Rochak kahani

बेबफाई का दर्द | Rochak kahani

बाबुजी, क्या आप मेरी कहानी मैगजीन में छपवा देगें? तभी मेरे कानों में ये आवाज आयी। मैने चौंक कर चारो तरफ देखा, सामने मेहदी की बाड़ के पास एक सहमी सी लड़की खड़ी थी, वो बड़ी हसरतों से मेरी तरफ देख रही थी।

उसकी बड़ी-बड़ी झील सी आँखें मानो मूक भाषा में मुझसे कुछ कह रही हों। मैने फौरन कहा, आप मुझे कैसे जानती हैं, मैं तो इस गांव में पहली बार आया हूँ।

जी अभी कुछ देर गाँव के प्रधान आपका परिचय मेहमान से करवा रहे थे, तब मुझे मालूम हुआ कि आप एक मशहूर राइटर भी हैं। आप अपनी कौन सी कहानी शाया करवाना चाहती हैं?

मैंने उत्सुकता से पूछा। मेरी कहानी है, जिस पर शायद ही लोग एतबार करें, मगर मैं चाहती हूँ कि लोग इस कहानी को पढ़कर सबक हासिल करें, आज के बाद कोई और मासूम रुज़ा किसी धोखेबाज, खुदगर्ज इन्सान की भेंट न चढ़ सके।

उसकी आवाज़ में बेहद पछतावा था। लगता था मानो उसकी पूरी जिन्दगी किसी मतलब परस्त की भेंट चढ़ गई हो क्योंकि उस लड़की की आंखां में न कोई खुशी की चमक थी, न खुद से लगाव, शायद उसका मकसद सिर्फ अपनी दर्दभरी दास्तान लफ्जों और कागज के जरिए दुनियाँ वालो तक लाना था।

ठीक है तुम मुझे अपनी कहानी सुनाओ। अभी नहीं बाबुजी, कल आप गांव की सीमा के पास पहाड़ी टीले पर आना, वहीं पर मैं आराम से बैठकर अपनी कहानी सुनाऊँगी, वहाँ पर वैसे भी कोई आता जाता नही, यहाँ इस शादी के हंगामे मे कुछ समझ में नहीं आयेगा।

ठीक है मैं कल उस पहाड़ टीले के पास पहुँच जाऊँगा, आप मुझे अपनी कहानी सुना दें क्योंकि परसो मुझे निकलना भी है। तभी मुझे किसी ने आवाज लगाई, मैं फिर बारात की भीड़ में गुम हो गया।

मैं आप लोगों को अपना परिचय देना तो भूल ही गया था मैं पेशे से एक रिपोर्टर हूँ और अपने दोस्त की शादी में उसके गांव देवनगर आने का मुझे आज मौका मिला। देवनगर गांव शहर से दूर नेपाल बॉर्डर के स्थित एक पिछड़ा गांव है।

यहाँ के नब्बे प्रतिशत लोग अनपढ़ गंवार अपने ही बनाये हुए रीति रिवाजों में जीने वाले दकियानूसी लोग हैं। बाहर की दुनियाँ मे क्या हो रहा है, इन्हें इनसे कोई मतलब नहीं। स्त्रियों की दशा तो और भी सोचनीय है, उन पर शिक्षा गृहण की सख्त पाबन्दी है।

उनका काम सिर्फ घर का काम और बच्चों को सँभालना है। यहाँ आथिर्क स्थिति तो और भी कमजोर है। इसलिए ज्यादातर पुरूष गांव से बाहर दूर शहरों में नौकरी करने जाते हैं। स्त्रियाँ ज्यादातर मजदूरी करती है, बंजर भूमि की वजह से खेती भी कम होती है।

यहाँ की दयनीय स्थिति देखकर ही मैंने इसके बारे में अपनी कलम चलाने का फैसला किया, और अपने दोस्त की शादी ये मौका मिला। अगले रोज मै देर से उठा, शादी का माहौल था। सभी देर से सोये थे इसलिए उठे भी देर से।

तभी मुझे याद आया कि आज मुझे किसी की कहानी लिखने पहाड़ी टीले पर जाना है, इसलिए मैं जल्दी-जल्दी नहा धोकर तैयार हुआ और नाश्ता करते ही फौरन पहाडी टीले पर पहुँच गया। वहाँ की फिजा बडी सुनसान थी चारां तरफ अजीब सी वीरानी छाया थी।

