प्रकृति व स्त्री विमर्श

पुस्तक समीक्षा : ” प्रकृति व स्त्री विमर्श “

पुस्तक समीक्षा:“प्रकृति व स्त्री विमर्श ”
लेखिका: डॉक्टर सुमन धर्मवीर
प्रकाशक: पुष्पांजलि

विगत दिनों से जब से यह पुस्तक मेरे हाथ में समीक्षा के लिए आई है। तब से मेरे मन में सबसे पहले इसके टाइटल को लेकर कौतुहल था। प्रकृति तो प्रकृति है पर इसके साथ स्त्री विमर्श का क्या औचित्य है।

खैर थोड़ी देर नेट पर सर्च करके जो मेरी समझ में आया वो यह था कि साहित्य में स्त्री विमर्श की शुरुआत छायावादी काल से मानी जाती है । तदोपरांत यह दिनों दिन तरक्की कर रहा है ऐसा साहित्य जिसमें स्त्री जीवन की अनेक समस्याओं का चित्रण हो। स्त्री विमर्श कहलाता है।

पुरुष लेखकों ने नारी समस्याओं का यदा कदा उल्लेख अपने लेखन में किया है। पर ऐसे नहीं जैसे एक स्त्री लेखिका करती है । स्त्री विमर्श पर उषा प्रियम्वदा, ममता कालिया ,मनु भंडारी मंजुला भगत ,मृणाल पांडे और दर्जनों संवेदनशील लेखिकाओ ने समय समय पर उत्तम साहित्य सृजन किया है। डॉ सुमन धर्मवीर की प्रस्तुत पुस्तक भी एक अहम कड़ी साबित होगी।

तो बात का निचोड़ यह है कि लेखिका श्रीमती सुमन धर्मवीर जी ने अपनी सभी कथाओं में इस टाइटल के साथ न्याय किया है। इस पुस्तक की शुरूआत उनके लिखे कथा संग्रह से लेकर कविता संग्रह और नाटक संग्रह पर जाकर समाप्त हुई।

ऐसा प्रतीत हुआ मानो एक पुस्तक गुलदस्ते की तरह होती है। एक समान फूलों का एक समान खुशबू का गुलदस्ता।
वहीं “प्रकृति व स्त्री विमर्श” पुस्तक ऐसी प्रतीत हुई मानो विभिन्न फूलों का विभिन्न रंगों और खुशबू से महकता एक गुलदस्ता।

जहां कहानी पढ़ते पढ़ते यदि ऊब जाऐं तो हल्की-फुल्की कविताओं से अपना मूड बदल लें। “माडर्न विधवा” कविता की सादगी से सादा हो गए हों तो समाज की जटिलता से परिपूर्ण नाटक “मानव धर्म” का अवलोकन कर लें।
तो यह विविधता इस पुस्तक को पूर्णता प्रदान करती प्रतीत हो रही है।

अब आते हैं प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम भाग यानी कथा संग्रह पर। इसमें कुल आठ कहानियों का संग्रह है। जिसमें समकालीन समाज में प्रस्तुत समस्याओं को स्त्री को केंद्र में रखकर बहुत ही सुंदरता से पेश किया गया है।

इस भाग के प्रथम चरण में आए तो पहली ही कहानी में नारी के वैधव्य को शिष्ट समाज कैसे अलग चश्मे से देखता है। कहानी की मुख्य पात्र “वंदना” अपने वैवाहिक जीवन में बेहद खुश थी।
तभी उसका देवर उनके सुखी वैवाहिक जीवन में ग्रहण की तरह आया।

वह उनके घर में , मुंबई में काम ढूंढेने के लिए आया था और वहीं पसर गया।यह सीधी सादी नायिका की ही पेशकश थी कि गंतव्य उसके पति कर्तव्य के बिजनेस में हाथ बंटाए। और दोनों भाई मिलकर बिजनेस को आगे बढ़ाएं। पर वह नहीं जानती थी कि यही उसके जीवन की सबसे बडी भूल होगी।

बीते समय के साथ गंतव्य न केवल बिजनेस पर बल्कि घर पर भी हावी होने लगा और अपनी भाभी “वंदना” से ही प्रेम निवेदन करने लगा।

