सहज सुंदरता दिकु की
सहज सुंदरता दिकु की
वह मानो जैसे प्रकृति की सुंदरता
मेरे हृदय को गहन शांति से भर देती है,
उसकी आँखों में बसी अनगिनत भावनाएँ
सहजता से आकर मुझे भावनाओं से भर देती हैं।
माथे पर छोटी सी बिंदी और होंठों पर हल्की मुस्कान उसके,
चंचल नदी के प्रवाह को भी थमने पर वोह मजबूर कर देती है।
भूल जाता हूँ सबकुछ जब उससे बात करता हूँ,
उसकी बातें ना जाने कब सुबह को संध्या में बदल देती हैं।

कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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