Raaz Gehre

राज़ गहरे | Raaz Gehre

राज़ गहरे

( Raaz Gehre )

एक ही चेहरे में छुपे चेहरे बहुत हैं,
लबों पे हँसी दिल में राज़ गहरे बहुत हैं,

कौन अपना कौन है पराया जाने कैसे?
अब जज़्बातों पर भी लगे पहरे बहुत हैं,

मुसीबत में भी साथ छोड़ रहे हैं अपने,
रिश्तों में रंज़िशों की उठ रही लहरें बहुत हैं,

जिसको भी समझा हमदर्द अपना,
ज़ख़्म उसने ही दिल को दिए गहरे बहुत हैं,

है ख़्वाहिश रिश्तों का बगीचा बनाऊँ,
मोहब्बत के पानी से सींच एक शजर उगाऊँ,

अदावत-वो-तग़ाफुल से पाक है वो जहान,
जहाँ अपनायित की बहती नहरें बहुत हैं!

Aash Hamd

आश हम्द

पटना ( बिहार )

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *