सिंदूरी सूरज | Poem Sindoori Suraj
सिंदूरी सूरज
( Sindoori suraj )
सिंदूरी सूरज विशाल
तेजी से अस्त हुआ
धीरे-धीरे सांझ को
बुलावा दे चला
सरसराती पवन ने
बालियों को यू छुआ
पंछियों के कलरव ने
अंबर से धरती तक
चारों दिशाओं को
गुंजायमान किया
घरौंदो को लौट चलो
कि अब अंधेरा हुआ
गायों के गले की
बजती हुई घंटियां
हुर हुर की आवाज
उड़ती हुई धूल गुवार
कृषक को भी दो पल
सांस लेने को कहा
सन सन आते हुए भुंगे
आंखों से टकराते
मदमस्त गीत गाते
वसंत के आने और
कोयल के गाने संग
फलों के राजा आम
ने बोरसे स्वागत किया
फागुन ने जैसे बेरो से
लदकर, अभिनंदन किया
शिव पार्वती को वर ने
जैसे सारी सृष्टि चली
पीली सरसों के फूलों
से संपूर्ण श्रृंगार किया
पलाश के फूलों का
खिल उठी गोरा मैया
हरसिंगार के फूलों का
गजरा बन सज गया
रातरानी ने महक कर
सुगंधित किया वातावरण
गुलाल और अबीर उड़ा कर
फागुन में भंग का रंग
माहौल जम गया
डमरुधर की लीला न्यारी
शिव दूत नंदी, पे बैठ
भस्म अंग पर सजा
गले नागो को लगा
चांद शीश पर सजा
डमरूवाला ले त्रिशूल
देवी पार्वती को
ब्याहन चल दिया
डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )
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