बडे-बड़े पथर फैले पड़े थे। वहाँ आदमी तो क्या परिन्दा भी दिखाई नहीं दे रहा था, मैं वहाँ की स्थिति का जायजा भी ले रहा था कि पीछे से मुझे किसी ने आवाज दी, आप आ गये बाबुजी जी। मैंने पलट कर देखा, सामने वही लड़की नजर आयी। चलिए यहाँ बैंठते हैं।

उसने सामने पड़े हुए पत्थरों की तरफ इशारा करते हुए कहा, खुद वो एक पत्थर पर बैठे गयी, मैं भी इन्हीं पत्थरों में से एक पत्थर पर ऐसे बैठे गया कि सामने वाले पत्थर को मेज बनाकर आराम से लिख सकूँ। हाँ बाबुजी मैं शुरू करती हूँ। मेरा नाम रुजा है।

मैं बेहद बदनसीब लड़की हुँ, बचपन से ही मुझे परिवार का प्यार नहीं मिला। जब तक मेरे दादा जी जिन्दा रहे, मैं उनकी पनाह में महफूज रही, मगर उनके मरने के बाद मेरा कोई भविष्य नहीं रहा।

माँ-बाप को आपस में लड़ने से फुरसत नहीं थी तो औलाद की तरफ क्या तवज्जो देते, इस माहौल में मैंने जैसे -तैसे अपनी पढाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान मैंने सर्विस के लिए अप्लाई किया। मेरी सर्विस लग गयी, मुझे पढाने के लिए इस गांव मैं भेजा गया।

पहले-पहले तो मुझे इस गांव में अजीब सा लगा, मगर धीरे-धीरे इन पढने वाले छोटे- छोटे बच्चों के बीच घुलती मिलती चली गई। इन्हीं बच्चों में से एक छोटा बच्चा था, शोएब।

वो बेहद मासूम था। उसकी मासूमियत पर हर कोई उसकी तरफ खिंच जाता था। मेरा ज्यादातर वक्त उसके साथ गुजरता। उसकी बातें, उसकी आदतें मुझे अच्छी लगती थी, वैसे तो शोएब अकेला स्कूल आता था। मगर कभी-कभी जब उसे स्कूल के लिए देर हो जाती थी तो मेरे डर की वजह से वो अपने चाचा को साथ आता था।

उसका चाचा मुझे सलाम दुआ करके शोएब को मेरे हवाले करके खामोशी के साथ चला जाता था। मुझसे और कोई बात नहीं करता था, मगर एक रोज शोएब अपनी नोटबुक घर भूल आया तो उसका चाचा उसकी नोट बुक देने मेरी क्लास में आया तब पढाई के सिलसिले में थोड़ी बातचीत हुई।

इस तरह बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। वैसे अक्सर वो संजीदा रहता था। बातचीत कम करता था। उसका नाम मुहीद अशर था। उसकी संजीदगी देखकर एक रोज मैने उससे पूछ ही लिया, मुहीद जी आप इतने उदास क्यो रहते है ?

क्या आपकी कोई प्रॉब्लम है? बस ऐसे ही मेरी आदत है। उसने टालना चाहा। ठीक है आप बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं, मैंने तो इन्सानियत के नाते ऐसे ही पूछ लिया था। अगर आपको बुरा लगा है तो माफी चाहती हूँ।

उस रोज वो चुपचाप चला गया। मगर तीन चार रोज के बाद मैने देखा उसके चेहरे पर कशमकश के आसार थे। शायद इन दिनों वो खुद को तैयार कर रहा था कि मुझे अपनी दास्तान सुनाये या नहीं। मगर बातचीत के दौरान वो खुल गया था।

उसने अपनी पूरी दास्तान कह सुनाई। रुजा जी। मैं बचपन से किसी लड़की से प्यार करता था। मगर मैं कभी उससे अपने प्यार का इज़हार नहीं कर पाया, क्योंकि वो बहुत अमीर घराने की थी।

मैंने उसके लिए, उसे अपना बनाने के लिए विदेश जाने का प्रोग्राम बनाया फिर जैसे-तैसे मैं विदेश आया। वहाँ से पैसा कमाकर जब मैं लौटा तो मालूम हुआ कि उसकी शादी कहीं और हो गयी, तबसे मैं गमों के समन्दर में डूब गया।

पता नहीं किस्मत को क्या मंजूर था, बचपन में माँ मर गया थी। जवानी में बाप गुजर गया, फिर मेरा प्यार भी मुझसे जुदा हो गया। मुझे उसकी दास्तान सुनकर बहुत दुःख हुआ, कहा वाकई आपके साथ बड़ी ट्रेजडी हुई।

मगर आप परेशान न हों, जब भी आप उदास या परेशान हो मुझसे बात कर लिया करें, कहते हैं बाँटने से मन का बोझ हल्का हो जाता है। आप ठीक कहती हैं। आपसे बात करके मुझे कुछ सुकून मिला, आप बड़ी नेकदिल इंसान है।

इस तरह धीरे-धीरे वो मुझसे धूलमिल गया, फिर अक्सर मेरे साथ बातें करने लगा। रुजा जी, आपके पास आकर मेरे गमों का बोझ हल्का हो जाता है, अब तो तकरीबन मैं उस बेवफा लडकी को भूल भी चुका हूँ।

पहले-पहले तो उसकी बेवफाई के बाद लगता था कि दुनियाँ की सारी लड़कियां ही बेवफा होती हैं। मगर आपसे मिलने के बाद मुझे महसूस हुआ कि सभी बेवफा नहीं होती। कुछ आप जैसी भी होती है सीधी-सच्ची, दूसरों से हमदर्दी रखने वाली।

वो अक्सर मुझसे इसी तरह की बातें करता, मैने कभी उसकी इन बातों पर गौर भी नहीं किया मगर एक रोज वो मुझसे बोला। रुजा जी। मैं आजकल हर वक्त आपके बारे में ही सोचता रहता हूँ। हर वक्त मेरे बारे में ही क्यों सोचते रहते हो?

कोई इंसान किसी के बारे में तब सोचता है जब वो उसे चाहने लगता है। हाँ, रुजा जी, मैं आपसे प्यार करने लगा हूँ। उसने बगैर घुमाव फिराव के अपने प्यार का इजहार कर दिया।

मैं उसकी ये बातें सुनकर हक्की-बक्की रह गयी। मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि वो ये बात इतना आसान नहीं होता। प्यार से ज्यादा एक दूसरे को समझना पड़ता है, एक दूसरे के जज्बों की कद्र करनी पड़ती है। भरोसा करना पड़ता है, यानी जिंदगी के हर पहलू को समझना पड़ता है रुजा जी, ये आप ही थीं जिसने मुझे दुबारा जिन्दगी की खुशियाँ दी, अपनापन और प्यार दिया।

भरोसा करना सिखाया। जब मैं आप पर भरोसा करके नई जिंन्दगी जीना चाह रहा हूँ। तो आप मेरा साथ देने के बजाय मेरा साथ छोड़ रही है। क्या आप सिर्फ लोगों के जख्मों पर प्यार का मरहम रखती है, उनका साथ नहीं देती, आप सिर्फ हमदर्दी करना जानती है, प्यार करना नहीं।

किसी की जिन्दगी में खुशियां भरने की हिम्मत नहीं थी तो उसकी हौसला अफजाई क्यों की। कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं आपके लायक नहीं, सोचा होगा कि कहाँ में शहर की पढीं लिखी लड़की और कहाँ यह गांव के माहौल का लड़का, वो भी पिछड़े इलाके का। हाँ, ये बात तो है। हमारे ख्यालात आपस में काफी चेंज हैं, मैं शहर के माहौल की हूँ।

आप गांव के तो हमारे ख्यालात रस्म व रिवाज आपस मे टकरायेंगे ही टकरायेंगे। इसी वजह से शायद हमारे घर वाले इस रिश्ते को राजी न हों। रुजा जी, जब दिल में एक दूसरे के लिए अपनापन हो, इज्जत हो तो सात समन्दर पार से भी लोग मिल जाते हैं।

हम आप तो क्या चीज है, रही बात हमारे घर वालों की तो मैं घर तो क्या पूरी दुनियाँ से आपकी खातिर लड़ जाऊँगा। बस मुझे आपका साथ चाहिए।

आप मेरा साथ न छोड़ें, वरना शायद मैं फिर कभी किसी ओर पर भरोसा न कर पाऊँ।सिर्फ आपने ही मेरे भरोसे को जिंदा किया है, अब क्या आप ही पीछे हट जायेगी?

