मंत्री की खोपड़ी
मंत्री की खोपड़ी

मंत्री की खोपड़ी

( Mantri ki khopdi : Vyang )

मंत्री बनने के बाद प्रेमदास जी ने कभी घर पर खाना नहीं खाया। कभी किसी सरपंच के घर तो कभी किसी पंचायत घर में। कभी सर्किट हाऊस में, कभी किसी पार्टी में तो कभी  पार्टी कार्यालय में।

उस दिन पंचायत के नवनिर्मित भवन में सामूहिक भोज के केन्द्र में स्वाद ले लेकर खाना खा रहे थे। वे मक्खन खा रहे थे और मक्खन लगवा रहे थे।

इतने में एक दरवाजा उनके ऊपर गिर गया। सिर मजबूत था और दरवाजा भी मजबूत था। मगर दरवाजा गरज के साथ टूट गया ।

उन्हें राष्ट्र के इस नुकसान में विरोधी पार्टी का हाथ दिखाई दिया। उन्होंने तो उस हाथ की उंगलियाॅ भी गिन ली  थी । वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि उनका भ्रष्टाचार ही उनकी खोपड़ी पर गिरा था खबर खोपड़ी से बाहर ढलक आ गई।

जिलाध्यक्ष ने नीली किताब देखी । नीली किताब में व्ही.आई.पी. के आगे पीछे दायें बायें ऊपर-नीचे के हिस्से के प्रबंधन की सारी बातें लिखी रहती है।

उन्होंने अनुक्रमणिका में पहले सर देखा, फिर चोट देखी फिर उन पृष्ठों को देखा। उनमें लिखा था कि ऐसी स्थिति में सरकारी डाॅक्टर को बुलाना चाहिए ।

सरकारी डाॅक्टर को ढॅूुढा गया वह भीड़ के द्वारा एक कोने में पिचकाया जा रहा था। मंत्री के सर की चोट ने उसे पिचकने से बचा लिया।

ऐसे मौके पर सरकारी डाक्टर को उसके वरिष्ठ साथियों ने सिखाया था कि मंत्री जी को मेंडिकल काॅलेज भिजवा देना चाहिए । उसने कलेक्टर साहब से कहा कि मंत्री जी के सिर की टोमोग्राफी होना चाहिए जो इस गांव में संभव नहीं है। मंत्री जी ने जवाब दिया “यह एक असिस्टेंट सर्जन है ।

” कलेक्टर साहब एक न्यूरोसर्जन को राजधानी से बुलवाया जाए वह यदि कहता है तो मैं टोमोग्राफी करवाउंगा। अभी तो आप डी.एफ.ओ. को बुलवाये।” भीड़ में फिर खलबली मच गई खोपड़ी के इनर सर्किल ने आउटर सर्किल से कहा “मंत्री, जिला वनअधिकारी को बुला रहे है।” एक ने दूसरे से कहा दूसरे ने तीसरे से। कोंई हिला नहीं।

सब मंत्री के चारो तरफ रहना चाह रहे थे सब मंत्री के करीब जाना चाह रहे थे। दूर कोई नहीं। उनके आजू बाजू रहकर दांत दिखाकर फोटो खिचवाना चाह रहे थे।

कुछ उनके कंधो पर हाथ रखकर कुछ उनके हाथो को अपने हाथो में लेकर कुछ ऐसे तो कुछ वैसे फोटो खिंचवा रहे थे। सब चाह रहे थे कि धड़ उनका हो और सिर मंत्री का हो।

खैर बेतार की आदम व्यवस्था से खबर कलेक्टर तक पहुंची। मंत्री का हर काम कलेक्टर को करना पड़ रहा था। उन्होने डी.एफ.ओ. को मंत्री तक पहुंचाया।

मंत्री ने जिला वनाधिकारी से पूछा “इतनी कमजोर सागोन जंगलों में क्यों उगाई जा रही है ? “डी.एफ.ओ. साहब ने प्रथम दृष्टया ही आरोप खारिज कर दिया । बोले “यह सागौन नहीं है  मगर जो भी है आपकी खोपड़ी उससे ज्यादा मजबूत है।”

मंत्री जी तारीफ सुनकर गदगदा गये मगर किंचित रोष से जिलाध्यक्ष से बोले “इस बार कास्केड में केवल 22 कारें ही है” पिछली बार तो 24 थी।

मेरी प्रसिद्धि का ग्राफ आप संभाल नहीं पा रहे है। यह आपका दायित्व है कि आप मेरे भाषणों के लिए भी भीड़ जुटायें।”

