प्रेम के प्यासे पेड़ पौधे
एक बाग में चारों तरफ लोग बड़े आश्चर्यचकित नजरों से देख रहे थे। लोगों को यह समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव हो गया। आश्चर्यजनक विषय यह था कि उस बाग में लोगों ने पहली बार बिना कांटों का गुलाब का पौधा देखा था।
लोगों को यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि बिना कांटों का गुलाब भी पैदा हो सकता है। लेकिन यह कोई कहानी नहीं बल्कि लोग अपनी खुली आंखों से ऐसा होते देख रहे थे। मूलतः बात यह है कि यह संसार प्रेम का भूखा है। मनुष्य ही नहीं जीव जंतु भी सभी प्रेम पाना चाहते हैं। इस प्रेम के द्वारा असंभव कार्य को संभव कर दिखाया था एक व्यक्ति ने।
वह व्यक्ति आश्चर्यचकित लोगों से कहता है कि – “यह पौधे हैं, इनमें जीवन के लक्षण प्रतीत नहीं होते हैं तथा यह भी आत्मा है । और प्रत्येक आत्मा प्रेम की प्यासी और भावनाओं की भूखी होती है।
हम संसार को कुछ दे नहीं सकते तो प्रेम और करुणाशील भावनाएं तो प्रदान कर ही सकते हैं। यदि मनुष्य इतना सीख जाए तो संसार में सुख शांति का पारावार ना रहे। प्रेम ही वह शक्ति है जो पदार्थ के वैज्ञानिक नियम को भी बदल सकती है।
उस व्यक्ति ने पेड़ पौधे पर प्रेम का परीक्षण करने के लिए एक गुलाब का पौधा लगाया। प्रतिदिन वह उस पौधे के पास बैठता। वह गुलाब से बड़े प्रेम से, दुलार से, अपनत्व से, स्नेह से बातें किया करता कि-” मेरे प्यारे गुलाब भैया !
लोग तुमको लेने इस दृष्टि से नहीं आते की तुम्हें कष्ट हो। वह तो तुम्हारे सौन्दर्य से प्रेरित होकर आते हैं ।वैसे भी तो तुम्हारे सुवास विश्व कल्याण के लिए ही है ।
जब दान और संसार की प्रसन्नता के लिए उत्सर्ग होना ही तुम्हारा ध्येय है तो फिर यह कांटे तुम क्यों उगाते हो ! तुम अपने कांटे निकलना और लोगों को अकारण कष्ट देना भी छोड़ दो तो फिर देखना कि संसार तुम्हारा कितना सम्मान करता है ।
अपने स्वभाव की इस मलीनता को और कठोरता को निकाल कर एक बार देखो तो सही की यह सारा संसार ही तुम्हें हाथों हाथ उठाने के लिए तैयार है या नहीं।”
इस प्रकार के बड़े दुलार एवं प्रेम की बातें वह प्रतिदिन उस गुलाब के पौधे के पास बैठकर किया करता। इस प्रकार से वह दो-तीन महीनों तक करता रहा।
गुलाब धीरे-धीरे बढ़ने लगा। उसमें सुडौल डालियां , चौड़े-चौड़े पत्ते निकले और फूल भी निकलने लगे पर उसमें क्या मजाल की एक भी कांटा आया हो। उसने इस बात को सिद्ध कर दिया कि आत्मा की पुकार आत्मा अवश्य सुनती है।
इसी के साथ उसने यह भी सिद्ध किया कि प्रेम से जब पेड़ पौधों की प्रकृति बदली जा सकती है तो मनुष्य की क्यों नहीं बदल सकती है।
वर्तमान समय में मनुष्य के जीवन में दुःख इसलिए बढ़ गया है कि कोई किसी से प्रेम नहीं करता। सब एक दूसरे का इस्तेमाल किया करते हैं। प्रेम भी इस्तेमाल की वस्तु बनकर रह गया है। यही कारण है कि मनुष्य के जीवन में दुख बढ़ता ही जा रहा है।
मानवीय जीवन से यदि दुःख को कम करना है तो निश्छल प्रेम करना होगा। मनुष्य का निश्छल प्रेम ही उसके दुख दर्द को कम कर सकता है। आज संपूर्ण मानवता प्रेम की भूखी है।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )