अच्छाई तुम्हारी पहचान | Runa lakhnavi poetry
अच्छाई तुम्हारी पहचान
( Achai tumhari pehchan )
मुस्कुराकर, न जाने कितने जंग जीते हैं
तो क्या हुआ, अगर एक बार हार भी गए तो!
तुम फूल की तरह हमेशा महकना
किसी की बात से कभी न बहकना!
काँटों से भरा रास्ता तो पार कर लिया
और जिस सादगी से तुम ये जीवन जी रहे !
हमेशा सभी के दिलों में धड़कना
गलत रास्तों में कभी न भटकना!
लक्ष्य जब न दिखे, कुहासा हो हर जगह
तुम ध्यान में उस ईश को रखना और
हर दिन तुम खुद निखरना
किसी भी आंधी से न बिखरना!
तुम्हारी अच्छाई ही तो तुम्हारी पहचान है
तो क्या हुआ, अगर किसी को दिखता नहीं!
गिरते हुए को सहारा दे, तुम भी संभलना
और अपने आपको, कभी न बदलना!
बहुत सुन्दर भाव और शब्दों का चयन, रूना. मेरी ढेर सारी शुभकामनायें तुम्हें.
मीतू मिश्रा