प्रश्न

( Prashn )

 

हर आदमी गलत नहीं होता
किंतु ,घटी घटनाएं और
मिलते-जुलते उदाहरण ही उसे
गलत साबित कर देते हैं

भिन्नता ही आदमी की
विशेषता है
किसी की किसी से समानता नहीं
न सोच की ना व्यवहार की
तब भी कर लिया जाता है शामिल
उसे भ्रम और वहम की कतार में

शुरू से वह गलत नहीं होता
नहीं चाहता है गलत होना
किंतु,गलत हो जाने की जिद्द में
अपने सत्यता भी सिद्ध नहीं करता

बेवजह की तर्क बाजी से अलग
या तो हो जाता है खामोश या
कर लेता है स्वीकार
ना इलाज बीमारी की तरह

एक सही को भी बना दिया जाता है गलत
समाज कभी स्वीकार नहीं करता अपनी कमी
कहते हैं जबकि
व्यक्ति ही समाज की इकाई है
व्यक्ति से ही समाज है और समाज से ही व्यक्ति है

तब,प्रश्न उठता है कि प्रश्न किससे किया जाए
व्यक्ति से या समाज से
सही गलत का निर्णय कौन करे

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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