कलेक्टर ने मन ही मन मंत्री को गालियां दी कि अब तो तू रिश्वत में बनियान मोजे और चड्डी तक मांगने लगा है तेरा ग्राफ तो अब भगवान भी नहीं खड़ा रख सकते वह तो लटकेगा ही ।

प्रकट में बोले सर प्रसिद्धि पहियों से नही पैरो ने नापी जाती है आपकी सभाओं में जूते चप्पलों की बरसात स्टेज तक आने लगी है ।

छीटों से हमें तक बचना पड़ता है। “मंत्री की समझ में नहीं आया कि गर्मियों में जिलाध्यक्ष बरसात की बात क्यों कर रहा है। फिर जूते चप्पलें भी फटी हुई स्टेज तक आती है एडिडास के जूते कोई नहीं फेंकता।

मंत्री राष्ट्र की संपति होता है उसकी रक्षा करना सरकारी नौकरो का दायित्व होता है मंत्री जब दौरे पर होता है तो उसके हेलिकाप्टर से उतरने और उड़ने तक अधिकारी प्रार्थना करते रहते है कि हे भगवान यह दुष्ट हमारे कार्यक्षेत्र के बाहर दुर्घटना ग्रस्त हो।

इस तरह कई दुआऐं उसके साथ लगी रहती है। तेरह क्रमांक पर एक रूग्ण वाहक उसके साथ होता है जिसमें चार होमगार्ड के जवान मंत्री के ही रक्त समूह के उसमें पीछे की ओर बैठे रहते है वे इसलिए कि हेलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने पर मंत्री इन चार जवानों का रक्त चूस सके।

मंत्री जब दौरे पर होता है तो मंत्री का बायोडाटा जिलाध्यक्ष को पूर्व में ही प्राप्त हो जाता है जिसमें मंत्री का नाम, आयु, ब्लड ग्रुप, उनकी स्पष्ट और गुप्त बीमारियां (उनके सीमित शरीर में असीमित बीमारियां कैसे समाती होगी) उनके पसंद इत्यादि लिखी रहती है ।

इन सबकी व्यवस्था जिलाध्यक्ष को जनता के पैसो से करना पड़ता है। राष्ट्रमंत्री की संपत्ति जो है। मंत्री के जूते चप्पल, चड्डी, बनियान तक का इंतजाम शासन करता है जिससे वह निर्वस्त्र सभाओं में न जाए अन्यथा भारतीय संस्कृति निर्वस्त्र हो जाती है।

पुरूषों में एक ही खराब आदत है वे शरीर के किसी भी हिस्से से चले चड्डी पर पहुंच जाते है । जैसे इंग्लैंड में आल द रोड्स्म लीड टू वर्मिघम पैलेस। प्रेमदास की ठोस खोपड़ी की विवेचना हो रही थी और मामला चड्डीयों की रिश्वत पर पहुंच गया।

प्रेमदास की ठोस खोपड़ी पर हर चीज रखी जा चुकी है। पगड़ी रखी जा चुकी है मुकुट रखे जो चुके है भगवा, काली या सफेद टोपियां रखी जा चुकी है सूखाग्रस्त क्षेत्रो में खाली मटके तो असंतुष्ट क्षेत्रों में जूते तक रखे जा चुके है।

सिर्फ रखी जाने वाली सब चीजे बदल गयी पर खोपड़ी नहीं बदली। इतने निस्प्रह तो ब्रम्ह ज्ञानी भी नहीं होते। प्रेमदास किसी विभाग में कभी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे किसी पार्टी को चुनाव में खड़े होने के लिए “कैंडीेडेट” नहीं मिल रहे थे।

ये हमेशा कार्यालय के बाहर खड़े रहते थे अतः चुनाव में खड़े होने के लिए तैयार हो गये। इन्हें किस्मत ने विधायक बनवा दिया। बाकी मार्ग इन्होने ही बनाया ।

वे अपने क्षेत्र की आंधी और तुकबंदी में गांधी बन गये। वे गांधी किसी गोड्से की गोली झेलनें के लिए नहीं बल्कि मंत्री पद पाने के लिए बने थे । जो उन्हें मिल गया।

फिर उनकी खोपड़ी मुख्यमंत्री पद की तरफ देखने लगी । ऊपर देखते हुए इन्होने जमीन के पत्थर नहीं देखे। एक ठोकर पैरो में और एक डंडा सिर में लगा तो ये पुनः माननीय विधायक बन गये।

मगर मंत्री पद की मलाई ये खा चुके थे अतः इन्होने अपनी खोपड़ी को दीवाल से ठोका और कद्दू सी खोपड़ी पुनः मुख्यमंत्री जी के जूतो में झुकाई तब वमुश्किल तमाम गैर महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बन पाए।

 

✍?

 

लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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