उसने मेरे सामने ऐसा मोड़ लाकर खड़ा कर दिया जहाँ से न मैं आगे बढ़ सकती थी न पीछे हट सकती थी। अगर मैं इन्कार करती तो झूठी, मतलबी ठहरायी जाती अगर इजहार करती तो दिल से बगावत होती, क्योंकि मेरे दिल के किसी कोने में उसके लिए प्यार का जज्बा नहीं था।

सिर्फ हमदर्दी, अपनापन था। समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करूँ, मैंने उसे बहुत समझाया मगर वो अपनी जिद पर अड़ा रहा, फिर एक रोज उसने हार मान ली और कहा ठीक है रुजा जी, अगर मेरी किस्मत में आपका प्यार नहीं है तो कोई बात नही, मगर जब तक आप यहाँ है तो कम से कम मुझसे बात तो लिया करे, मेरे दिल को इसी से सुकून मिल जायेगा।

यह कहकर वो खामोशी से चला गया। उसका इस तरह जाना मुझे दुःखी कर गया, आज उसकी आँखों में यही उदासी थी, जो पहली दफा मैंने देखी थी। वो अब मुझसे बातें तो मगर खामोश रहने लगा। वो अन्दर ही टूट रहा था, मैंने उसकी ये हालत देखकर उसके हक में फैसला कर दिया।

मेरे पास इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं था। अभी मैं ट्रांसफर भी नहीं करवा सकती थी क्योंकि मुझे सर्विस ज्वाइन किए हुए कुछ ही महीने हुए थे। दूसरे अगर वो मेरी आंखों के सामने इस तरह बुझा-बुझा रहता तो भी मुझे दुख होता क्योंकि मैंने ही उसे खुशियों का रास्ता दिखाया था।

अब कैसे मैं उसे गमों के समन्दर में डूबा देती, वो पहले ही किसी की बेवफाई का शिकार था, अगर मैं भी उसके साथ ऐसा करती तो औरत जात से उसका भरोसा हमेशा के लिए उठ जाता, और ऐसा होने से में खुद को कभी माफ नहीं कर पाती।

इन सब हालातां को देखते हुए मैंने एक फैसला किया कि खुद को किस्मत के हवाले छोड़ दिया जाए, अगर मेरे इकरार से उसकी जिन्दगी में खुशियां आती हैं तो ये ही सही, और हुआ भी यही मेरे इकरार करते ही उसकी आँखों में खुशी के दीपक झिलमिला उठे, वो अब खुश रहने लगा।

रुजा जी आपने मेरी जिन्दगी में खुशियां भर दी, मैं बहुत खुशनसीब हुँ जिसे आप जैसे जहीन लडकी का प्यार मिला। और उससे ज्यादा खुशनसीब तब समझूंगा जब आप हमेशा।

के लिए मेरी जिन्दगी में आ जायेगी। अक्सर अब वो ऐसी ही बाते करता, धीरे-धीरे मैने भी उसके बारे में सोचना शुरु कर दिया। हम घंटो बैंठकर भविष्य के बारे में बातें करते और सुनहरे ख्वाब बुनते।

हालांकि हमारे रस्म रिवाज में रहन-सहन में काफी अंतर था, फिर हम लोगों ने अपने को काफी एडजस्ट कर लिया था। उसने काफी हद तक अपने मेरे हिसाब से ओर मेने अपने को काफी हद तक उसके माहौल और हिसाब से एडजस्ट कर लिया ताकि हमे कोई परेशानी न हो।

मुहीद जल्दी शादी की बाते रखने लगा, शायद वो कुछ ज्यादा ही उतावला हो रहा था। देखो मुहीद शादी की बात इतनी आसान नहीं है। मेरे घर वाले शायद इतनी जल्दी शादी को राजी न हों। मैं गर्मियों की छुट्टियों में अपने घर जाऊँगी तब करुँगी।

