सीमाएं
सीमाएं

सीमाएं

( Seemayen )

 

सीमाओं  की भी  एक सीमा,खींचे चित्र चितेरे,
समय की गति को बांध न पाए,सीमाओं के घेरे।

 

सूर्य चन्द्रमा बंधे समय से ,सृष्टि करे प्रकाशित।
शिक्षा  देते  मुस्काने की,जीवन करो सुवासित।

 

कहते रेखाएं न खींचो,वसुधा सकल परिवार।
हम सीमाओं से बाहर है ,देते प्रभा एकसार।

 

जाति धर्म और ईर्ष्या द्वेष की,खींचो न दीवारें।
गगन के पंछी बनो,जग में लाओ नित्य बहारें।

 

चींटी से हाथी तक विधि की,रचना रंग बिरंगी।
सीमाओं में बांधा न उसने, जीवन ये सतरंगी।

 

प्रेम का पाठ पढ़ाकर भेजा,कहाश्रेष्ठ होजग में।
मानवता  है  धर्म  तुम्हारा, कष्ट न आए मग में।

 

प्रेमभाव से सब जीवों को,बनाके अपना रखना।
जीवन  पथके पथिक,लक्ष्य स्वयं बनाके रखना।

 

किन्तु धरा पर आकर मानव,मानवता ही भूला।
स्वार्थसिद्धि हीलक्ष्य बना,स्याही का गाड़ा कीला।

 

भूमि में खिंचती चली लकीरें,हुए विभाजित देश।
जाति धर्म परिवार बंट गए,कुछ भी बचा न शेष।

 

दृष्टि जिधर भी डालो,बस सीमाएं नज़र है आती।
सीमाओं की भी है सीमा,मनुज संभालो थाती।।

 

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रचना – सीमा मिश्रा ( शिक्षिका व कवयित्री )
स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार
उ.प्रा. वि.काजीखेड़ा, खजुहा, फतेहपुर

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