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हमारे राम
( Hamare ram )
सुकून-ओ-चैन का पैगाम,
देने हमें आते हैं राम।
भाई से भाई का रिश्ता,
निभाने आते हैं राम।
दिखता यहाँ कोई मायावी रावण,
वध उसका करने आते हैं राम।
नफरत की दीवार खड़ा न करो,
मोहब्बत का पाठ पढ़ाते हैं राम।
हिन्दू-मुस्लिम वो क्या जाने,
मेरी हर साँस में बसते हैं राम।
राजधानी छोड़ चले उसूल पे,
त्याग की मूरत बन जाते हैं राम।
शबरी के हाथ कभी खाए थे बेर,
प्यार के भूखे देखो हैं राम।
जीत करके लंका लिए भी नहीं,
पाप का बोझ मिटाते हैं राम।
मजहब की भट्ठी में जो देश जलाते,
सियासत उन्हें सिखाते हैं राम।
मधुमक्खी फूलों से लेती है रस,
टैक्स वैसे लेना सिखाते हैं राम।
वोटों की मंडी में न कपड़े उतारो,
हथकंडे कभी न अपनाए हैं राम।
गंगा के जैसे बनाओ मन निर्मल,
भयमुक्त धरा बनाए हैं राम।
सत्ता के भूखे न थे कभी वो,
गरीबों का आँसू पोंछे हैं राम।
चलते थे खुद वो देखो धूप में,
प्रजा को रखे थे छावँ में राम।
ढूँढते रह जाओगे उन्हें ईंट-गारों में
घट-घट में देखो बसते हैं राम।
चाहे तो पढ़ लो गरीबों के आंसू में,
साध्य और साधन दोनों हैं राम।
सीता,अनुसुइया,मंदोदरी,तारा,
शबरी के जूठे बेर खाते हैं राम।
करता कोई भी जो नारी की इज्जत,
बिलकुल नजर उसे आते हैं राम।
तन तो रंगाया पर मन न रंगाया,
कैसे नजर तेरे आएँगे राम।
फूलों की शय्या पे भले तू सो ले,
न सपने में तुझको दिखेंगे राम।
पत्थर की हुई जो गौतम की पत्नी,
पाँव से केवल छुए थे राम।
तर गई देखो तब वो अहिल्या,
वनवास में जब आए थे राम।
गीता का पाठ सुनाने कभी हमें,
नए अवतार में आए हैं राम।
जहां में फैलाए ज्ञान की रोशनी,
विदुर घर साग खाए हैं राम।
न हिन्दू को मारो न मुस्लिम को मारो,
करते हैं अदब सभी का राम।
मुल्क की बेहतरी के लिए तू उठो,
सच्ची राह हमें दिखाते हैं राम।
ये मिट्टी की काया हकीकत नहीं,
काबू में रखो बताते हैं राम।
मुखालफत न करो मुल्क की कभी,
देश के साथ जिओ,कहते हैं राम।
ये गुलशन,ये दुनिया उजाड़ो नहीं,
मिलके रहना सिखाते हैं राम।
खून की नदी न बहाना कभी,
मिलके रहना बताते हैं राम।
मैं अपने वक्त का पैगम्बर नहीं,
चलो दीन-धर्म पे बताते हैं राम।
मिटा दो ये साँसें वतन के लिए,
इबादात यही है सिखाते हैं राम।
मौत है सच,गलत ख्वाहिश न पालो,
ऐसी राह दिखाते हैं राम।
अस्मत किसी की लुटे न धरा पे,
ऐसा संस्कार हमें देते हैं राम।
गलत तरीके से न दौलत कमाओ,
गरीबों को गले लगाते हैं राम।
मत नाज करो अपने महंगे लिबास पर,
वल्कल पहन वन जाते हैं राम।
ओढ़कर मजहब जो घूमते चौराहे,
बचना उनसे बताते हैं राम।
हर दौर में अपराधी होते हैं नंगे,
मिलती सजा बताते हैं राम।
यहाँ की अदालत से बच जो गए,
वहाँ नहीं बचेंगे कहते हैं राम।
अनेकता में एकता की खुशबू बिखेरना,
ऐसी बयार में बसते हैं राम।
जो दर्द था दिल में मैंने कह दिया,
बचाना वजूद कहते हैं राम।
फूल और खार इन दोनों से बचना,
कदम न डगमगाये कहते हैं राम।
ये जहां न तेरा है और न ही मेरा,
किसी दौर में वो आए हैं राम।
फिसलता है वक्त रेत की तरह,
समय की कीमत बताए हैं राम।
पल-दो पल के इस जीवन में,
कोई निशान छोड़,कहते हैं राम।
बनाओ न खून को आँसू कभी,
तूफाँ से लड़ो,कहते हैं राम।
जड़-चेतन पूरा समाया है जिनमें,
वैसा देखो हमारे हैं राम।
वन जाकर अपना झुलसाए वो तन,
वचन से न कभी डिगे हैं राम।
इल्जाम कितना उन पर लगा है,
और जख्म कितने सहे हैं राम।
बिता दो एक दिन तू सिर्फ वैसा,
जैसे हमारे दिखते हैं राम।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक), मुंबई