मार्च तो चल ही रहा के अप्रैल में बच्चों की परीक्षाएं हैं मई में। छुट्टियां पडे़गी तब मैं घर जाकर इस पर बात करूंगी। मेरे घर वाले भी शायद इस रिश्ते पर राजी न हो, वो बहुत कट्टरपंथी है। वो मेरी शादी कबीले के लड़के से ही करेंगे, हमारे कबीले में रिश्ते शहर तो क्या पास के गांव मे भी नहीं होते, सिर्फ अपने कबीले में होते है।

इस तरह हर परेशानी को झेलते हुए हमारा प्यार परवान चढ़ रहा था। हमारे प्यार की चर्चा भी चारों तरफ फैल चुकी थी। कबीले में नाराजगी बढ़ गयी, मगर मुझे किसी ने डायरेक्ट कुछ नहीं कहा, हमें किसी को परवाह भी नहीं थी, चंद महीनों में हमारी शादी हो जानी थी।

मई में हमारे स्कूल की छुट्टियां हो गयी। सभी स्टाफ अपने घर जाने की तैयारी में लग गया, मैने भी अपने सामान की पैकिंग करनी शुरू कर दी। फिर एक रोज जब मेरे जाने का दिन आया तो मुहीद बहुत नर्वस हो रहा था।

वो मुझे छोड़ने स्टेशन तक आया, एक दूसरे का साथ देने का वादा करते हुए हम जुदा हो गये मगर खत और फोन से बात-चीत जारी रही। मैंने घर आकर घरवालों से उसके बारे में बात की, घर वाले बड़ी मुश्किल से इस पर राजी हुए कि पहले लड़के को देखेंगे, इसी दौरान मुहीद का फोन आना बन्द हो गया।

मैं परेशान हो गयी आखिर क्या बात है, वो कहीं बीमार तो नहीं हो गया। खैर कुछ दिनों बाद अचानक उसका फोन आया, फोन क्या था पूरा एटम बम था, उसका फोन सुनने के बाद मेरा होश में रहना शायद मुश्किल था। उसने क्या कहा ? मेरे मुंह से बेइखितयार निकला।

उसने कहा, मोहतरमा जी। अब मेरी जिन्दगी बदल चुकी है, अब हम अकेले नहीं रहे, बल्कि एक से दो गये है। मेरा दिल एकदम घबराया, एक तो वो मुझे कभी मोहतरम नहीं कहता था मगर आज उसने मुझे मोहतरम कहा, वो मुझे हमेशा आप या रुजा जी से मुखातिब करता था।

दूसरे अकेले से दो होने की बात ? मैंने धड़कते दिल से कहा, मैं समझी नहीं। मेरी शादी हो चुकी है, अभी चंद रोज पहले हुई। मैं तुम्हें अपनी शादी में बुलाना चाहता था, मगर बुला न सका।

खैर मैं तुम्हें अपनी बीवी से मिलवाऊंगा, उसके बाद उसने क्या कहा मुझे कुछ मालूम नहीं बस इतना याद है कि मैं एक गहरे कुएं में गिरती जा रही हूँ और मेरी जिन्दगी मेरा साथ छोड़ रही है।

बाबुजी आप शायद मेरी कहानी पर विशवास नहीं करेंगे मगर मैं सच कहती हूँ, मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है, उसने अगर अचानक शादी करनी थी तो मुझे समझा कर अपनी परेशानी तो बताता, मगर उसके दिल में तो खोट था, उसने तो मेरे जज्बातो के साथ खिलवाड़ करना था कर लिया, जब मेरे दिल से भर गया तो कही और अपनी शादी रचा ली।

रस्मों रिवाजो की आड़ लेकर दुनिया तो मेरी कहानी पर क्या यकीन करेगी मुझे खुद एतबार नहीं हो रहा है कि मेरे साथ ऐसा करेगा।

दुनिया उसके खिलाफ हो जाती मगर वो मेरे खिलाफ न होता, जिसने उसकी जिन्दगी में खुशियां भरनी चाही उसने उसे ही गमो की भटटी में झोंक दिया, अगर उसके अन्दर प्यार को निभाने का हौसला नहीं था तो प्यार क्यों किया एक जीती जागती लड़की पत्थर बना दिया उसे रस्मों रिवाजो से प्यार था तो मुझसे प्यार क्यों किया!