वंदना अपने पति कर्तव्य को कुछ बताती उससे पहले ही उसकी एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई।
वह पत्थर बन गई । इस समय लेखिका को नायिका को कमजोर न दिखाकर चेताना, जगाना,संघर्षपूर्ण दिखाना चाहिए था ।आखिर वंदना भी पढ़ी लिखी , खुले विचारों की थी।

अगर वह खुद को संभाल कर अपने पति के एस्टेब्लिश्ड बिजनेस को संभाल लेती तो आगे चलकर उसके देवर की इतनी हिम्मत नहीं होती कि पूरा का पूरा बिजनेस उसने ही कब्जा लिया। बिजनेस तो बिजनेस भाई की घरवाली पर भी उसने हक जता दिया। वह एक बा किरदार लड़की थी ।

बस समय रहते सही फैसला लेने से चूक गई। जब चेती तो बहुत देर हो गई थी। मामला उसके हाथों से निकल गया । वह मदद लेने ससुराल गई तो वहां भी उसे लांछनो का सामना करना पड़ा। ससुराल से गर्भावस्था में ही धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया गया।

फिर मायके गई तो उसका स्वागत तो हुआ पर दो रोटी और आश्रय तक। इससे अधिक कुछ नहीं। यहां भी वंदना से भूल हुई कि जो काम उसे बहुत पहले करना चाहिए था वह काम उसने अब करना चाहा।

यानी अपने पैरों पर खड़ा होना चाहा ।अभी उसे स्ट्रेस न लेकर बच्चे को जन्म देना था।फिर कचहरी द्वारा अपने पति का बिजनेस अपने देवर से छीन लेना चाहिए था। पर सीधे रास्ते न चल कर उसने तुरंत ही मायके से अपना हिस्सा लेने की बात की। बात गलत नहीं थी। पर बात करने का समय गलत था।

इससे बेहतर था कि वह मायके की मदद ले कर अदालत में जाकर ससुराल वालों के खिलाफ लड़ती और फिर बाद में यहां से भी हिस्सा लेती।

दूसरी कहानी “मुक्ति” भी एक मेट्रो शहर की वास्तविकता बताती है। बड़े शहरों में बढ़ रही ड्रग्स और क्राइम के माफिया किस प्रकार मासूम युवाओं को ड्रग्स, वेश्यावृत्ति और अन्य घिनौने अपराधों में धकेल देते हैं।

कैसे एक ग्रामीण नवयुवक को उसके पुराने साथी प्रवीण ने उसे काम देने के बहाने बुलाया और यहां लाकर उसे नशे ,जुआ प्राकृतिक यौन संबंधों,भिखारी गैंग के चक्रव्यूह में फंसा दिया।

यहां कथा के नायक द्रुत ने समय रहते कदम उठाया और बहुत ही टेक्टफूली उस पूरे गैंग का पर्दाफाश किया था तथा अपराधियों को पुलिस के हवाले करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ।

“कुसुम” कहानी में कहानीकार ने लगता है कि अपने आसपास घटित होने वाली घटनाओं को ही इस कहानी में पिरोया है। एक मॉडर्न पढ़ी लिखी, जागरूक महिला को किस तरह शादी के बाद अपने नाम ,अस्तित्व अपने कैरियर से हाथ धोना पड़ता है ।

पर कहानी की नायिका ने किस प्रकार अपने नाम कुसुम लता से ही अपनी पहचान बनाई उसका विवाहित नाम कुसुम कुणाल महंत से उसने कैसे कुणाल और महंत दो शब्द काटकर वापस अपना नाम कुसुम लिखा।

यह सराहनीय है। यह घटना बताती है कि अगर किसी भी स्त्री का पति शादी के बाद अपनी पत्नी के करियर को भी समान रूप से गंभीरता देता है और उसकी हर संभव सहायता करता है।

उसे अपने पैरों पर खड़े होने की। तो उस स्त्री को अपने नाम के आगे से ऐसे अपने पति का नाम काटने का मन नहीं करेगा बल्कि वो बहुत गर्व से अपने पति का नाम अपने आगे लगाएगी ।

