना नहीं
ह़ोस़ला बुलंद बरक़रार जारी रख बंदा
रात अंधेरी बारिश बरस रही झमाझम
बिजली चमक रही जारी रख बंदा
गाज गर्जे गगन छाये काले बादल
शोर मचा बेशुमार जारी रख बंदा
आंधी त़ूफ़ान सुनामी मेंढ़क करे टर्र
मोर नाचे पुकारे जारी रख बंदा
पपिहा पिया पीया करे कोयल कुहक
मन प्रसन्न मानव जारी रख बंदा
सफ़र रख जारी मंज़िल मिलेगी ‘कागा’
थक नहीं जाना जारी रख बंदा
मेरा दिल दीवाना
मेरा दिल दीवाना मस्ताना तेरा हो गया
मेरा दिल अलबेला बेगाना तेरा हो गया
नाज़ से सहज रखा था सीने में
बेवफ़ा बन दीवाना बेगाना तेरा हो गया
दिल बावफ़ा नहीं बेवफ़ा होता है स़नम
बेऊर बन दीवाना बेगाना तेरा हो गया
किसका का क़ुस़ूर कहें आंखों का दिल का
बेवक़ार बन दीवाना बेगाना तेरा हो गया
दिल पर नहींं करना यक़ीन बड़ा बदचाल
बेईमान बन दीवाना बेगाना तेरा हो गया
दिल धड़कता मेरे सीने में बन पराया
बेकरार बन दीवाना बेगाना तेरा हो गया
बेदर्द बन हमदर्द हो जाता ग़ैर का
बेक़ुस़ूर बन दीवाना बेगाना तेरा हो गया
बेवजह दर्द मोल लेता क़रीब बन ‘कागा’
बेबाक बन दीवाना बेगाना तेरा हो गया
ह़ाले ह़क़ीक़त
मत सुन मेरी हाले ह़क़ीक़त
मत पूछ मेरी ह़ाले ह़क़ीक़त
मत छेड़ दास्तान दिल का
मत सुन साज़ ह़ाले ह़क़ीक़त
जलती आग अंगीठी में सुलगती
मत कुरेद ज़ख़्म ह़ाले ह़क़ीक़त
राज़ को राज़ रहने दो
मत खोल पर्दा ह़ाले ह़क़ीक़त
कोई नहीं अपना जहान मे
किसको सुनायें अपनी ह़ाले ह़क़ीक़त
ज़ख्म पर बांध रखी पट्टी
मत खोल अपनी ह़ाले ह़क़ीक़त
मुठ्ठी भर बेठा नमक ‘कागा’
छिड़क देगा सच्ची ह़ाले ह़क़ीक़त
ग़रीब
ग़रीब की गाथा ग़मग़ीन कोई नहीं सुनता
ग़रीब की व्यथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
ग़रीब का साथ ग़रीबी देती जीवन भर
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
ग़रीब ग़रीबी चोली दामन का साथ क़रीबी
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
जीवन बसर करने का कोई बसेरा नहीं
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
खाने पीने के लाले पड़ते सूखा जिस्म
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
पेट धंस गया पसलियों तक चेहरा चिपका
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
छाया वास्ते छपरा टूटा फूटा घास फूस
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
धूप गर्मी सर्दी घुस जाती पानी टपकता
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
फटे मेले कुचेले पेवंद लगे बदन चीत्थड़े
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
मां ख़ुद दोनों बीमार दवा दारू नहीं
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
खांसते दोनों ख़ूब बारी-बारी बुरा ह़ाल
