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सूखे पेड़ पर परिंदे भी घर नहीं बनाते | Sukhe Ped

सूखे पेड़ पर परिंदे भी घर नहीं बनाते

( Sukhe ped par parinde bhi ghar nahi banate )

 

तंगहाली में अपने भी साथ नहीं निभाते।
सूखे रूख पर परिंदे भी घर नहीं बनाते।

बिन जल सरोवर सूना सूना सा लगता।
नीरव तलाश में पंछी अन्यत्र चले जाते।

हरी भरी हरियाली हो तरूवर लहराते हैं।
सूखे पेड़ पर परिंदे भी घर नहीं बनाते हैं।

मुफलिसी में मुंह फेर लेते हैं दुनिया वाले।
भाग्य सितारे भी जाने कहां खो जाते हैं।

वक्त देता साथ तो सब अपने हो जाते हैं।
सूखे पेड़ पर परिंदे भी घर नहीं बनाते हैं।

बड़ा मुश्किल पड़ाव बुढ़ापा ऐ जिंदगी का।
जो सेवा करते हैं जीवन में सुख पाते हैं।

 

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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