पुत्री का पिता | Putri ka Pita
पुत्री का पिता
( Putri ka pita )
Father’s day special kavita
पिता के कंधे की मजबूती
बेटी के लिए साहस और गर्व का
प्रतीक है होती।
उसे समाज में अपने
बढ़ते कदमों की
तब चिंता नहीं होती
तब उसकी उम्मीदें,
धुंँधलाती नहीं हैं
अंधेरों में छुपकर अपनी
चमक गंँवाती नहीं हैं।
जिन उंँगलियों को पकड़कर
चलना है सीखती।
जिस के सानिध्य में
नए-नए पाठ पढ़ती।
जो पिता अचानक से
उसकी हथेली खोल रख देता है
प्रेम – सुरक्षा के दो मोती
ऐसी निहाल करने वाली होती है
पुत्री -पिता की प्रेम मूर्ति।
हौसला देता है हमेशा के लिए
एक संस्कारवान पिता का होना।
न भी बिछाए अगर,
सुविधाओं का बिछौना,
तो भी पुत्री सीख लेती है
इन सुदृढ़ आधारों पर चलना।
बात उन पिताओं की है
जो जीवन जीने की कला जानते हैं।
बात उन पिताओं की है
जो पुत्र- पुत्री को समान मानते हैं।
बात उन पिताओं की है
जिनके लिए पुत्री ,
विद्वता और सम्मान की
एक पावन ज्योति है।
बात उन पिताओं की नहीं है
जिनके लिए बेटी एक दर्द है
कर्ज है, मर्ज है।
बात उन तथाकथित
पिताओं की भी नहीं है,
जिनकी नजर ,जिनके कृत्य,
मानवता को शर्मसार कर दें
बेटियों के दामन में कांँटे भर दे।
तो चयन बेटी का है
उसे बस सही को सुनना,
स्वविवेक से अपने जीवन की
राहों को किस तरह बुनना है!
खुद पर सबसे पहले,
अपना नियंत्रण रखना है।
आगे बढ़ने के लिए समझौते नहीं,
संघर्षों की डगर चुनना है।
( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )
भोपाल, मध्य प्रदेश
aarambhanushree576@gmail.com