Poem on nari in Hindi
Poem on nari in Hindi

लाचार नारी

( lachar nari ) 

 

एक नारी थी वक्त की मारी थी दुनिया में कोई बेचारी थी।
मानवता का स्वांग करने वालों पे फिर भी चोट भारी थी।

 

लाचार नारी तड़पती रही दर्द से लोग वीडियो बनाते रहे।
दरिंदो की दरिंदगी वो वहशीपन का नाना खेल रचाते रहे।

 

दुनिया की भीड़ भाड़ में इंसानियत कहां पर खो गई।
बेबसी लाचारी पीसती रही संसार में करूणा सो गई।

 

न्याय चौखट पे चंद चांदी के सिक्कों की खनक भारी थी।
खड़े खड़े लोग ताकते रहे सड़क पे तड़प रही वो नारी थी।

 

पुलिस भी आई समाज के आला ठेकेदार सारे आए ।
लोगों की जुबां से फिर विचारों के शब्द जलधारे आए।

 

मर गई सड़क पे मौत से लड़ते वो लोग भीड़ बढ़ाते रहे।
लाचार एक नारी तड़पती रही लोग वीडियो बनाते रहे।

 

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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