बाबुजी आप मेरी इस कहनी पर एतबार करेंगे। हाँ क्यों नहीं तुम्हारी वफा का सबूत दे रही है, मैं तुम्हारी कहानी जरुर छापवाऊँगा, तुम बेफिक्र रहो। ठीक है बाबुजी आज के बाद कोई मासूम रुजा कभी किसी धोखेबाज मुहीद की भेंट नहीं चढ़ेगी, कोई और रुजा किसी मर्द से नफरत नहीं करेगी। मगर बाबूजी आप एक वादा कीजिए। क्या ?

जब तक मेरी कहानी छप न जाये आप इस बारे में किसी को कुछ नहीं बतायेगे। ऐसा क्यों? इसका जवाब आपको मेरी कहानी छप जाने पर खुद-ब-खुद मिल जायेगा।

मैंने भी ज्यादा नहीं पूछा, सूरज ढल रहा था। मुझे देर भी हो रही थी, कल मुझे जाने की तैयारी भी करनी थी। इसीलिए मैं कहानी जल्द छपवाने का वादा करके लौट आया, सभी मेरा इंतेजार कर रहे थे। शहर जाकर मैने उसकी कहानी को गौर से पढ़ा और उस पर तवज्जो से लिखना शुरु किया।

ज्यो-ज्यो मैं उस कहानी को लिखता गया मेरे अंदर एक अजीब सी बचौनी पैदा होती चली गई। मैंने एक महीने के अन्दर उस कहानी को इतना जानदार बना दिया कि पढ़कर मुझे खुद हैरानी हुई कि मैने इतनी अच्छी कहानी कैसे लिख दी।

मैं पेशे से एक सफल कःलमकर था, मैने हर मौजूद पर कलम चलायी थी। कई बार मुझे सर्वश्रेष्ठ कलमकार के नाते पुरस्कार भी मिला था, मगर आज की कहानी न जाने क्यों मुझे अलग सी लग रही थी। खैर मेने जल्द से 16 जल्द उस कहानी को प्रेस में छुपने के लिए भेज दिया, मैगजीन के आते ही मैने एक फैसला किया और अगले ही दिन में उसके गांव देवनगर पहुंच गया।

मगर आते समय मैं जल्दबाजी में उसका एड्रेस लेना भूल गया, में सीधा उसी पहाडी टीले पर पहुँचा, मुझे उम्मीद थी वो मुझे वहां मिल जायेगी। मगर वो जगह, वो नजारे, वो पत्थर सब सुनसान थे।

न वहाँ कोई हलचल थी, न किसी के आने की आहट। मैंने कुछ देर बैठकर उसका, शायद वो यहाँ आ जाये मगर सिवाय मायूसी के मुझे कुछ न मिला हारकर में उस टीले से निचे उतरा और गांव जाने वाली पगडंडी पर चल दिया कुछ दूर जाने पर मुझे एक आदमी नजर आया।

मैने उससे पूछा रुजा कँहा रहती है भाई साहब ? कौन रुजा ? वह जो प्राइमरी स्कूल मे पढ़ती है। अच्छा वो मास्टरनी। जी हैं। मगर वो पढ़ती है नही, पढ़ती थी। क्या मतलब ? मतलब ये की वो आज से तीन साल पहले मर चुकी है।

मगर, मुझे तो वो पिछले महीने मिली थी। क्या बात कर रहे है आप ?आप होश में तो है ? होश में तो मुझे आप नहीं लग रहे हैं, अभी पिछले महीने शाहिद की शादी में मेरी उससे मुलाकात हुई थी, उसने काफी तक मुझसे बातें की, बल्कि उसने मुझे अपनी पूरी दास्तान सुनाई और अपनी इस दास्तान को मैगजीन में शाया करवाने को कहा, ये देखो मैंने उसकी कहानी,व ‘‘बेवफाई का दर्द‘‘ इस मैंगजीन में शाया करवाई है।

मैंने उसे मैंगजीन दिखाते हए कहा। मगर मैं भी सही कह रहा हूँ। मैं क्या पूरा गांव जानता है कि रुजा तीन साल पहले मर गयी थी। दरअसल उसने वफा के नाम पर धोखा खाया था। उसे ये धोखा गांव के एक कबीले के लड़के ने दिया था, उस लड़के मुहीद ने उसे अपना दर्द भरी दास्तान सुनाकर उसे अपनी तरफ खीच लिया।

वो सीधी साधी भावक लडकी मुहीद की चाल में आ गई और उससे प्यार कर बैठी। उसके साथ के सपने देखने लगी। गर्मियों की छुट्टियों में वो अपने घर गयी तो घर वालो से मुहीद से अपनी शादी की बात की।

इधर वो घरवालो से मुहीद की बात कर रही थी दूसरी तरफ मुहीद कबीले की एक लडकी से अपने रस्म रिवाज से शादी रचा रहा था।

दरअसल उसके घरवाले रुजा से उसकी शादी के खिलाफ थे रुजा की मौजूदगी में तो वो कुछ नहीं बोले मगर रुजा अपने घर वापस जाने के बाद उन्होंने मुहीद को समझा बुझाकर उसकी शादी कबीले की लड़की से कर दी। मुहीद ने भी ज्यादा दखल अंदाजी नहीं की।

उस वक्त उसे घरवाले सही लग रहे थे। वो मासूम रुजा नहीं रही। जिसने अपने सच्चे जज्बे उस पर कुर्बान कर दिए थे। सुना है मुहीद कि शादी का सदमा वो बर्दाश न कर सकी, उसकी शादी की खबर सुनते ही उसका दिमागी सन्तुलन शून्य हो गया।

वो कोमा में चले गई, उसे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया मगर वो ठीक न हो सकी। सात दिन आई.सी.यू. में रहने के बाद इस दुनिया से चल बसी। वो बेचारी बहुत सीधी सादी नेकदिल लड़की थी।

दिन में स्कूल में पढ़ती, शाम को गांव की सभी लड़कियों औरत को सिलाई बुनाई सिखाती पढ़ाती। हर वक्त वो यहाँ के लोगों की भलाई में लगी रहती मगर उसे नहीं मालूम था कि एक रोज वो इन्हीं खुदगर्ज, कट्टरपंथी अनपढ़ लोगों की भेंट चढ़ जायेगी।

आयी थी भेट चढ़ जायेगी। आयी थी ज्ञान की रोशनी बाटने मगर खुद गम के गहरे अंधेरे में खो गई। यहाँ के कट्टरपंथी इस शादी के खिलाफ थे, वो उसके मासूम जज्बों को न समझ सके वो बेचारी भी इन लोगों को न समझ सकी।

मैं जहां था वही खड़ा रह गया, यकीन नहीं आ रहा था कि रुजा मर चुकी है। अगर रुजा मर चुकी है तो वो कौन थी ? जो एक महीने पहले शादी में मिली थी। अब उसकी समझ में आया कि वो रुजा नहीं उसकी बेचौन रूह थी, जो कहानी के जरिए इंसाफ मांगने आयी थी।

मगर वो तो उसे उसकी कहानी शाया होने की खबर देने के साथ -साथ उसको वो खुशिया देने आया था जिस खुशियों से उसे किसी ने महरूम कर दिया था।

अब रुजा ने अपनी दर्दभरी दास्तान सुनाई थी उसने तभी फैसला कर लिया था कि वो उसे अपनी जिन्दगी में शामिल करके वो खुशियां देगा जिसे दुनिया वालो ने उसके दामन से हमेशा के लिये छीन लिया था उसके एतबार को कायम करेगा जिस एतबार को मुहीद की बेवफाई ने खतम कर दिया था।

मगर यहाँ तो सब उल्टा हो गया। उसकी समझ मे नहीं आ रहा था कि क्या से क्या हो गया ? फिर उसके सब हालातो को देखने और समझने के बाद मैने अपने दिल से कहा रुजा।

मैं तुम्हारी ये कहानी मैगजीन के जरिए दुनिया वालो के सामने लाऊंगा, इस कहानी को इतनी जानदार बना दूँगा कि इस कहानी को पढ़ने के बाद कोई मुहीद किसी मासूम रुजा को प्यार के नाम पर धोखा नहीं देगा।

ये फैसला करने के बाद मैं फौरन शहर आ गया अपने फैसले को अंजाम देने। शायद ये शायर भी रुजा की हकीकत बया कर रहा था।  ‘‘ माना कि हर आदमी बेवफा नहीं होता पर हर बेवफा मेरी किस्मत में क्यों आता है‘‘ ।

✍️

रुबीना खान

विकास नगर, देहरादून ( उत्तराखंड )

 

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