जैसे मानों वो उसके नाम का पूरक ही हो। एक गहने की तरह वो उस नाम से सुसज्जित रहेगी । यह बात केवल दो नामों के समागम की न होकर दो आत्माओं का मेल प्रतीत होती है। जहां स्त्री अपनी इच्छा से अपनी सोल मेट का नाम एक क्राउन की तरह अपने नाम के साथ सुसज्जित करे।

इस कहानी में कुसुम का पति बहुत डॉमिनेटिंग है जो स्त्री की इच्छाएं, उसकी आइडेंटिटी कुचल रहा था। और इस कुचलने की प्रक्रिया में गुरुर से लिप्त अपना नाम कुणाल महंत हर जगह लगा रहा था।

उसके शब्द” पत्नी की जय पति की पराजय होती है।” बताने के लिए काफी है कि किस मानसिकता का व्यक्ति है वो । नामों के इस बवंडर में कभी कटते, कभी मिटते, कभी शामिल होते नामों का बवंडर सा था। पर उसकी इच्छा शक्ति से उसे उसका पुराना नाम “कुसुम लता” मिला और उसके साथ कहानी गुड नॉट पर समाप्त हुई।

प्रस्तुत पुस्तक में आगे बढ़ने से पहले मैं कहानीकारा पर कहूंगी। कि लेखिका आज की नारी से संबंधित कई ज्वलंत मुद्दों से पूरी तरह से परिचित हैं। समकालीन विषयों पर जो स्त्री से संबंधित हैं।

उन पर उसकी पकड़ सराहनीय है। चाहे वह घर और कैरियर के बीच तालमेल बैठाती नारी हो, चाहे वह ऑफिस में अधिक काम के बोझ से दबी स्त्री हो ,या फिर पशु पक्षियों के लिए भी संवेदना रखने वाली नारी हो।

इन सभी विषयों को लेखिका ने सुंदरता से प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत लघु कथा का शीर्षक “सुरभि” भी कहानी की नायिका के नाम पर रखा गया है। इसमें नायिका को उसके कार्यालय में प्रथम दिवस से शुरु होकर आगे के दिनों में उसके द्वारा वर्कलोड और ऑफिस पॉलिटिक्स का सामना करते हुए देखा जा सकता है।

सुरभि की नई ज्वाइनिंग,उसके माता-पिता का चिंतित होना। पिता का सुरभि को उसके ऑफिस छोड़ना और सुरभि का उसके पिता के साथ ही घर जाने का आग्रह करना । सभी घटनाओं के साथ आजकल के युवा डायरेक्टर कनेक्ट करेंगे । इस कथा में सबसे सुंदर था जो उसके साथ था।

उसके हर अच्छे बुरे समय में साथ रहा वह है अरविंद ।जो सुरभि के पुराने ऑफिस में हुए कड़वे अनुभव से लेकर उसकी ड्रीम जॉब और उसकी भरी पूरी गृहस्थी तक साथ रहा।

अरविंद का किरदार एक स्ट्रॉन्ग मेंटल स्टेट वाले पुरुष का है जो सदा अपनी सखी को एक अच्छे कैरियर के लिए प्रेरित करता है तो वहीं वह ऑफिस में सुरभि के साथ हुए कटु अनुभवों के चलते उसे वह कार्यालय छोड़ने के लिए भी कहता है। और उसके सारे फाइनेंस, उस की आवश्यकताओ और यहां तक कि उसकी सेहत की भी जिम्मेदारी लेने को राजी था।

यह एक इक्कीसवीं सदी के रियल मैन की निशानी है। कि वह अपनी बीवी का कैरियर अपने मतलब के लिए दाव पर न लगाए। और उसके कैरियर का सम्मान करें । परंतु उसकी पत्नी के कार्यालय में कोई गलत बात लगे तो अपनी जिम्मेदारी लेते हुए उसकी जॉब छुड़ा दे।

यह नारी सम्मान के लिए बड़ा कदम होगा। कहानी में अरविंद पुरुष चेतना का एक बेहतरीन उदाहरण है।
बेहतरीन उदाहरण है।

प्रकृति ” इस कथा में हम जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर के उसे नष्ट _ भ्रष्ट कर रहे हैं उसके बारे में लेखिका ने मार्मिक वर्णन किया है। इसमें एक प्रकृति प्रेमी राजा “बादल”केंद्रीय भूमिका में है। लगातार पड़ते अकालों से वह खिन्न था। उसे इस कारण रातों में नींद भी नहीं आ रही थी ।

