
वह गमों में भी मुस्कुराती है
( Wo ghamon mein bhi muskurati hai )
हंसकर कहकहा लगाती है
गम अमृत समझ पी जाती है
बहते नीरो को छिपा जाती है
सुनकर भी सब दबा जाती है
निष्ठा से फिर खड़ी हो जाती
क्योंकि वह सब भाप जाती है
शांति के लिए सह जाती है
आंचल में सब छिपा जाती है
सुकून देने सब सह जाती है
नारीशक्ति तभी पूजी जाती हैं
डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )
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