शकुंतला | Poem on shakuntala
शकुंतला
( Shakuntala )
गुमनाम हुआ इस तन से मन,
बस ढूंढ रहा तुमको प्रियतम।
चक्षु राह निहारे आ जाओ,
निर्मोही बन गए क्यों प्रियतम।
क्या प्रीत छलावा था तेरा,
या मुझमें ही कुछ दोष रहा।
क्यों शकुंतला को त्याग दिया,
यह यौवन काल हुआ प्रियतम।
क्यों भूल गए हे नाथ मेरे,
वचनों को अपने आप मेरे।
या मधुकर बनकर छला मुझे,
सुन प्रीत गुँथे मनभाव मेरे।
हे राजेश्वर हे जन नायक,
संताप शकु का सुन लो अब।
तुम आ कर मुझको ले जाओ,
तन बेकल है मन है चंचल।
यह भुवन सुन्दरी की गाथा,
मेनका रही जिसकी माता।
सौंदर्य अप्रियतम् जिसका,
वह भरत वंश की थी माता।
जिसने श्रापित जीवन जी कर,
सम्राट भरत को जन्मा था।
जो परम प्रतापी बालक था,
शार्दुल से खेलता रहता है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )