.रौद्र रस | Raudra Ras Kavita
.रौद्र रस
( Raudra Ras )
मन करता है कभी, ज़ुबां के ताले अब खोल दूँ,
है दुनिया कितनी मतलबी जाके उनको बोल दूँ,
उतार फेंकूँ उनके चेहरे से चापलूसी के मुखौटे,
सच के आईने दिखा बदसूरती के राज़ खोल दूँ,
कैसी हवस है यह पैसे की जो ख़त्म नहीं होती,
चाहूँ तो सच के तराज़ू में आमाल इनके तोल दूँ,
छलका जो कभी मेरा रौद्र रस सब बह जाएगा,
हरइक की ख़ुदग़र्ज़ी की उनको सज़ा बेमोल दूँ,
दिल चाहता है एक मोहब्बतों का जहां बनाऊँ,
नफ़रतें मिटाके अपनायित की मिठास घोल दूँ!
आश हम्द
पटना ( बिहार )