रहूँ मैं खुदा की पनाह में
( Rahoon main khuda ki panah mein )
रहूँ मैं ख़ुदा की पनाह में
न आऊँ अदू की निग़ाह में
ख़ुदा ख़ूब मुझसे ख़फ़ा होगा
न कर जीस्त अपनी गुनाह में
सनम सोफ़ तुझसे दिया सदा
मेहर और क्या दू निकाह में
बना रब उसे उम्रभर मेरा
डूबा हूँ बहुत जिसकी चाह में
कहीं और दिल अब नहीं लगता
आया तेरी जब से नवाह में
मुहब्बत करके देख तू आज़म
बिछेगे सदा फूल राह में