पुजारी | Pujari Laghu Katha
जमना बाजार में खड़ी एक दुकान पर खड़ी कुछ खरीद रही थी कि एक ट्रेक्टर ट्राली में एक सांड के शव को सफेद कपड़े के ऊपर रंग बिरंगे फूलों सें सजा जिसके आगे दो बैंड फ़िल्मी शोक धुन बजाते चल रहे थे, देखा।
जैसे ही उसने अपनी गर्दन उसके जलूस को देखने के लिए घुमाई कि एक बहुत हीं साधारण वेशभूषा में मधरे कद का गंभीर मुद्रा में अपने कमीज को झोली बनाए दुकानदार के सामने आ खड़ा हुआ और –
” पैसे डालो जी ”
कहा तो दुकानदार ने बीस रूपये का नोट निकाल कर उसकी झोली में डाल दिया और वह आगे दूसरी दुकान पर बढ़ गया।
जमना की आँखे अब जलूस सें हट कर रूपये इकट्ठे करनेवाले पर जम गई। देखते ही देखते उसकी झोली रुपयों सें भर गई। वह तब तक उसे देखती रही जब तक वह श्मशान जानेवाली सड़क पर न मुड़ गया।
वह हर दुकान सें पैसे इकट्ठे कर रहा। जमना अचानक दुकानदार सें पूछ बैठी—
“भैया, यह मृत सांड का ऐसी जलूस क्यों निकाल रहा हैं?”
” जलूस नही निकाल रहा, यह आदमी जो पैसे ले गया है, यह इस सांड का अंतिम संस्कार करने ले जा रहा हैं। यह सड़क पर कहीं भी इसे कोई सांड मृत दिखाई देता है तो उसे इसीतरह सें विदा करता है।
यह कार्य यह आदमी बीस साल की उम्र सें कर रहा हैं। जो इसके जलाने में लकड़िया आदि का खर्च आता हैं, उसे यह बाजार की हर दुकान सें माँग कर पूरा कर लेता है”-दुकानदार ने समझाते हुए कहा।
सुन कर जमना के मुँह सें अचानक निकला पड़ा -” बहुत पुण्य समेट रहा है यह आदमी। मनावता की सच्ची सेवा तो सही मायनो में यही कर रहा है। लोग तो अपने परिवार के किसी व्यक्ति को भी ऐसें विदा नही करते ” और उसकी आँख में आँसू छलक आए।
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र