उसके राज्य में न जनता खुश थी न राजा अपने जंगल अधिकारीयों से न फैक्ट्री मालिकों से खुश था। हर ओर पर्यावरण से खिलवाड़ हो रहा था। परंतु राजा का किसी पर वश ही नहीं चल रहा था। एक और जहां वह प्रकृति प्रेमी था। वह हर और सुंदरता और खुशहाली देखना चाहता था । सुंदर वस्तु को पसंद करता था । वहीं न जाने उसने एक कुम्हलाई सी,आम सी,जर्जर मजदूर स्त्री से क्यों विवाह कर लिया?

कहानी में आगे पढ़कर पता चला कि उसने उस जीर्ण क्षीण लड़की जिसका नाम प्रकृति था उससे विवाह केवल दया भाव से किया । वह उस लड़की की और तनिक भी आकर्षित न था। पर यह सोच कि ऐसी प्रकृति को ही तो ठीक करना है।

जब तक हम अपनी “मां प्रकृति ” को प्रेम से सींचेंगे नहीं, उसकी परवाह करते हुए ठीक से लालन पालन नहीं करेंगे तब तक कहां से वह फलदायक होगी। और यही बात राजा बादल के साथ भी हुई। जब उसने प्रकृति नामक अपनी पत्नी की दिल से और प्रेम से सेवा सुश्रुषा की तब उसमें भी सकारात्मक बदलाव आया ।

इसी तरह से जब अधिकारियों ने अपने पर्यावरण और जंगलों की देखभाल की तो उसमें भी भरपूर बदलाव आया। इस कहानी में लेखिका यह दर्शाती कि प्रकृति (राजा की पत्नी) ने अपने राज्य के पर्यावरण को लेकर कुछ अद्भुत कार्य किए।

ऐसे कदम उठाए जिससे उनके राज्य की प्रकृति हरी-भरी हुई और खूब फली फूली। प्रकृति यानी अपनी पत्नी के उठाए इन सकारात्मक कदमों से राजा बादल खुश होकर पत्नी पर रीझ गया और उसके प्रेम भाव से यह प्रकृति भी फल फूल गई।और इस प्रकार की कथा का अंत होता तो अत्यधिक सुखद दिखता।

करण” इस कथा के केंद्र में नायक करण है जो अपनी पत्नी द्वारा परित्यक्त पुरुष है । इस कहानी में लिखा है कि घर को संभालते संभालते एक स्त्री कभी थक सी जाती है। एक ही ढर्रे पर चलते चलते ऊब सी जाती है ।

उसे सिर्फ एक कंधे पर थपकी चाहिए होती है। उसी अपने मातृत्व के या घर की जिम्मेदारियों के बदले कोई मैडल या तमगा नहीं चाहिए होता। बस कभी थोड़ा मान मनुहार,थोड़ा सा प्यार दुलार और तारीफ के दो शब्द। बस।

यही है इस कहानी का निचोड़। जिसको लेखिका सुमन ने कुछ अधिक डिटेल कर दिया है कि दोनों जुड़वा बच्चियों का लेट्रिन व्याख्या बहुत लंबी हो गई है। जिनके घर भी बच्चे होंगे उन्हें बच्चों को कैसे पाला जाता है इस चीज का ज्ञान होगा। उसके एक एक बारीकी के वर्णन से कथा में बोरियत प्रतीत होने लगी है।

और यह कथा अपने मुख्य मुद्दे से हटकर सिर्फ शुशु पोटी में उलझ गई।” करण” कथा का मुख्य किरदार अपनी पत्नी की अनुपस्थिति में घर के काम और बच्चों की देखभाल भली प्रकार करता है । पर यह ही काम यदि वह किरण पत्नी की उपस्थिति में कर लेता तो यह नौबत ही नहीं आती।

काली चिड़िया के बच्चे” कहानी में पपीहा चिड़िया के बच्चों की दशा का वर्णन है । कैसे कहानी की दो पात्रा (बहने) निशा और मधु अंडे से फूटे दो बच्चों की देखभाल करती है और उनकी दिनचर्या का कैसे ख्याल रखती है।

“मधु” जो एक वैवाहिक स्त्री है उन बच्चों से अपना सीधा संबंध महसूस करती है क्यों कि वह मां बनने वाली है। कहानी में चिड़िया के दोनों छोटे बच्चे कुछ अंतराल में मर जाते हैं और उस दुख को मधु ,निशा व उनकी मां महसूस करती हैं और इस इस बात पर भी ध्यान देती है कि चिड़ा और चिड़िया को भी अपने दोनों बच्चों के करने का शोक है ।

पर वह उस व्यथा से वे जल्दी ही उबरते हैं और दोनों पक्षी साथ-साथ हैं मानो एक नया घोंसला और फिर घोंसले में रखे अंडों की ओर अग्रसर हों।

यही इस जीवन का सत्य है। यदि कोई समस्या या त्रासदी आए तो एक जोड़ा उससे मिलकर मुकाबला करे और जितनी आगे जल्दी बढ़ जाए उसी में समझदारी है।

शादी ” कहानी में वही पारंपरिक रूप से लड़की के देखने और दिखाने की किसी घिसी पिटी प्रक्रिया। लड़के वालों को चाय नाश्ता या खाने पर बुलाकर लड़की की कुछ झूठी कुछ सच्ची तारीफें करना उसकी परेड करना और नायक का उन सभी को रिजेक्ट करना।

इन सब के बीच कहानी में कुछ ना दिखने वाले तत्वों द्वारा नायक नायिका को सही फैसला लेने के लिए प्रेरित करना कथा की नायिका “कुमुदिनी “नायक “अरुण”की बहन है जो बहुजन समाज से संबंधित है । वह अपने ही समाज में नायक के लिए बहू और नायिका के लिए वर देख रहे हैं।

परंतु उनके अपने समाज में कोई उपयुक्त वर, वधु नहीं मिल पा रहे हैं। तो थककर वह दोनों भाई-बहन अपनी कम्युनिटी के बाहर रिश्ते देखने का फैसला करते हैं ।

कहानी को सौंदर्य देने की प्रक्रिया में कहानीकार ने कई लड़कियों की बॉडी शेमिंग की। किसी को मोटी तो किसी को छोटी, काली , भेंडी कह कर रिजेक्ट किया। वह भाई बहन कहां तो खुद खुले विचार, मुक्त सोच ढूंढ रहे थे। और संकीर्ण मानसिकता वालों से बच रहे थे । और कहां वह खुद रेसियल रिमार्क्स और बॉडी शेमिंग से खुद को बचा नहीं पाए।

इसी पुस्तक में लघु कहानियों के बाद का भाग कविताओं का आता है इस भाग में कुल 17 कविताएं हैं जिनमें अधिकतर नारी केंद्र में है “चल बहन जीना शुरू करें” कविता से शुरू है। नारी से आव्हान है कि अब नारी अपने लिए भी जीना शुरू करें ।

नाते रिश्तेदारियों को निभाते थक गई है। कुछ अपने लिए भी समय निकाले और जीवन को नए नजरिए से देखें ।अपने लिए जिए ।अच्छा पहनना ,अच्छा खाना । और फिर भरपूर जिंदगी जीनी चाहिए। कुछ ऐसी ही गुजारिश कवियित्री ने अगली कविता “मॉडर्न विधवा”में की है ।

अपनी अगली कविताओं में भी नारी सम्मान की भावना दिखाती हुई वह आगे बढ़ती हैं। पर हिंदी कविताओं में कवयित्री अनेक इंग्लिश भाषा के शब्द भी डालती हैं जो कुछ अखरते से लगते हैं।

ऐसा नहीं है कि यदि हिंदी के शब्द होते तो पाठक को समझ नहीं आते। मॉडर्न विधवा की जगह अगर आधुनिक विधवा होती तो क्या यह अधिक सटीक न होता? प्योर हार्टेड वूमेन ,रिजिडनेस,सेल्फिशनेस,हॉटनेस,ओवर कॉन्फिडेंस, मेल ईगो,ग्लोबल वूमेन,टाइम बाउंड इत्यादि।

समीक्षक :सलीमा जी

( हिंदी,इंग्लिश लेखन की शौकीन )

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