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
ग़रीबी ने कमीन बनाया कभी शरीफ़ थे
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
अपने हो गये पराये भूखे की बूअ से
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
अर्थी उठाने वाला कोई नहीं लावारिस ‘कागा’
ग़रीब की गाथा ग़मगीन कोई नहीं सुनता
बंदगी
कर बंदा बंदगी मिटे मन की गंदगी
कर बंदा बंदगी सुधर जाये निजी ज़िंदगी
छल कपट फ़रेब झूठ झांसे छोड़ बंदे
सच्च बोल अनमोल बेश-क़ीमती रत्न बंदे
दिल में दर्द रख हमदर्द बन ह़िमायती
द्वेष ईर्ष्या से दूरी रखो बन ह़िमायती
मुख में राम बग़ल में छुरी बंदे
आदत बुरी अ़दावत अच्छी नहीं बेकार बंदे
इंसान बन इंसानियत रख जीवन मिला मोती
दाग़ नहीं लगे दामन पर महंगे मोती
संगठन में शक्ति भाव भक्ति से चल
एकता में नेकता अनेकता युक्ति से चल
बंदगी कर स़ाह़ब की मन चित्त से
त्याग काम क्रोद्ध लोभ मोह चित्त से
‘कागा’ दुनीया मत़लब की झूठा सारा संसार
कलेश कलह से कोसों दूर सारा संसार
बरखा बहार
बरखा बहार आई धरती पुत्र का चेहरा खिला
मुरझा मायूस उदास धरती पुत्र का चेहरा खिला
छाये काले बादल घने करें घनघोर मचायें शोर
नाचे मन मोर धरती पुत्र का चेहरा खिला
बूंदें बरस पड़ी झूम झमाझम प्यासी धरा पर
महक उठी मिट्टी धरती पुत्र का चेहरा खिला
उमड़ घुमड़ बरसे बादल बिजली चमके चका-चौंध
गूंज उठा गगन धरती पुत्र का चेहरा खिला
आई ऋतु बरखा की हुई हरियाली खेतों में
उगा अन्न घास धरती पुत्र का चेहरा खिला
पशु पक्षी जीव जंतु प्राणी वनस्पति सब मुस्काये
छाई ख़ूब ख़ुशी धरती पुत्र का चेहरा खिला
हाळी हाळी जोता धरती भीगी महका तन मन
बेल बजी घंट घुंघरु धरती पुत्र चेहरा खिला
बरखा बहार आई करें कुरंजां कोयल कलोल ‘कागा’
पणिहारी पग सरवर धरती पुत्र का चेहरा खिला
आवाज़ परिदों की
आवाज़ परिंदों की मीठी मन मोहनी
आवाज़ परिंदों की सुंदर दिल सोहनी
डालो चुग्गा पानी परिंडा लगा कर
दरिंदों को दूर डंडा लगा कर
चिड़िया कबूतर तोत़ा मीना तीतर बुलबुल
रहें साथ स्नेह प्रेम से मिलजुल
परिंदे मानव प्राणी के संगी साथी
चली आई परम्परा पुरानी संगी साथी
मेल-जोल आगे बढ़ाये करूणा से
दरिंदो से बचायें हार्दिक करूणा से
पैड़ पोधे लगाये बाग़ बग़ीचा सजायें
छाया का छपरा बना सुंदर सजायें
‘कागा कोयल तक संदेश पहुंचे प्यार
जीओ जीने दो का शुभ समाचार
टूट गया सपना
टूट गया सपना बनने से पेहले
टूट गया अरमान बनने से पेहले
शेख़ चिल्ली की पुलाव पकी नहीं
रूठ गया ईमान बनने से पेहले
आरज़ू अनेक संजोये सपने एक समान
लूटा सारा सामान बनने से पेहले
लोग मिलते सफ़र में रही बनकर
छूट गया साथ बनने से पेहले
हम सफ़र कोई नहीं सब लुटेरे
रहबर होते रहज़न बनने से पेहले
सांसों पर यक़ीन नहीं करना ‘कागा’
आना जाना मुश्किल बनने से पेहले
राजनीति के रंग
नाम कमाने आया मैं राजनीति में
दाम कमाने नहींं आया राजनीति में
चाह थी वो राह मिल गई
नाम कमाया रंग जमाया राजनीति में
कथनी करनी में अंतर नहीं रखा
कहां वो कर दिखाया राजनीति में
क्या खोया क्या पाया ग़म नहीं
झूठा झुनझुना नहीं थमाया राजनीति में
देरी दूरी दरार दीवार नहीं फ़लसफ़ा
दलाल को दूर भगाया राजनीति में
चाटूकार चापलूस कोई नहीं रहा आज़ाद
घूसख़ोर को सबक़ सिखाया राजनीति में
गिरगिट की त़रह़ रंग नही बदले
चाहे अपना चाहे पराया राजनीति में
मत़लब को दरकिनार कर बेदाग़ बना
सामने हाथ नहीं फेलाया राजनीति में
भाई भतीजा वाद जाति धर्म ‘कागा’
दलगत संगत रंगत आज़माया राजनीति में
ज़िंदगी ज़रा रुक
ज़िंदगी ज़रा रुक जाओ अभी अरमान बाक़ी
बंदगी कर बंदा बेबाक अभी अरमान बाक़ी
ख़िदमत कर ख़लक़ की दिलो जान से
मुकमल नहीं इरादे वादे अभी अरमान बाक़ी
इंसान बन इंसानियत के साथ ख़ास़ ख़ुलूस़
फ़ज़ीलत से पैश आना अभी अरमान बाक़ी
ज़माने की शराफ़त नहीं कोई गिला शिक्वा
रसूख़ रुतब्बा बरकरार रख अभी अरमान बाक़ी
हम सफ़र बन राही मुश्किल घड़ी में
रहबर बन रहज़न नहींं अभी अरमान बाक़ी
ख़्वाब का ताबीर बन जीना जहान में
ज़िंदगी नहींं कर ज़ाया अभी अरमान बाक़ी
जब तक रूह़ जान में दमदार बन
कमज़ोर का नहींं कोई अभी अरमान बाक़ी
कम्मी कोताही नहीं रखना क़ल्ब में ‘कागा’
ह़ोस़ला अफ़ज़ाई रख हमेशा अभी अरमान बाक़ी
प्रेम अमर रहे
प्रेम अमर रहे हम रहें नहीं रहें
चर्चा चलती रहे हम रहें नहीं रहें
प्रेम की डोर टूटे नही कभी बंधन
दुनिया जलती रहे हम रहें नहीं रहें
प्रेम पर पेहरा देते मनचले दीवाने बन
दाद मिलती रहे हम रहें नहीं रहें
प्रेम पूजा है हम पूजारी प्रेम के
ज्योति जलती रहे हम रहें नहीं रहें
परवान जल जाता शमा पर फ़िदा होकर
आग सुलगती रहे हम रहें नहीं रहें
आग बबुला हो जाते ह़ास़द देख प्रेम
रात ढलती रहे हम रहें नहीं रहें
लगी आग प्रेम की बुझती नहीं ‘कागा’
ज्वाला भभकती रहे हम रहें नहीं रहें
इश्क़ की आग
इश्क़ की आग बुझाई नहीं बुझे
केसे क्यों हुआ जला दिया मु
आशिक़ माशुक़ का मेल-जोल मुह़ाल
प्यार की प्यास बुझाई नहीं बुझे
आंखें मिली आग लगी दिल में
मोह़ब्त की भूख बुझाई नहीं बुझे
जल रहा जिस्म झुलस गया सारा
जुदाई की ज्वाला बुझाई नहीं बुझे
जनाज़ा निकला मेरा फूल चढ़ाया नहीं
अंदर की आग बुझाई नहीं बुझे
सिसकते रहे नका़ब ओढ नज़रें छिपा
तमना त़लब तेरी बुझाई नहीं बुझे
रात कटती नहीं दिन गुज़रता नहीं
जिगर की जलन बुझाई नहीं बुझे
भूल नही सकते पुरानी यादें ‘कागा’
चाहत की चिंगारी बुझाई नहीं बुझे
कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा
पूर्व विधायक
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